विश्व स्तर पर फार्मास्यूटिकल्स, वेलनेस और कॉस्मेटिक्स उद्योगों में औषधीय पौधों की बढ़ती मांग के कारण आज किसान पारंपरिक खेती छोड़कर औषधीय पौधों की खेती की तरफ अपना रुख कर रहे हैं. हमारे चैंपियन किसान की सीरीज में हम आज ऐसे ही पांच सफल किसान उद्यमियों की बात करने वाले हैं जिन्होंने कुछ अलग हट कर करने का सोचा और आज औषधीय पौधों की खेती से लाखों की कमाई कर रहे हैं. बता दें कि प्राकृतिक उत्पादों की बढ़ती मांग, सरकारी सहायता और उच्च रिटर्न की संभावना के कारण भारत में औषधीय पौधों की खेती लोकप्रिय हो रही है.
एमएनसी की नौकरी छोड़ शुरू की तुलसी की खेती
ओडिशा के एक गांव में रहने वाले आलोक पटनायक टाटा ऑटोमोटिव में नौकरी करते थे. लेकिन कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने नौकरी छोड़ गांव में ही तुलसी की खेती की शुरुआत की जिसका सालाना टर्नओवर करीब 6 लाख का होता है. यही नहीं आलोक ने अपने गांव के आदिवासियों को नौकरी भी दी है. खास बात है कि आलोक ऑर्गेनिक तरीकों से यानी कि गाय के गोबर और वर्मीकम्पोस्ट से ही खाद बनाते हैं. उनके प्रोडक्ट्स खरीदने वाली ज्यादातर बड़ी मेडिकल और हर्बल कंपनियां हैं.

ओडिशा के रहने वाले चैंपियन किसान आलोक पटनायक
हल्दी की खेती से 6 लाख का मुनाफा
महाराष्ट्र के लोणी गाँव के रहने वाले अनीता और संजय अपने गांव में ऑर्गेनिक हल्दी की खेती करते हैं.एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार साल 2023 में विश्व स्तर पर हल्दी की कीमत 5.5 बिलियन डॉलर थी और ऐसा अनुमान है कि साल 2032 तक ये कीमत 9.69 बिलियन डॉलर पहुंच जाएगी. महाराष्ट्र के अनीत और संजय एक एकड़ जमीन पर हल्दी की खेती करते हैं जिससे औसतन करीब 2.5 टन यानी 2500 किलोग्राम पैदावार मिलती है. वे बताते हैं कि उन्हें हल्दी की खेती में, उसकी प्रोसेसिंग और पैकेजिंग में करीब 2 लाख का खर्च आता है. जिसे हटाने के बाद एक एकड़ हल्दी की खेती से उन्हें 6 लाख रुपये का शुद्ध लाभ होता है.
55 साल की उम्र में शुरू की खेती
हिमाचल प्रदेश की रीवा सूद की कुछ अलग करने की चाह ने उन्हें दूसरों के लिए मिसाल बना दिया, उन्होंने साबित कर दिया कि मन बना लिया जाए तो किसी भी उम्र में काम की शुरुआत की जा सकती है. हिमाचल की रहने वाली रीना सूद ने प्रदेश के तीन गांव गुंगराला, अक्रोट और बेहर बिथल में फैली बंजर जमीन खरीदी तो अन्य लोगों ने उनके इस निवेश पर उनका मजाक उड़ाया . लेकिन रीना सूद के विजन ने सबको चुप रहने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने स्थानीय वनस्पति को देखा और महसूस किया कि इस जमीन का इस्तेमाल औषधीय पौधे उगाने के लिए किया जा सकता है. लिहाजा उन्होंने उस जमीन पर सर्पगंधा, सहजन (मोरिंगा), अश्वगंधा, स्टीविया, कालमेघ, वेटिवर घास, हल्दी, तुलसी और अन्य जड़ी-बूटियाँ लगाईं. आज अपने इस नवाचार से रीना सालाना 50 लाख का कारोबार कर रही हैं.

55 साल की उम्र में हिमाचल की रीवा सूद ने शुरु की खेती
सूखाग्रस्त जमीन पर उगा रहे एलोवेरा
महाराष्ट्र के रहने वाले किसान उद्यमी ऋषिकेश धाने सतारा जिले में 3 एकड़ सूखा ग्रस्त जमीन पर एलोवेरा की खेती करते हैं. जिसके लिए उन्होंने केवल गाय के गोबर की खाद, मुर्गी की खाद और मशरूम के कचरे की खाद का इस्तेमाल किया. उन्होंने बताया कि जैवकि तरीकों से एलोवेरा उगाने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी. ऋषिकेश ने बताया कि इस जमीन से ज्यादा से ज्यादा लाभ पाने के लिए एलोवेरा की खेती अन्य फलों और पौधों के साथ की जा सकती है. ऋषिकेश कॉस्मेटिक और आयुर्वेदिक कंपनियों को बेचने के लिए साल भर औषधीय पत्तियों की कटाई करते हैं.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने शुरू की लेमन ग्रास की खेती
महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग के रहने वाले गौरी और दिलीप परब L&T Infotech में अच्छे पदों पर काम कर रहे थे. लेकिन साल 2021 में दोनों ने अपनी नौकरी छोड़कर जैविक तरीके से लेमनग्रास की खेती की शुरुआत की. उनका कहना है कि लेमनग्रास की खेती लाभदायक है क्योंकि इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स, फार्मास्युटिक्ल्स और खाने-पीने की चीजें बनाने में किया जाता है. उन्होंने बताया कि देश-विदेश के बाजारों में लेमन ग्रास से बने उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण लेमन ग्रास की खेती फायदे का सौदा साबित होती है.
सीएसआईआर-सीआईएमएपी (CSIR-CIMAP) के अनुसार, 2020 में लेमनग्रास का वैश्विक बाजार 38.02 मिलियन डॉलर था और 2028 तक इसके दोगुने से भी ज्यादा यानी 81.43 मिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. बता दें कि भारत 80 से ज्यादा देशों में लेमन ग्रास की निर्यात करता है. महाराष्ट्र के गौरी और दिलीप लेमन ग्रास से तेल निकालने का भी काम करते हैं.