देश में मॉनसून पूरी तरह एंट्री ले चुका है और इसके साथ ही देशभर में किसानों ने खरीफ फसलों की बुवाई भी शुरू कर दी है. मॉनसून में फसलों की बुवाई से किसानों को दोहरा फायदा होता है. अगर सही तरह से फसल की बुवाई की जाए तो उत्पादन तो अच्छा मिलता ही है, इसके साथ ही किसानों को बारसात के दिनों में सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती. मॉनसून में उगाई जाने वाली फसलों में से एक शकरकंद की फसल भी है. शकरकंद की खेती से अच्छा उत्पादन पाने के लिए किसानों के लिए बेहद जरूरी है कि वे इसकी उन्नत क्वालिटी वाली किस्मों का चुनाव करें, ताकि उत्पादन के साथ ही कमाई भी अच्छी हो सके.
सीओ-2 शकरकंद (CO-2)
शकरकंद की इस किस्म को तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) द्वारा विकसित किया गया है. इस किस्म की खासियत है कि ये बुवाई के करीब 110 से 115 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. बात करें इसकी पैदावार की तो इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से किसान औसतन लगभग 42 से 44 टन हेक्टेयर तक ताजे कंद की पैदावार कर सकते हैं. इसकी खेती के लिए 15 से 33 डिग्री सेलेसियस तापमान सबसे बेस्ट होता है. बता दें कि शकरकंद की इस किस्म में अन्य किस्मों के मुकाबले ज्यादा पोषण होता है.
राजेन्द्र शकरकंद-5 (Rajendra Sakar kand-5)
ये किस्म शकरकंद की उन्नत किस्म है जो कि बुवाई के करीब 105 से 120 दिनों में पककर तैयार होती है. शकरकंद की इस किस्म से किसान लगभग प्रति हेक्टेयर फसल से 20 टन तक पैदावार कर सकते हैं. इसकी किस्म की खासियत है कि ये जड़ सड़न और लीफ स्पॉट जैसे रोगों के प्रति सहनशील होते हैं, जो कि इसे अन्य किस्मों से अलग बनाते हैं. अगर इस किस्म की सही से देखभाल की जाए तो किसानों को इसकी फसल से अच्छा उत्पादन हो सकता है.
श्री भद्र शकरकंद (Sree Bhadra)
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, शकरकंद की इस किस्म को सेंट्रल ट्यूबर रिसर्च इंस्टीट्यूट (CTCRI), त्रिवेंद्रम द्वारा विकसित किया गया है. ये शकरकंद की एक जल्दी पकने वाली किस्म है जो कि बुवाई के करीब 90 से 105 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. बात करें इस किस्म से होने वाली पैदावार की तो इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से किसान 20 से 22 टन की पैदावार कर सकते हैं. अगर इस किस्म की सही से देखभाल की जाए तो इसकी प्रति हेक्टेयर फसल से 25 से 30 टन पैदावार कर सकते हैं. इस लिहाज से शकरकंद की इस किस्म की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है.