नारियल के पेड़ों में लगी बहुत गंभीर बीमारी, वैज्ञानिकों ने रोग से बचाव के लिए दिए ये सुझाव

तमिलनाडु के पट्टुकोट्टई क्षेत्र में नारियल के पेड़ों में ‘थंजावुर वील्ट’ बीमारी फैल रही है, जिसका कारण गैनोडर्मा ल्यूसिडम फफूंद है. इससे तने से तरल पदार्थ निकलता है और पैदावार घटती है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 27 May, 2025 | 05:38 PM

तमिलनाडु के पट्टुकोट्टई क्षेत्र में नारियल के पेड़ों में नई बीमारी लग गई है. इससे पेड़ों के तनों से पानी की तरह तरल पदार्थ निकलना शुरू हो गया है. इससे किसानों की चिंता बढ़ गई है. किसानों का कहना है कि अगर इस नई बीमारी का सही समय पर इलाज नहीं किया गया, तो पेड़ों को नुकसान पहुंचेगा. इससे पैदावार प्रभावित होगी और अन्नदाताओं का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा. लेकिन किसानों की शिकायत पर थंजावुर के उद्यान विभाग और वेप्पनकुलम स्थित नारियल अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने नारियल के बागों का निरीक्षण किया.

द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में पाया गया कि ये नारियल के पेड़ों में ‘थंजावुर वील्ट’ नामक बीमारी लग गई है. इसके कारण पेड़ों से तरल पदार्थ निकल रहे हैं. हालांकि, ये बीमारी गर्मियों में इस क्षेत्र में आम होती है. इसके बाद विभाग ने सभी ब्लॉक स्तर के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में बीमार पेड़ों की पहचान करें. अनुसंधान केंद्र ने किसानों के लिए विस्तृत सलाह भी जारी की है. यह बीमारी खासकर उन तटीय इलाकों में फैलती है जहां रेतीली मिट्टी होती है और पेड़ों की देखभाल ठीक से नहीं होती है.

रोग के ये हैं लक्षण

शुरुआती लक्षणों में पेड़ के आधार से करीब 3 फीट तक रस का रिसाव, तने का रंग बदलना और सड़ना, पत्तियों का पीला पड़ना और सूखना, जड़ों का गलना और समय से पहले नारियल का गिरना शामिल हैं. यदि समय पर ध्यान न दिया जाए तो बीमारी बढ़कर कीट और फंगस के संक्रमण में बदल सकती है. इस बीमारी का कारण गैनोडर्मा ल्यूसिडम (Ganoderma Lucidum) नामक एक फफूंद (fungus) है, जो मिट्टी और पानी के माध्यम से फैलती है और लंबे समय तक मिट्टी में जीवित रह सकती है.

ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग

इसे नियंत्रित करने के लिए संक्रमित पेड़ों को हटाना, साझा सिंचाई से बचना और ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करना जरूरी है. किसानों को सलाह दी गई है कि वे पेड़ों के चारों ओर बोर्डो मिश्रण (Bordeaux mixture) डालें और हर तीन महीने में हेक्साकोनाज़ोल (Hexaconazole) से जड़ उपचार करें.  शुक्रवार को थंजावुर जिले के पोन्वरायनकोट्टई गांव में बागवानी विभाग की ओर से एक जागरूकता शिविर आयोजित किया गया. इसमें बीमारी के लक्षण और नियंत्रण के तरीकों का प्रदर्शन किया गया.

वैज्ञानिकों को मिले ये खास निर्देश

इस कार्यक्रम में उप निदेशक ए. वेंकटरमन, वेप्पनकुलम अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ, किसान और अन्य अधिकारी शामिल हुए. बागवानी विभाग ने सभी ब्लॉकों में वैज्ञानिकों और किसानों की भागीदारी से ऐसे डेमो कार्यक्रम कराने के निर्देश दिए हैं, ताकि बीमारी की समय पर पहचान और प्रभावी नियंत्रण संभव हो सके.

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Published: 27 May, 2025 | 05:30 PM

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