सोयाबीन का रेट पुराने MSP से भी कम, किसानों को 2 साल से हो रहा नुकसान

इस साल सोयाबीन किसानों को मंडी में फसल का सही दाम नहीं मिल रहा है. MSP से कम दाम और आयात शुल्क में कटौती से उनकी परेशानियां बढ़ गई हैं. किसान नेताओं का कहना है कि ये कदम चुनावी फायदे के लिए हैं, जिसका सीधा नुकसान किसानों को हो रहा है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 9 Jun, 2025 | 11:22 AM

इस साल सोयाबीन किसानों को मार्केट में फसल का उचित रेट नहीं मिल रहा है. मार्केट में सोयाबीन की कीमत MSP से भी कम होने के चलते किसानों को आर्थिक नुकसान हो रहा है. साथ ही आयात शुल्क में कटौती ने किसानों की चिंता और बढ़ा दी है. किसानों को लग रहा है कि केंद्र सरकार के इस फैसले से आने वाले दिनों में सोयाबीन की कीमतों में और गिरावट आ सकती है. ऐसे में आने वाले दिनों में किसानों की मुश्किलें कम होने के बजाए और बढ़ेंगी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रमेश पाटिल नाम के एक सोयाबीन उगाने वाले किसान ने कहा कि बीज बोने से पहले ही उन्हें पता था कि इस बार की सोयाबीन फसल भी घाटे में जाएगी. महाराष्ट्र के लातूर जिले के चाकूर तालुका के किसान पाटिल ने कहा कि इस समय मंडी में सोयाबीन की कीमत सिर्फ 4,200 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि पुराना न्यूनतम समर्थन मूल्य ही (MSP) 4,893 रुपये था. उन्होंने कहा कि अगर यही रुख रहा तो नया MSP 5,328 रुपये तो सपना ही रहेगा. फिर भी, पाटिल अपने 4 एकड़ खेत में सोयाबीन ही बोएंगे. वो कहते हैं कि हमारे पास और क्या विकल्प है?

आयात शुल्क घटाकर 10 फीसदी कर दिया

30 मई को केंद्र सरकार ने कच्चे खाद्य तेलों पर आयात शुल्क घटाकर 10 फीसदी कर दिया. सरकार का कहना है कि इस कदम से खाने के तेल की कीमतें कम होंगी और देश की रिफाइनरियों की क्षमता का पूरा उपयोग हो सकेगा. अब कच्चे तेलों पर कुल आयात शुल्क 16.5 फीसदी रह गया है, जो पहले 27.5 फीसदी था. लेकिन किसानों के लिए यह खबर परेशानी बढ़ाने वाली है. लगातार दूसरे साल सोयाबीन की कीमत MSP से नीचे बनी हुई है, जिससे किसानों को घाटे में फसल बेचनी पड़ रही है.

खाद्य तेलों की कितनी है कीमत

इस बीच, खाने के तेलों की कीमतें भी आम लोगों पर असर डाल रही हैं. सरसों तेल 186.31 रुपये लीटर, सूरजमुखी तेल 161.74 रुपये लीटर और सोयाबीन तेल 147.11 रुपये लीटर के करीब बिक रहे हैं. उपभोक्ता मामलों के विभाग की ‘प्राइस मॉनिटरिंग सेल’ के अनुसार, बीते 6 महीनों में तेल की कीमतों में 4-5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. कुल मिलाकर, किसानों को कम दाम और बढ़ती लागत के बीच फंसा हुआ महसूस हो रहा है और उन्हें राहत की कोई उम्मीद फिलहाल नजर नहीं आ रही.

कटौती का मकसद घरेलू कीमतों को कंट्रोल करना नहीं

किसान नेता विजय जवंधिया का कहना है कि हाल ही में हुई आयात शुल्क में कटौती का मकसद घरेलू कीमतों को कंट्रोल करना नहीं, बल्कि बिहार में होने वाले आगामी चुनाव हैं. उन्होंने कहा कि ये सरकार की पुरानी और बार-बार दोहराई जाने वाली रणनीति है. हर चुनाव से पहले जरूरी चीजों की कीमतें कम रखने के लिए ऐसे कदम उठाए जाते हैं. जवंधिया ने कहा कि 2024 के ज्यादातर समय में प्याज के निर्यात पर रोक लगी रही, ताकि देश में इसकी कीमतें न बढ़ें.

नुकसान सीधे किसानों को उठाना पड़ता है

उन्होंने 2021 का उदाहरण भी दिया, जब कोविड के बाद खाने के तेल की कीमत 200 रुपये लीटर तक पहुंच गई थी. तब भी सरकार ने आयात शुल्क घटाकर 5 फीसदी कर दिया था ताकि तेल की उपलब्धता बढ़े और दाम नीचे आएं. उनका कहना है कि सरकार की ये नीति चुनावी फायदे के लिए है, जबकि इसका नुकसान सीधे किसानों को उठाना पड़ता है.

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Published: 9 Jun, 2025 | 11:15 AM

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