राजस्थान के अलवर जिले का मेवात क्षेत्र भले ही अपराध के लिए चर्चित रहा हो, लेकिन इसकी पहचान मीठे बेर, लाल प्याज, सरसों और बतीशा नस्ल के बकरे से भी होती है. मेवात में परंपरागत खेती से जुड़े किसान भी अब बकरा पालन का व्यवसाय कर रहे हैं. आंकड़ों की माने तो करीब 1500 से 2 हजार किसान परिवार अब बकरा पालन के व्यवसाय से मुख्य रूप से जुड़े हुए हैं. इससे किसानों की अच्छी कमाई हो रही है.
कुछ वर्ष पहले तक मेवात के तोतापुरी बतीसा व देशी नस्ल के बकरों की डिमांड दुबई सहित अन्य गल्फ देश में होती थी. लेकिन अब केवल देश में इसका कारोबार हो रहा है. दिल्ली और मुंबई में तोतापुरी बतीसा नस्ल के बकरों की भारी डिमांड है. अधिक डिमांड के चलते बकरा पालन करने वाले लोगों की मोटी रकम मिल जाती है. बकरा पालन के व्यवसाय से जुड़े लोगों ने बताया की महाराष्ट्र में एक बकरे की कीमत 70 से 80 हजार रुपए तक मिलती है.
दिल्ली- मुंबई में बकरे की काफी डिमांड
पिछले 20 वर्षों से बकरे का व्यवसाय करने वाले गोपाल प्रसाद (गब्बर) ने बताया अलवर क्षेत्र के बकरों की दिल्ली- मुंबई में काफी डिमांड रहती है. हालांकि कुछ समय पहले तक यहां के बकरे विदेश तक जाते थे, लेकिन मेडिकल व ट्रांसपोर्टेशन के बढ़ते खर्च व समय के कारण व्यापारी अब अन्य देशों में बकरा बेचने से दूरी बना रहे हैं. गोपाल ने बताया कि देशी नस्ल के बकरे मोटे हार्ड व भारी वजन के होते हैं.
दांत टूटने लगे तो समझों बिक्री के लिए तैयार है बकरा
गोपाल प्रसाद ने बताया कि राजस्थान के दौसा जिले की बालाहेडी मंडी से 10 से 12 हजार रुपए में बकरों के बच्चों को खरीद कर लाता हूं. इन्हें मक्का, जो, चना, छिड़े की पत्तियां और हरा चारा सहित अन्य चीजें खिलाई जाती हैं. हालांकि इस दौरान बकरे में लगने वाले मुख्य रोग मुंह पका-खुर पका में बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है. सब कुछ ठीक रहने पर 14 से 15 महीने में बकरे के दांत टूटने लगते हैं, जो इसके वयस्क होने के संकेत होते हैं. इसके बाद माना जाता है कि बकरा बाजार में बिकने के लिए तैयार हो गया है.
इस तरह तय होती है बकरे की कीमत
गोपाल ने बताया कि अलवर से बकरे मुंबई और दिल्ली की मंडियों में बेचने के लिए ले जाए जाते हैं. खरीदार बकरे का वजन और शरीर देखकर खरीदते हैं. कीमत भी इन्हीं आधार पर तय होती है. अलवर की तोतापुरी और देसी नस्ल के बकरे का वजन 75 से 80 किलो तक होता है. खास कर बकरीद पर बकरा मंडी में अलवर के बकरों की मांग खूब रहती है, जिससे हम लोगों की अच्छी कमाई होती है.
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं