पशुपालन सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि पशुओं से जुड़ा गहरा रिश्ता होता है. जब ये मासूम जानवर किसी बीमारी या परेशानी से जूझते हैं, तो वह दर्द सिर्फ पशु नहीं, बल्कि पशुपालक भी महसूस करता है. जूं, चिचड़ी और किलनी जैसी त्वचा परजीवी समस्याएं दिखने में मामूली लग सकती हैं, लेकिन ये खून चूसकर पशुओं की सेहत, दूध उत्पादन और मानसिक स्थिति पर बड़ा असर डालते हैं. खास बात ये है कि अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो पशु कमजोर हो जाते हैं .
अगर आप भी इस समस्या से जूझ रहे हैं, तो अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. इन समस्याओं से निपटने के लिए कुछ देसी घरेलू उपाएं हैं जिनके बारे में विस्तार से जानते हैं.
साफ सफाई का रखें ध्यान
ज्यादातर त्वचा से जुड़ी समस्याएं गंदगी से शुरू होती हैं. जब पशु के शेड में साफ-सफाई नहीं होती, वहां नमी और गंदगी जमा होती है, तो ऐसे कीट आसानी से फैलते हैं. इसलिए जरूरी है कि पशुओं के रहने की जगह को हमेशा सूखा और साफ रखा जाए. नियमित सफाई और नहाने की आदत से चिचड़ी और जूं की शुरुआत को रोका जा सकता है.
करें तेल की मालिश
घरेलू तेलों में कई ऐसे तत्व होते हैं जो इन परजीवियों को खत्म करने में मददगार हैं. अलसी का तेल, नारियल तेल या सरसों का तेल लेकर पशु के पूरे शरीर पर अच्छी तरह मालिश करें. इससे त्वचा पर बैठी चिचड़ी या जूं हटती हैं और नई त्वचा को राहत मिलती है.
इसके साथ अगर आप लहसुन का इस्तेमाल करें, तो उसका पाउडर बनाकर हफ्ते में दो बार पशु की त्वचा पर मलें. लहसुन में मौजूद सल्फर जैसे तत्व इन कीड़ों को खत्म करने में काफी असरदार होते हैं.
साबुन और आयोडीन से नहलाएं
अगर आपके पशु को पहले ही जूं या चिचड़ी की समस्या हो गई है, तो उसे हफ्ते में दो बार गाढ़े साबुन के घोल से नहलाएं. नहाने के बाद आयोडीन को हल्का-सा पानी में मिलाकर रगड़ें. ये न सिर्फ कीड़े हटाने में मदद करता है, बल्कि घावों को भी भरता है.
आधुनिक समाधान, देसी अंदाज में
आजकल बाजार में मिलने वाले टी ट्री ऑयल, नीम ऑयल जैसे एसेंशियल तेलों का मिश्रण खाद्य तेल के साथ मिलाकर भी लगाया जा सकता है. ये तेल चिचड़ी और जूं को दूर रखने में असरदार हैं और इनसे कोई नुकसान भी नहीं होता.
चूना और सल्फर का देसी नुस्खा
चूना और सल्फर को पानी में घोलकर इसका एक लेप बना लें. इसे हर 7-10 दिन के अंतराल पर पशु के शरीर पर लगाएं. कम से कम छह बार इस प्रक्रिया को दोहराएं. इससे धीरे-धीरे कीट खत्म हो जाते हैं और पशु को राहत मिलती है.
जब समस्या बढ़ जाए
अगर समस्या बहुत ज्यादा हो और घरेलू उपाय काम न कर रहे हों, तो आप डॉक्टर की सलाह से आइवरमेक्टिन नामक इंजेक्शन का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये खासतौर पर किलनी जैसी समस्याओं के लिए दिया जाता है. लेकिन ध्यान रहे, इंजेक्शन देने के बाद कम से कम दो हफ्ते तक दूध का उपयोग न करें.
लक्षणों को पहचानें समय पर
अगर पशु बार-बार खुद को खुजलाता है, दूध की मात्रा कम हो रही है, बाल झड़ रहे हैं या वह तनाव में दिख रहा है, तो ये संकेत हो सकते हैं कि वह जूं, चिचड़ी या किलनी से परेशान है. ऐसे में समय रहते इलाज शुरू करना जरूरी होता है.