व्रत में खाई जाने वाली चीजों की बात हो और उसमें एक खास अनाज की चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. जिस अनाज को सालों से पवित्र मानकर उपवास में खाया जाता रहा है, अब वही अनाज गांवों में कई किसानों की कमाई का मजबूत जरिया बनता जा रहा है. बात हो रही है रामदाना (Amaranth) की, जिसे लोग व्रत में खाकर धार्मिक भावना से जोड़ते रहे हैं. खासतौर पर नवरात्र और अन्य व्रतों के समय इसकी बिक्री तेज होती है. यही वजह है कि अब किसान इसे सिर्फ आस्था का हिस्सा नहीं, बल्कि आमदनी का मौका मानकर उगा रहे हैं.
रामदाना की खास होने की असली वजह
रामदाना का इस्तेमाल आमतौर पर लड्डू, पट्टी और लइया बनाने में किया जाता है, खासतौर पर उपवास के समय. लेकिन इसका महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं है, बल्कि इसका स्वास्थ्य और पोषण की दृष्टि से भी बड़ा योगदान है. इस फसल से न सिर्फ अनाज मिलता है, बल्कि इससे मवेशियों के लिए चारा भी प्राप्त होता है. यानी एक फसल से दो फायदे, दाना भी और चारा भी. यही वजह है कि किसान अब इसे गंभीरता से ले रहे हैं.
सेहत के लिए फायदेमंद अनाज
रामदाना पोषक तत्वों से भरपूर होता है. उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के मुताबिक, इसमें 12–15 प्रतिशत प्रोटीन, 6–7 प्रतिशत वसा, और 0.045–0.068 प्रतिशत फिनॉल्स होते हैं. साथ ही, इसमें 22–27 प्रतिशत तक एंटीऑक्सीडेंट डी०पी०पी० एच पाया जाता है, जो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है. यह उन लोगों के लिए भी बेहद उपयोगी है जो ग्लूटेन से परहेज करते हैं. क्योंकि रामदाना ग्लूटेन-फ्री होता है. आज की सेहत के प्रति जागरूक दुनिया में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है.
खरीफ-रबी दोनों मौसम में होती है रामदाना की खेती
रामदाना की खेती खरीफ और रबी दोनों सीजन में की जा सकती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम पानी वाले क्षेत्रों में भी अच्छी उपज दे सकती है. भारत में यह फसल मुख्य रूप से उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में उगाई जाती है. बात करें इसकी खेती की तो गर्म और नम जलवायु इसके लिए अच्छी मानी जाती है. यही वजह है कि कम बारिश वाले इलाकों में भी इसकी पैदावार संतोषजनक होती है.
अच्छी पैदावार के लिए खेत की तैयारी है जरूरी
सबसे पहले खेत की एक गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इसके बाद 2–3 बार देशी हल या हैरो से जुताई कर लें, ताकि मिट्टी की ऊपरी परत ढीली और समतल हो जाए. फिर पाटा चलाकर मिट्टी को भुरभुरा बना लें, जिससे बीज अच्छी तरह जम सके. बात करें बीज की मात्रा की तो 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होती है.वहीं बोने से पहले बीज को थीरम 2 से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित कर लें. इससे फसल रोगों से सुरक्षित रहती है और अंकुरण बेहतर होता है.
रामदाना की बुवाई का सही समय
रामदाना की बुवाई का सही समय जून के आखिरी सप्ताह से लेकर जुलाई के मध्य तक माना जाता है. इस दौरान मौसम में नमी होती है, जो बीज के अंकुरण के लिए अनुकूल होती है. देरी से बुवाई करने पर उपज पर असर पड़ सकता है, इसलिए समय का ध्यान रखना जरूरी है. समय पर बुवाई से अच्छी पैदावार मिलती है.