धान की खेती में अब नई तरकीब से किसान मोटी कमाई करने लगे हैं. खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार के गांवों में कई किसान एक खास तरीका अपनाकर एक ही खेत से ज्यादा उपज लेने में कामयाब हो रहे हैं. इस तरीके का नाम है डबल ट्रांसप्लांटिंग या संडा रोपाई. इस तकनीक के तहत किसान एक ही खेत में दो बार धान की रोपाई करते हैं. इससे खेत का पूरा फायदा मिलता है और फसल भी ज्यादा होती है. यही वजह है कि अब इस पद्धति को धान उत्पादन बढ़ाने का सस्ता और कारगर उपाय माना जा रहा है.
बदलते मौसम से किसान परेशान
उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों में धान की फसल को जुलाई से अक्टूबर के बीच करीब 100 दिन अत्यधिक नमी या जलभराव की स्थिति का सामना करना पड़ता है. कहीं मॉनसून देर से आता है तो कहीं जरूरत से ज्यादा बारिश हो जाती है. इतना ही नहीं ऊंचे खेतों में पानी की कमी होती है तो निचले खेतों में जल निकासी न होने से पानी भर जाता है. इन दोनों हालातों में रोपाई समय पर नहीं हो पाती और पौधे कमजोर रह जाते हैं. इससे न तो कल्ले (shoots) अच्छे निकलते हैं, न ही पौधे की लंबाई या ताकत अच्छी होती है. नतीजा यह निकलता है कि उपज कम हो जाती है.
कैसे काम करती है डबल ट्रांसप्लांटिंग तकनीक?
उत्तर प्रदेश सरकार की एक खास तकनीक से अब एक ही खेत में दो बार धान की रोपाई की जा रही है. पहली बार जब पौधे करीब 3 हफ्ते के होते हैं, तब उन्हें 20 सेंटीमीटर लाइन और 10 सेंटीमीटर पौधे की दूरी पर लगाया जाता है. यानी खेत में पौधे एक तय दूरी पर लगाए जाते हैं ताकि बढ़ने के लिए जगह मिल सके. इसके अलावा तीन हफ्ते बाद उसी खेत में दोबारा रोपाई की जाती है. इस बार दूरी और कम रखी जाती है 10 सेंटीमीटर. इसमें खास बात ये है कि दूसरी बार जो पौधे लगाए जाते हैं, वे पहले लगाए गए पौधों से निकले साइड शूट (कल्ले) होते हैं. ये मजबूत होते हैं और पानी, तापमान जैसी मुश्किलों को सहने की ताकत रखते हैं.
इस तकनीक के फायदे?
इस तरीके से न सिर्फ पौधों की संख्या बढ़ती है, बल्कि खेत में खाली जगह भी नहीं रहती. इसके अलावा पौधे स्वस्थ रहते हैं, कल्ले ज्यादा निकलते हैं और आखिरकार पैदावार में इजाफा होता है. जो किसान इस तकनीक को सही तरीके से अपना रहे हैं, वे अब पहले से 20 से 25 फीसदी तक ज्यादा उत्पादन पा रहे हैं.
डबल ट्रांसप्लांटिंग करते समय इन बातों का ध्यान रखें
- दूसरी रोपाई अधिक उम्र के पौधों से न करें वरना उत्पादन घट सकता है.
- पहली रोपाई और दूसरी रोपाई के बीच का अंतर 3 सप्ताह रखें.
- रोपाई की दूरी वैज्ञानिक तरीके से ही रखें.
- खेत में जल निकासी की व्यवस्था जरूर करें.