आंध्र प्रदेश के चित्तूर और तिरुपति जिलों के आम किसान इन दिनों बड़ी परेशानी में हैं. इस साल मॉनसून के समय से पहले आने और बिचौलियों की मनमानी के चलते ‘तोतापुरी’ किस्म के आम की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक गिर गई हैं. जो आम पिछले साल 18,000 से 30,000 रुपये प्रति टन तक बिकते थे, अब सिर्फ 4,000 रुपये प्रति टन में बिक रहे हैं. यानी पिछले साल के मुकाबले इस बार कीमतों में 14,000 से 24,000 रुपये प्रति टन की गिरावट आई है. ऐसे में किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, पुराना चित्तूर जिला देश में ‘मैंगो कैपिटल’ के नाम से जाना जाता है, क्योंकि यहां करीब 2.87 लाख एकड़ में आम की खेती होती है. तोतापुरी किस्म यहां सबसे ज्यादा उगाई जाती है और यह कुल आम उत्पादन का 90 फीसदी हिस्सा बनाती है. बाकी 10 फीसदी खेतों में बेनीषा, सिंदूरा, अल्फांसो और खदर जैसी टेबल वैरायटीज उगाई जाती हैं, जिन्हें खुले बाजार में बेचा जाता है.
1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा कारोबार
वहीं तोतापुरी किस्म के आम मुख्य रूप से जिले की करीब 60 मैंगो पल्प फैक्ट्रियों को सप्लाई किए जाते हैं. हर साल औसतन 7.5 लाख टन आम का उत्पादन होता है और जिले का आम कारोबार 1,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का होता है. यहां के आम कई देशों में निर्यात भी किए जाते हैं, जो क्षेत्र की शान माने जाते हैं.
इसके चलते किसान हैं परेशान
हालांकि, इस साल चित्तूर जिले में समय पर और अच्छी बारिश हुई, जिससे आम की फसल भी अच्छी हुई. लेकिन इसके बावजूद तोतापुरी किस्म के आम उगाने वाले किसान परेशान हैं, क्योंकि बिचौलियों और पल्प फैक्ट्री मालिकों के सिंडिकेट ने अब तक मार्केट ही नहीं खोली है, जबकि आम का सीजन अब खत्म होने के करीब है. दमलचेरुवु मैंगो नगर मार्केट के व्यापारी गिरिधर रेड्डी ने कहा कि हर साल अप्रैल में ही पल्प फैक्ट्रियों के प्रतिनिधि किसानों से तोतापुरी आम खरीदने आ जाते हैं. लेकिन इस साल जून आ चुका है और कोई भी नहीं आया, जिससे किसानों की बेचैनी बढ़ गई है.
इस वजह से कीमतों में आई गिरावट
उन्होंने कहा कि साथ ही मॉनसून जल्दी आ जाने के कारण किसानों को आम समय से पहले तोड़ने पड़े, जिससे बाजार में आम की ओवरसप्लाई हो गई और कीमतें और गिर गईं. किसानों का कहना है कि जब राज्य में वाईएसआरसीपी की सरकार थी, तब टीडीपी नेताओं ने वादा किया था कि वे सत्ता में आने के बाद इस सिंडिकेट को खत्म करेंगे और किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाएंगे. लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है.