पराली जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए एयर क्वालिटी मैनेजमेंट कमीशन (CAQM) अभी से ही एक्शन मोड में आ गया है. उसने पंजाब और हरियाणा सरकारों को निर्देश दिया है कि इस सर्दी से गैर-एनसीआर जिलों में स्थित ईंट भट्ठों में पराली से बने बायोमास पैलेट्स को ईंधन के तौर पर अनिवार्य रूप से इस्तेमाल किया जाए.CAQM को उम्मीद है कि उसके इस कदम में नबंर-दिसंबर महीने के दौरान दिल्ली-एनसीआर को गैस चैंबर बनने से रोका जा सकता है. क्योंकि किसान धान कटाई के बाद गेहूं की बुवाई करने के लिए तेजी से पराली जलाते हैं, इससे दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है. लोगों का सांस लेने में तकलीफ होने लगती है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह कदम हर साल सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर की खराब हवा की बड़ी वजह पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिए उठाया गया है. CAQM के आदेश के मुताबिक, पराली से बने बायोमास पैलेट्स या ब्रिक्वेट्स को कोयले की जगह या उसके साथ मिलाकर जलाना एक स्वच्छ और व्यावहारिक विकल्प है. अब पंजाब और हरियाणा के गैर-एनसीआर जिलों की सभी ईंट भट्ठों को 1 नवंबर से चरणबद्ध तरीके से इस ईंधन का उपयोग शुरू करना होगा.
धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी पराली की मात्रा
आदेश में दिए गए टाइमलाइन के अनुसार, ईंट भट्ठों को अपने ईंधन में कम से कम 20 फीसदी पराली से बने पैलेट्स का उपयोग करना जरूरी होगा. यह मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी. 1 नवंबर 2026 से यह मात्रा 30 फीसदी, 1 नवंबर 2027 से 40 फीसदी और 1 नवंबर 2028 से 50 फीसदी हो जाएगी. यानि हर साल पराली आधारित ईंधन का उपयोग बढ़ाना होगा. साथ ही, राज्य सरकारों को नवंबर 2025 से हर महीने प्रगति रिपोर्ट CAQM को भेजनी होगी, ताकि आदेश के पालन की निगरानी ठीक से की जा सके.
CAQM ने दिल्ली सरकार को दिए ये आदेश
साथ ही CAQM ने अब दिल्ली-एनसीआर की सभी राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि वे अपने-अपने इलाके की लैंडफिल साइट्स पर आग लगने की आशंका का वैज्ञानिक तरीके से आंकलन करें. इसके बाद इन साइट्स को आग से बचाने के लिए CCTV कैमरे, मीथेन गैस डिटेक्टर और अन्य निगरानी उपकरण लगाए जाएं. साथ ही, आग बुझाने के पर्याप्त इंतजाम जैसे कि रेत, केमिकल फायर एक्सटिंग्विशर और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां हर समय तैयार रखी जाएंगी.