तरबूज गर्मी का एक अहम फल है जिसकी खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के अलावा पंजाब और राजस्थान में भी होती है. इसकी खेती कम सिंचाई में भी की जा सकती है और इसलिए फरवरी के आखिरी हफ्ते से लेकर मार्च के अंत तक इसकी बुवाई होती है.
तरबूज की खेती के लिए नदी के किनारे की रेतीली दोमट मृदा, या फिर काली मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ होते हैं, सही मानी गई है. साथ ही खेती के लिए मिट्टी सही जल निकास वाली होनी चाहिए. साथ ही साथ इसका पीएच 6.5 से 7 के बीच रहना चाहिए.
watermelon-तरबूज की खेती
तरबूज की सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन को सही माना जाता है. हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि अगर आप ऑर्गेनिक खाद का प्रयोग कर रहे हैं तो फिर रासायनिक उर्वरक को इससे दूर ही रखें. अगर आपने खेती के लिए मल्च का प्रयोग नहीं किया है तो फिर हर 15 से 20 दिन के अंतर पर निराई गुड़ाई करते रहें.
तरबूज का उत्पादन 90-110 दिन के बाद शुरू हो जाता है. अगर आपको फल की सतह हल्के पीले रंग की दिखाई दे रही है और डंठल सूखा दिख रहा है तो फल को तोड़ लें.