भारत के ग्रामीण इलाकों में खेती से पूरी तरह जीवन यापन करने वाले परिवार अब बहुत कम हो गए हैं. एक नई रिपोर्ट में यह सामने आया है कि जहां लगभग 42.4 फीसदी ग्रामीण परिवारों को खेती से कुछ न कुछ आय होती है, वहीं सिर्फ 20.7 फीसदी परिवार पूरी तरह खेती पर निर्भर हैं. यह बदलाव ग्रामीण विकास की रणनीतियों को फिर से सोचने और किसानों के लिए नए सुधार लाने की जरूरत को बताता है.
खेती पर पूरी तरह निर्भरता कम
People Research on India’s Consumer Economy (PRICE) द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, 2024-25 में भारत में करीब 140 मिलियन ग्रामीण परिवारों को खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों से आय होती है. लेकिन इनमें से केवल 68.4 मिलियन (20.7 फीसदी) परिवार ही ऐसे हैं जिनकी मुख्य आय का स्रोत खेती है.
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बाकी परिवार खेती के साथ-साथ अन्य गैर-कृषि गतिविधियों से भी आय अर्जित कर रहे हैं. गैर-कृषि स्वरोजगार, नौकरियों से सैलरी और प्रवासी मजदूरों से मिलने वाले रेमिटेंस जैसे स्रोत इन परिवारों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा हैं.
खेती अकेले अब ग्रामीण जीवनयापन के लिए पर्याप्त नहीं
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक औसत पूर्णकालिक कृषि परिवार की वार्षिक आय 7.31 लाख रुपये अनुमानित है, जिसमें से करीब 67.1 फीसदी आय खेती से ही आती है. इसके अलावा डेयरी, पशुपालन जैसे सहायक कृषि कार्यों से भी 7.4 फीसदी आय होती है. लेकिन खेती की आय अकेले आज की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है.
इस वजह से अब ग्रामीण परिवार अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए खेती के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी काम करने लगे हैं. गैर-कृषि रोजगार और स्वरोजगार की भूमिका तेजी से बढ़ रही है.
किसानों और ग्रामीण परिवारों के लिए जरूरी सुधार
रिपोर्ट ने किसानों और ग्रामीण परिवारों के लिए कई सुधारों की सलाह दी है. इसमें किरायेदार किसानों, साझेदारी करने वालों और जमीन न रखने वाले श्रमिकों को भी ‘अन्नदाता’ की परिभाषा में शामिल करना जरूरी बताया गया है ताकि वे भी प्रधानमंत्री किसान योजना (PM-Kisan) जैसे कल्याणकारी योजनाओं का लाभ ले सकें.
इसके अलावा, ग्रामीण उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देकर गैर-कृषि रोजगार के अवसर बढ़ाने पर जोर दिया गया है. कृषि उत्पादकता बढ़ाने और वित्तीय समावेशन को मजबूत करने जैसे कदम भी जरूरी बताए गए हैं ताकि अन्नदाता परिवार देश की तरक्की में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें.