DFQF स्कीम के नाम पर हो रहा ‘सुपारी डंपिंग’, लाखों किसानों की रोजी-रोटी पर संकट

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में भारत ने कुल 42,236 टन सुपारी का आयात किया, जिसकी कीमत करीब 1208 करोड़ रुपये रही. इसके मुकाबले भारत ने मात्र 2,396 टन सुपारी निर्यात की.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 3 Dec, 2025 | 09:05 AM

भारत में सुपारी (Arecanut) उत्पादन को लेकर देश लंबे समय से आत्मनिर्भर रहा है, लेकिन इसके बावजूद पड़ोसी देशों से सुपारी का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है. यह स्थिति घरेलू किसानों के लिए चिंता का कारण बनती जा रही है. हाल के सरकारी आंकड़ों से स्पष्ट है कि बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और इंडोनेशिया जैसे देश भारत में सुपारी के प्रमुख निर्यातक बन चुके हैं.

इससे देश के सुपारी किसानों पर सीधा आर्थिक प्रभाव पड़ रहा है, क्योंकि विदेशी आयात सस्ते दरों पर बाजार में उपलब्ध हो जाते हैं और घरेलू उत्पादक प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते. लोकसभा में भी इस मुद्दे को मजबूती से उठाया गया, जहां इसे किसानों की आजीविका पर गंभीर खतरा बताया गया.

पड़ोसी देशों से आयात में तेज बढ़ोतरी

केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल द्वारा लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2024-25 में भारत ने कुल 42,236 टन सुपारी का आयात किया, जिसकी कीमत करीब 1208 करोड़ रुपये रही. इसके मुकाबले भारत ने मात्र 2,396 टन सुपारी निर्यात की.

आंकड़े बताते हैं कि बांग्लादेश से 12,155 टन, श्रीलंका से 8,353 टन, म्यांमार से 7,569 टन और इंडोनेशिया से 11,589 टन सुपारी भारत में भेजी गई. यह व्यापार उतना सरल नहीं है जितना दिखता है—इसके पीछे भारत की DFQF (Duty Free Quota Free) नीति महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

शून्य कस्टम शुल्क बना किसानों के लिए सिरदर्द

डीएफक्यूएफ योजना के तहत कम विकसित देशों (LDCs) से आने वाले उत्पादों पर भारत शून्य कस्टम शुल्क लागू करता है. इस नीति का उद्देश्य भले ही उन देशों की अर्थव्यवस्था को समर्थन देना हो, लेकिन सुपारी के मामले में यह छूट भारत के किसानों को नुकसान पहुंचा रही है.

लोकसभा में दक्शिणा कन्नड़ से सांसद कैप्टन ब्रजेश चौटा ने कहा कि भारत में साल 2023-24 में 14 लाख टन सुपारी का उत्पादन हुआ, जिसमें से अकेले कर्नाटक ने लगभग 10 लाख टन योगदान दिया. ऐसे में देश में आयात की जरूरत नहीं है, फिर भी भारी मात्रा में सुपारी आ रही है.

शून्य शुल्क का फायदा उठाकर विदेशी व्यापारी सस्ती सुपारी भारत भेज दे रहे हैं, जिससे घरेलू बाजार में कीमतें गिर रही हैं और किसान मुश्किल में हैं.

बाजार अस्थिर, किसानों की आय पर सीधा असर

सस्ती विदेशी सुपारी आने से देश के स्थानीय बाजार में कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. किसानों की मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पाता, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है.

कई खेती क्षेत्रों में यह स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि किसानों को अपनी उपज बेचने में भी कठिनाई आने लगी है. कीमतें कम होने से उनकी आय पर सीधा प्रभाव पड़ रहा है और बाजार में अस्थिरता बढ़ रही है.

संसद में उठी मांग: सुपारी को DFQF योजना से बाहर किया जाए

सांसद ब्रजेश चौटा ने केंद्र सरकार से यह मांग की है कि सुपारी को DFQF योजना से बाहर रखा जाए और सामान्य 100% कस्टम ड्यूटी को फिर से लागू किया जाए. उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को विस्तृत ज्ञापन सौंपा है.

उनका कहना है कि भारत को पड़ोसी देशों की मदद जरूर करनी चाहिए, लेकिन ऐसे किसी भी प्रावधान से भारतीय किसानों की आय और बाजार की स्थिरता पर आंच नहीं आनी चाहिए.

किसानों की आजीविका पर मंडरा रहा बड़ा खतरा

दक्शिणा कन्नड़ और कर्नाटक के अन्य सुपारी उत्पादक जिलों में किसान पहले ही कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. अब विदेशी सुपारी की आमद ने उनके लिए समस्या और बढ़ा दी है.

सांसद के अनुसार, यदि जल्द ही इस पर कार्रवाई नहीं हुई, तो लाखों किसान अपनी आजीविका खोने के संकट में आ सकते हैं. इसलिए सुपारी आयात नियंत्रण और कस्टम ड्यूटी बहाली से ही किसानों को राहत मिल सकती है.

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