सुपारी स्मगलिंग से टूट गया था बाजार, सरकार के एक कदम से किसानों की कमाई 50 करोड़ तक पहुंची

सुपारी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी ने कहा कि सुपारी अब 2,500-3,000 रुपये प्रति बैग बिक रही है, जबकि जब सुपारी की स्मगलिंग बहुत ज्यादा होती थी, तब यह 1,200-1,500 रुपये प्रति बैग थी. उन्होंने कहा कि सुपारी ज्यादातर पड़ोसी असम के व्यापारी खरीदते थे, जबकि कुछ त्रिपुरा से भी प्रोडक्ट खरीदने आते थे. 

रिजवान नूर खान
नोएडा | Published: 24 Nov, 2025 | 11:42 AM

म्यांमार से भारत में स्मगल की जा रही सुपारी के चलते देश के सुपारी किसानों को भारी नुकसान हो रहा था. घरेलू बाजार् में किसानों को सुपारी की सही कीमत नहीं मिलने और उपज बिक्री में देरी ने किसानों की वित्तीय रूप से कमर तोड़ दी थी. सरकार हर बार सुपारी तस्करी के मामले पकड़ती और कार्रवाई करती, लेकिन तस्कर कुछ दिन बाद फिर से स्मगलिंग शुरू कर देते थे. अब केंद्र सरकार की सुरक्षाबलों को दी गई जिम्मेदारी के बाद स्मगलिंग रैकेट का भंडाफोड़ करते हुए सीमावर्ती हिस्सों में फैले नेटवर्क को तोड़ दिया है, जिससे पूर्वोत्तर के किसानों के साथ ही देश अन्य हिस्से के सुपारी किसानों को बाजार में अच्छा भाव मिलने लगा है.

भारत में सुपारी कई राज्यों में उगाई जाती है. सर्वाधिक सुपारी किसान दक्षिण भारत के कर्नाटक, केरल में हैं और उसके बाद पूर्वोत्तर राज्यों असम, मिजोरम, मेघालय समेत अन्य इलाकों में किसान खूब सुपारी उगाते हैं. पूर्वोत्तर में मिजोरम की कई किलोमीटर लंबी सीमा म्यांमार से लगती है. यहां तस्कर म्यांमार से सस्ते दामों में सुपारी लाकर स्थानीय बाजारों में खपाते थे. इससे मिजोरम के मामित जिले और अन्य हिस्सों के किसानों को उपज का बहुत काम दाम मिल रहा था और उपज की बिक्री में देरी हो रही थी.

इस सीजन सुपारी किसानों ने 50 करोड़ की उपज काटी

मिजोरम के मामित जिले में सुपारी उगाने वाले किसानों को इस साल अपनी फसल के अच्छे दाम मिले हैं, क्योंकि म्यांमार से सुपारी की तस्करी काफी कम हो गई है. पीटीआई ने एक अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में बताया है. यहां के हछेक इलाके में सुपारी उगाने वालों को रिप्रेजेंट करने वाली एसोसिएशन हछेक बियाल कुहवा चिंगटू पावल (HBKCP) के जनरल सेक्रेटरी विक्टर एमएस डावंगलियाना ने कहा कि लोकल किसानों ने इस साल लगभग 50 करोड़ रुपये की सुपारी काटी है, क्योंकि कीमतें पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा हैं.

32 गांव में से 30 गांव के किसान सुपारी की खेती कर रहे

हछेक बियाल कुहवा चिंगटू पावल (HBKCP) के जनरल सेक्रेटरी विक्टर एमएस डावंगलियाना ने कहा कि हछेक इलाके के करीब 32 गांवों में से करीब 30 गांवों में सुपारी उगाई जाती है, और अभी कटाई का मौसम अगले साल अप्रैल तक चलेगा. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की सख्ती और स्मगलर नेटवर्क को तोड़ दिया है. म्यांमार से स्मगलिंग कम होने से किसान लोकल सुपारी सही दामों पर बेच पा रहे हैं.

सुपारी एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी ने कहा कि सुपारी अब 2,500-3,000 रुपये प्रति बैग बिक रही है, जबकि जब सुपारी की स्मगलिंग बहुत ज्यादा होती थी, तब यह 1,200-1,500 रुपये प्रति बैग थी. उन्होंने कहा कि सुपारी ज्यादातर पड़ोसी असम के व्यापारी खरीदते थे, जबकि कुछ त्रिपुरा से भी प्रोडक्ट खरीदने आते थे.

अकेले एक गांव ने बेची 10 करोड़ की सुपारी

HBKCP फसल की कटाई का जश्न मनाने के लिए 8 दिसंबर को एक सुपारी फेस्टिवल ऑर्गनाइज़ करेगा. उन्होंने कहा कि यह प्रोग्राम रेंगदिल गांव में होगा, जिसके दौरान कई तरह के स्पोर्ट्स इवेंट होंगे. एसोसिएशन ने कहा कि रेंगदिल गांव, जहां यह फेस्टिवल होगा, अकेले इस साल लगभग 10 करोड़ रुपये की सुपारी बेच चुका है. गांव में लगभग 380 परिवार सुपारी उगाते हैं. मिज़ोरम के अलग-अलग हिस्सों में सुपारी उगाई जाती है, खासकर त्रिपुरा और बांग्लादेश की सीमा से लगे मामित जिले और कोलसिब में, जिसकी सीमा असम से लगती है. मामित जिले के हछेक इलाके में सुपारी की खेती 1950 में शुरू हुई थी.

510 किलोमीटर लंबी सीमा पर असम राइफल्स की चौकसी

अधिकारियों के मुताबिक, राज्य सरकार मामित और कोलासिब जिलों में दो प्रोसेसिंग यूनिट लगा रही है. इससे पहले होम डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने कहा था कि भारत-म्यांमार बॉर्डर पर सुरक्षा बढ़ाए जाने की वजह से म्यांमार से ड्रग और सुपारी की तस्करी में काफी कमी आई है. मिजोरम का म्यांमार के साथ 510 km लंबा बॉर्डर है, और असम राइफल्स इंटरनेशनल बॉर्डर की रखवाली कर रही है.

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