किसानों को खेती कार्यों के लिए पैसे की कमी बड़ा संकट बनती जा रही है. इंडस्ट्री अनुमानों के अनुसार 60 फीसदी किसानों तक वित्तीय मदद समय पर नहीं पहुंच पा रही है. जबकि, बैंकों और एनबीएफसी या फाइनेंस कंपनियों के जटिल प्रक्रिया के चलते छोटे किसानों के लिए पैसा हासिल करना चुनौती बन रहा है. ऐसे में इस संकट को दूर करने के लिए इंटीग्रेटेड ग्रेन कॉमर्स प्लेटफॉर्म Arya.ag ने साउथ इंडियन बैंक के साथ करार किया है.
आर्या एजी और साउथ इंडियन बैंक का करार
भारत का सबसे बड़ा और एकमात्र प्रॉफिटेबल इंटीग्रेटेड ग्रेन कॉमर्स प्लेटफॉर्म Arya.ag ने बिजनेस कॉरेस्पोंडेंट मॉडल के तहत साउथ इंडियन बैंक के साथ स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप की घोषणा की है. इसका मकसद वेयरहाउस रिसीट फाइनेंसिंग के जरिए छोटे किसानों और फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (FPOs) और एग्री एंटरप्राइजेज को फॉर्मल क्रेडिट एक्सेस देना है.
इस करार के तहत छोटे किसानों, किसान उत्पादक संगठनों और कृषि से जुड़ी संस्थाओं को फंड की जरूरत को पूरा किया जाएगा. इसके साथ ही दूरदराज के एग्रीकल्चरल जिलों में कम लागत वाले कोलेटरल बैक्ड लोन देकर फसल कटाई के बाद की खेती में फाइनेंसिंग की कमी को काफी हद तक दूर करना है.
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60 फीसदी छोटे किसानों के पास फॉर्मल क्रेडिट तक पहुंच नहीं
इंडस्ट्री अनुमानों के मुताबिक भारत के 60 फीसदी से ज्यादा छोटे किसानों के पास फॉर्मल क्रेडिट यानी पैसा हासिल करने की पहुंच नहीं है. जबकि, फसल कटाई के बाद का फाइनेंस खास तौर पर बहुत कम है. हालांकि ऐसे क्रेडिट की मांग 1.4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा है, बैंक आमतौर पर इस जरूरत का सिर्फ़ एक छोटा सा हिस्सा ही पूरा करते हैं और अक्सर छोटे और मार्जिनल प्रोड्यूसर को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. ग्रामीण बाजारों में एग्री ट्रेडर्स को भी फसल चक्र में अपनी वर्किंग कैपिटल की जरूरतों को मैनेज करने के लिए स्ट्रक्चर्ड फाइनेंस तक पहुंचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
हमारा टारगेट ग्रामीण फाइनेंस की चुनौतियां दूर करना – आनंद चंद्रा
पूरे भारत के एग्री इकोसिस्टम में छोटे किसान और लोकल एग्री ट्रेडर्स दोनों को अक्सर फॉर्मल कोलैटरल और विजिबिलिटी की कमी के कारण सिस्टमिक क्रेडिट गैप का सामना करना पड़ता है. Arya.ag ने कहा कि हमने स्टोर की गई कमोडिटी में ही पोस्ट हार्वेस्ट फाइनेंस को फिर से सोचा है. हमारे प्लेटफॉर्म के जरिए हर अनाज एक डिजिटल एसेट बन जाता है जिसे ट्रांसपेरेंट तरीके से स्टोर, फाइनेंस या बेचा जा सकता है.
Arya.ag के को-फाउंडर और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आनंद चंद्रा ने कहा कि “साउथ इंडियन बैंक का मजबूत इंस्टीट्यूशनल कमिटमेंट और बड़ी पहुंच उन्हें एक नेचुरल पार्टनर बनाती है, क्योंकि हम भारत के दूरदराज के एग्रीकल्चरल जिलों के करीब जिम्मेदार, रिस्क कम क्रेडिट लाने के लिए काम करते हैं. साथ मिलकर हमारा लक्ष्य ग्रामीण फाइनेंस में एक असली और लगातार चुनौती को हल करना है और 250 करोड़ रुपये से ज्यादा की पार्टनरशिप को आसान बनाना है.
Arya.ag देश के 425 जिलों में 11000 से ज्यादा डिजिटाइज़्ड वेयरहाउस के जरिए स्टोरेज, एम्बेडेड फाइनेंस और मार्केट लिंकेज सहित एंड-टू-एंड पोस्ट हार्वेस्ट सर्विसे देता है. साउथ इंडियन बैंक के साथ अलायंस से किसान अपनी उपज को सुरक्षित रूप से स्टोर कर सकेंगे और तुरंत क्रेडिट ले सकेंगे, जिससे उन्हें फसल कटाई के तुरंत बाद दबाव में बेचने के बजाय सही समय पर बेचने की फ्लेक्सिबिलिटी मिलेगी.
किसान उपज स्टोर कर मुनाफा बना सकते हैं – सेंथिल कुमार
साउथ इंडियन बैंक के SGM और हेड क्रेडिट सेंथिल कुमार ने इस पहल में बैंक की भूमिका के बारे में बताया कि Aarya.ag के साथ पार्टनरशिप से हम भारत के खेती-बाड़ी करने वाले समुदायों को बहुत जरूरी क्रेडिट दे पाएंगे. किसान अब Arya.ag के डेटा रिच और डिजिटाइज्ड वेयरहाउसिंग सॉल्यूशंस का फायदा उठाकर अपनी उपज को स्टोर कर सकते हैं और अपनी कमाई को ज्यादा करने के लिए सही समय पर बेच सकते हैं. इससे भारत के किसानों के लिए अपनी उपज से ज्यादा मुनाफा कमाने के दरवाजे खुलते हैं. यह हमें भारत के छोटे किसानों को फ़ॉर्मल क्रेडिट देने का मौका भी देता है.
Aarya.ag का वेयरहाउस रिसीट फ़ाइनेंसिंग मॉडल कर्ज लेने वाले की क्रेडिट की योग्यता से रिस्क को स्टोर की गई चीज की क्वालिटी और वैल्यू पर ले आता है.इससे किसान, FPO और खेती-बाड़ी करने वाले ट्रेडर बिना किसी पारंपरिक कोलैटरल या मुश्किल कागजात के क्रेडिट ले सकते हैं. यह पार्टनरशिप उन इलाकों में खास तौर पर जरूरी है जहा पारंपरिक बैंकिंग की पहुच सीमित है या है ही नहीं.
पिछले फाइनेंशियल ईयर में Arya.ag ने को-लेंडिंग और कॉरेस्पोंडेंट पार्टनरशिप के ज़रिए USD 1.54 बिलियन से ज्यादा का क्रेडिट दिया, और ज़ीरो NPA रिपोर्ट किया. FY25 तक Arya.ag 800,000 किसानों और 1,600 से ज्यादा FPO तक पहुंच चुका है, जिनमें से कई ऐसे इलाकों में काम करते हैं जो क्लाइमेट वल्नरेबिलिटी और फाइनेंशियल एक्सक्लूजन दोनों का सामना कर रहे हैं.