GST से परेशान किसान, जानिए क्यों घट सकती है सुपारी की मांग?

अन्य कृषि इनपुट पर केवल 5 फीसदी GST लगता है, वहीं कॉपर सल्फेट पर 18 फीसदी टैक्स लगाया जा रहा है. किसानों का कहना है कि इस असमानता से खेती की लागत बढ़ रही है और उनका मुनाफा घट रहा है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 6 Sep, 2025 | 07:57 AM

सुपारी की खेती करने वाले किसान इन दिनों दिक्कतों से जूझ रहे हैं. एक ओर खेती में इस्तेमाल होने वाले अहम फफूंदनाशक कॉपर सल्फेट पर 18 फीसदी जीएसटी लगाया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर पान मसाला पर टैक्स बढ़ने से सुपारी की खपत कम होने का डर किसानों को सता रहा है. किसान संगठनों का कहना है कि अगर सरकार ने इस मुद्दे पर जल्द कदम नहीं उठाए, तो लाखों छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका खतरे में पड़ सकती है.

कॉपर सल्फेट पर क्यों हो रहा विवाद

businessline की खबर के अनुसार, कॉपर सल्फेट सुपारी की खेती में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह फसल को सड़न और फफूंद से बचाता है और मिट्टी की गुणवत्ता भी बेहतर करता है. यही नहीं, इसका इस्तेमाल कॉफी, इलायची, रबर और काली मिर्च जैसी बागवानी फसलों में भी किया जाता है. किसान बताते हैं कि यह दवा वर्षों से परखी हुई है और खासतौर पर छोटे किसान इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं.

समस्या यह है कि जहां अन्य कृषि इनपुट पर केवल 5 फीसदी GST लगता है, वहीं कॉपर सल्फेट पर 18 फीसदी टैक्स लगाया जा रहा है. किसानों का कहना है कि इस असमानता से खेती की लागत बढ़ रही है और उनका मुनाफा घट रहा है. इसके अलावा, कॉपर सल्फेट को कभी माइक्रोन्यूट्रिएंट और कभी औद्योगिक ग्रेड में गिनने की वजह से भ्रम पैदा हो रहा है. किसान संगठनों ने सरकार से मांग की है कि कृषि उपयोग वाले कॉपर सल्फेट के लिए अलग कोड तय किया जाए और टैक्स को घटाकर 5 फीसदी किया जाए.

पान मसाला पर टैक्स और सुपारी की खपत

सुपारी बाजार को प्रभावित करने वाला एक और मुद्दा है पान मसाला पर बढ़ा टैक्स. सरकार ने पान मसाला को 40 फीसदी जीएसटी की श्रेणी में रखा है. किसानों का कहना है कि इस फैसले का असर तुरंत तो नहीं दिखेगा, लेकिन धीरे-धीरे उपभोक्ता इसकी खपत घटा सकते हैं. अगर पान मसाला की खपत घटी तो सुपारी की मांग पर सीधा असर पड़ेगा.

किसान नेताओं का मानना है कि सुपारी को लेकर समाज में पहले से ही गलत धारणाएं मौजूद हैं. बहुत से लोग सुपारी को सीधे तौर पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मानते हैं, जबकि शुद्ध सुपारी में तंबाकू नहीं होता. कैम्पको के अध्यक्ष किशोर कुमार कोडगी का कहना है कि इस तरह के टैक्स नियम इन गलत धारणाओं को और मजबूत कर रहे हैं. उन्होंने यह भी बताया कि सुपारी के स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करने के लिए कृषि मंत्रालय ने वैज्ञानिक समिति बनाई है, लेकिन अभी तक उसकी रिपोर्ट सामने नहीं आई है.

किसानों की अपील

किसान संगठनों का कहना है कि सुपारी की खेती का क्षेत्रफल हाल के वर्षों में बढ़ा है, लेकिन बीमारियों और उत्पादन लागत की वजह से उपज उम्मीद से कम है. ऊपर से टैक्स बोझ किसानों के लिए परेशानी बढ़ा रहा है. किसान चाहते हैं कि सरकार जल्द से जल्द कॉपर सल्फेट पर जीएसटी घटाए, कृषि उपयोग के लिए अलग नियम बनाए और सुपारी को लेकर फैली गलत धारणाओं को दूर करे.

किसानों का मानना है कि अगर इन समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो सुपारी की खेती करने वाले लाखों परिवार आर्थिक संकट में घिर जाएंगे.

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