संतान सुख देती हैं स्कंदमाता, सर्वाना झील से जुड़ा है कार्तिकेय के जन्म का रहस्य

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है, जो शक्ति और करुणा की देवी हैं. उनकी पूजा से जीवन में शांति, समृद्धि आती है. उन्हें निसंतान दंपतियों को संतान सुख देने वाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है.

Kisan India
Noida | Updated On: 3 Apr, 2025 | 01:54 PM

चैत्र नवरात्रि का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है, और इसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान, हर दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि के पांचवे दिन विशेष रूप से मां स्कंदमाता की पूजा की जाती है. मां स्कंदमाता को शक्ति और करुणा की देवी के रूप में पूजा जाता है. इसके साथ ही उन्हें भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की मां के रूप में भी जाना जाता है. उनका स्वरूप अत्यंत दिव्य और तेजस्वी है, और उनकी पूजा से जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

संतान सुख देती हैं स्कंदमाता

मां स्कंदमाता का स्वरूप अत्यंत सौम्य और कृपाशील होता है. माता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसलिए उन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. उनके चार भुजाएं होती हैं जिनमें से दो हाथों में कमल का फूल, एक हाथ अभय मुद्रा में है, जिससे वे भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं, जबकि दूसरी भुजा में वे अपने पुत्र कार्तिकेय को गोदी में पकड़े रहती हैं. मां स्कंदमाता की पूजा से भक्तों को मानसिक शांति, संतान सुख और जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.

स्कंदमाता का प्रिय रंग और भोग

मां स्कंदमाता के इस स्वरूप के साथ कुछ विशेष रंग जुड़े हुए हैं, जिन्हें पूजा के दौरान ध्यान में रखना बेहद जरूरी होता है. पूजा के दिन लोग पीला रंग विशेष रूप से पहनते हैं. वहीं माता का प्रिय भोग केला होता है. किंतु आप चाहे तो माता को केले के साथ खीर का भोग लगा सकते है. पीला रंग पाजिटिव एनर्जी के साथ मानसिक शांति और समृद्धि के लिए काफी शुभ माना जाता है.

माता सती का देहत्याग और पार्वती का तप

मान्यताओं के अनुसार, जब माता सती ने अपनी देह त्याग दी, तो भगवान शिव ने तपस्या में लीन हो गए. इस बीच, तारकासुर और सुरपद्मन नामक राक्षसों ने देवताओं पर अत्याचार शुरू कर दिया. इन राक्षसों का वध केवल भगवान शिव की संतान ही कर सकती थी, लेकिन शिव के पास संतान नहीं थी. देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद मांगी, लेकिन उनसे कोई सहायता नहीं मिली. तब नारद मुनि ने माता पार्वती को भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए तपस्या करने का सुझाव दिया. माता पार्वती ने घोर तपस्या की और भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया.

सर्वाना झील से जुड़ा है कार्तिकेय के जन्म का रहस्य

माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह के बाद एक बीज का जन्म हुआ, जो अत्यधिक गर्म था. उसे सुरक्षित रखने के लिए बीज को गंगा नदी में भेजा गया, और वहां से वह बीज सर्वाना झील में पहुंचा, जहां माता पार्वती ने उसे धारण किया और भगवान कार्तिकेय की गर्भ में उत्पत्ति हुई. कुछ समय बाद, भगवान कार्तिकेय ने जन्म लिया और राक्षसों का वध किया. इसी कारण मां दुर्गा को स्कंदमाता के रूप में पूजा जाता है.

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Published: 3 Apr, 2025 | 12:50 PM

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