TNAU ने विकसित की देश की पहली इको-फ्रेंडली जिंक खाद, जानिए कैसे खेती में आएगा बदलाव

खेती में जिंक की कमी एक सामान्य समस्या है, खासकर धान और गेहूं जैसी मुख्य फसलों में. जिंक सल्फेट का उपयोग तो वर्षों से होता रहा है, लेकिन यह पौधों द्वारा उतना प्रभावी रूप से अवशोषित नहीं हो पाता. इसी कमी को देखते हुए TNAU की टीम ने समाधान तैयार किया.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 3 Dec, 2025 | 09:43 AM

देश में टिकाऊ और पर्यावरण–अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के लिए तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (TNAU) ने एक बड़ा कदम उठाया है. पौधों में जिंक की कमी को दूर करने के लिए तैयार किया गया एक नया इको-फ्रेंडली जिंक फर्टिलाइजर अब भारत सरकार द्वारा पेटेंट किया गया है. यह पेटेंट न केवल वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि किसानों के लिए भी बड़ी उम्मीद लेकर आया है, क्योंकि यह खाद पौधों में जिंक की उपलब्धता को प्राकृतिक तरीके से बढ़ाता है और उत्पादन में भी सुधार करता है.

क्या है TNAU का नया आविष्कार?

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने एक अनोखा “एक्सो-Polysaccharide आधारित केलेटेड जिंक फर्टिलाइजर” विकसित किया है, जिसे पेटेंट नंबर 574341 के तहत मान्यता मिली है. इस खाद का खास पहलू यह है कि इसमें सिंथेटिक केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं हुआ है, बल्कि प्राकृतिक रूप से मिलने वाले Exo-Polysaccharide (EPS) को बेस बनाया गया है.

EPS को Bacillus paralicheniformis बैक्टीरिया की कोशिका भित्ति से निकाला गया है, यह बैक्टीरिया धान की खेती वाले सोडिक मिट्टी क्षेत्रों से प्राप्त किया गया था. EPS प्राकृतिक रूप से जिंक आयन को बांधकर Zn-EPS तैयार करता है, जिसमें लगभग 16.8% जिंक मौजूद होता है. यह खाद जैव–अपघटनशील (biodegradable) है और प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना मिट्टी में घुलकर पौधों को पोषण देती है.

क्यों है यह फर्टिलाइजर इतना खास?

खेती में जिंक की कमी एक सामान्य समस्या है, खासकर धान और गेहूं जैसी मुख्य फसलों में. जिंक सल्फेट का उपयोग तो वर्षों से होता रहा है, लेकिन यह पौधों द्वारा उतना प्रभावी रूप से अवशोषित नहीं हो पाता. इसी कमी को देखते हुए TNAU की टीम ने ऐसा समाधान तैयार किया जो:

  • पौधों को जिंक जल्दी उपलब्ध करा सके
  • लंबे समय तक मिट्टी में सक्रिय रहे
  • सिंथेटिक केलेटर्स की तुलना में सस्ता और पर्यावरण–अनुकूल हो

EPS आधारित केलेशन पौधों में जिंक की उपलब्धता को काफी बढ़ा देता है. यही कारण है कि फील्ड ट्रायल्स में Zn-EPS ने पारंपरिक जिंक सल्फेट की तुलना में कहीं बेहतर परिणाम दिखाए.

फील्ड ट्रायल्स में क्या मिला?

विश्वविद्यालय द्वारा किए गए फील्ड परीक्षणों में यह सामने आया कि:

  • पौधों की जड़ें अधिक मजबूत हुईं
  • पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा बढ़ी
  • पूरे पौधे की वृद्धि में तेजी देखी गई
  • उपज में स्पष्ट बढ़ोतरी दर्ज की गई

यह परिणाम बताते हैं कि भविष्य में Zn-EPS किसानों के लिए एक भरोसेमंद और प्रभावी विकल्प साबित हो सकता है.

खेती को टिकाऊ बनाने की दिशा में बड़ा कदम

यह खोज भारतीय कृषि के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज दुनिया टिकाऊ खेती और पर्यावरण–अनुकूल रसायनों की ओर बढ़ रही है. प्राकृतिक आधार पर बने इस फर्टिलाइजर के कई फायदे हैं:

  • मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार
  • सिंथेटिक केमिकल्स पर निर्भरता कम
  • माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की उपलब्धता में वृद्धि
  • प्रदूषण और रसायनों से होने वाले नुकसान में कमी

इस पेटेंट के साथ, भारत वैश्विक स्तर पर पर्यावरण–अनुकूल कृषि तकनीकों की श्रेणी में एक नया मानक स्थापित करता है.

किसानों तक पहुंचाने की तैयारी

TNAU अपने पेटेंटेड शोध को किसानों तक पहुंचाने की तैयारी कर रहा है. विश्वविद्यालय की पेटेंट सेल ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अब उत्पादन तकनीक तथा किसानों को प्रशिक्षण देने की दिशा में आगे बढ़ा जा रहा है.

यदि यह तकनीक बड़े पैमाने पर अपनाई जाती है, तो देश के लाखों किसानों को इसका लाभ मिलेगा और भारतीय कृषि टिकाऊ विकास की दिशा में एक मजबूत कदम आगे बढ़ाएगी.

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Published: 3 Dec, 2025 | 09:35 AM

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