विदेशी तकनीक से होगी धान की खेती.. 35 फीसदी कम लगेगा पानी, अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों ने बताई तरकीब

फिलीपींस के कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि भारतीय जलवायु के हिसाब से नई तकनीक को बढ़ावा देना जरूरी ताकि किसान कम लेबर, कम पानी और कम लागत में अधिक पैदावार हासिल कर सकें. वैज्ञानिकों ने बताया कि फसलों में पानी की अधिक इस्तेमाल से बचना होगा.

रिजवान नूर खान
नोएडा | Updated On: 5 Oct, 2025 | 05:23 PM

धान की खेती में कम लागत और ज्यादा मुनाफा पाने के लिए किसानों को तकनीक पर ज्यादा ध्यान देना होगा. क्योंकि, तकनीक की मदद से खेती करने पर समय और पैसे की बचत होगी. जबकि, फसल को रोगमुक्त रखने में भी मदद मिलेगी, जिससे मिट्टी में खतरनाक कीटनाशक डालने से उर्वरा शक्ति को नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकेगा और यह स्थिति अगले फसल चक्र के लिए लाभकारी साबित होगी. खासकर धान की खेती में किसान किस तरह से तकनीक और पद्धतियों का इस्तेमाल करें, जिससे उनकी अतिरिक्त लाभ मिल सके. फिलीपींस के विशेषज्ञों ने किसानों को सीधी धान की बुवाई करने की सलाह दी है.

धान की सीधी बुवाई पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन

किसानों को आधुनिक खेती से जोड़ने की दिशा में एक अहम पहल करते हुए वाराणसी के चांदपुर स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च सेंटर (IRRI) में धान की सीधे बुवाई पर (Direct Seeded Rice DSR) तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ है. यह सम्मेलन 5 से 7 अक्टूबर तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें फिलीपींस समेत दुनियभार के कई देशों से करीब 300 वैज्ञानिक भाग ले रहे हैं.

सूखा-गर्मी में कम लागत में खूब पैदावार देगी विदेशी किस्म

डेनमार्क की कृषि वैज्ञानिक आनंदा शर्नर ने कहा कि हमने ऐसी किस्म विकसित की है जो क्लाइमेट चेंज से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में भी खेती के लिए उपयुक्त है. क्योंकि वह किस्म, कम पानी और कम समय में उग जाती है और सूखा, गर्मी जैसी परिस्थतियां झेल सकती है. फिलीपींस के कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि भारतीय जलवायु के हिसाब से नई तकनीक को बढ़ावा देना जरूरी ताकि किसान कम लेबर, कम पानी और कम लागत में अधिक पैदावार हासिल हो सके. वैज्ञानिकों ने बताया कि सीधी बुवाई (DSR) की इस विधि से पारंपरिक तरीकों की तुलना में लगभग 35 फीसदी तक पानी की बचत होती है.

क्लाइमेट चेंज के असर को कम करना जरूरी

कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि सीधी बुवाई से जुताई समेत अन्य खर्चे कम हो जाते हैं और पानी की बचत खूब होती है. इसके साथ ही मीथेन गैस का उत्सर्जन भी कम होता है, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस आधुनिक पद्धति को अपनाकर किसान कम संसाधनों में अधिक लाभ कमा सकेंगे. कृषि विशेषज्ञ ने अपने-अपने अनुभव साझा किए ताकि आने वाले समय में क्लामेट चेंज से बचाव करते हुए टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल खेती को बढ़ावा दिया जा सके.

धान की सीधी बुवाई डीएसआर विधि क्या है?

धान की सीधे बुवाई (Direct Seeded Rice DSR) विधि में धान के बीजों को सीधे खेत में बोया जाता हैं, जैसे गेहूं या चना की बुवाई करते हैं. इसमें पारंपरिक तरीके की तरह पहले पौध तैयार करके फिर रोपाई करने की जरूरत नहीं होती. यह तकनीक मुख्य रूप से उन इलाकों में अपनाई जा रही है, जहां सिंचाई का पानी सीमित मात्रा में मौजूद हो है. जैसे कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़.

धान बुवाई के लिए सबसे पहले खेत को अच्छी तरह जोतकर समतल बना लें और उसमें हल्की नमी रखें. फिर अच्छे किस्म के धान के बीजों को सीधे खेत में बो दें, जैसे गेहूं या चना बोते हैं. इस विधि में इसमें प्रति हेक्टयर करीब 40 से 50 किलोग्राम धान लग सकता है.

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Published: 5 Oct, 2025 | 05:15 PM

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