Kumbakonam Pan: जब भी पान की बात होती है तो लोगों के जेहन में सबसे पहले बनारसी पान का नाम उभर सामने आता है. लोगों को लगता है कि पूरे देश में सबसे अधिक मशहूर बनारसी पान ही है. हालांकि सच्चाई भी है कि बनारसी पान देश ही नहीं पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन बनारसी पान की तरह देश में कई और पान की किस्में है, जो अपने स्वाद के लिए जाने जाते हैं और उनकी खासियत के लिए उन्हें भौगोलिक संकेतक (जीजाई टैग) भी मिला हुआ है. इन्हीं मशहूर पान में से एक है कुंभकोणम वेट्टिलाई यानी कुंभकोणम पान का पत्ता. खास बात यह है कि इसकी खेती तमिलनाडु में होती है. जीआई टैग मिलने के बाद इसकी मांग बढ़ गई है. ऐसे में इसकी खेती करने वाले किसानों की अच्छी कमाई हो रही है.
कुंभकोणम पान को जीआई टैग इसी साल अप्रैल महीने में मिला है. जीआई टैग के लिए आवेदन वेट्टिलाई उत्पादन नालसंगम ने किया था, जिसमें तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर ने सहयोग दिया. ऐसे कुंभकोणम पान की खेती कावेरी डेल्टा क्षेत्र में की जाती है. खासकर थिरुवैयारू, पापनासम, थिरुविदैममरुदुर, कुंभकोणम और वलैगमन ब्लॉक्स में. इसका इतिहास सदियों पुराना है. हालांकि, इस इलाके में धान, गन्ना और पान बेल जैसी फसलें उगाई जाती हैं.
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हर 15 से 18 दिन में तोड़ा जाता है पत्ता
पान के पत्ते तमिल संस्कृति में एक खास जगह रखते हैं. इन्हें मंदिरों में चढ़ाया जाता है और धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर शादी-ब्याह, जन्म संस्कार और अंतिम संस्कार तक हर रस्म में इनका उपयोग किया जाता है. थंजावुर जिले के थिरुपून्थुरुथी गांव इस पान की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. यहां के किसानों के मुताबिक, सामान्यत: दूसरे इलाकों में पान के पत्ते हर 30 दिन में तोड़े जाते हैं, जबकि कुंभकोणम पान हर 15 से 18 दिन में तोड़ा जाता है. इसी वजह से इसके पत्ते बेहद मुलायम और खास होते हैं.
25,000 एकड़ जमीन पर होती है खेती
इस खास किस्म की खेती केवल थंजावुर-कुंभकोणम क्षेत्र में ही होती है, जहां का मौसम और उपजाऊ दोमट मिट्टी पान की खेती के लिए सबसे उपयुक्त है. थंजावुर जिले में लगभग 20,000 से 25,000 एकड़ जमीन पर पान की खेती होती है. खासकर थिरुकट्टुपल्ली, करुप्पुर, कोनेरिराजापुरम, थिरुपून्थुरुथी, राजगिरी, अवूर और पांडरावदई जैसे इलाकों में किसान इसकी बहुत अधिक खेती करते हैं.
दवा के रूप में होता है इस्तेमाल
पांडरावदई के पान किसानों की माने तो यहां उगाई जाने वाली ‘वेल्लैकोडी’ किस्म में भी औषधीय गुण होते हैं, जिससे सिरदर्द में राहत मिलती है. कटाई के बाद ये पत्ते कुंभकोणम शहर के व्यापारियों को बेचे जाते हैं, जहां से इन्हें अन्य जिलों में भेजा जाता है. पहले किसान यहां ‘पचैकोडी’ किस्म की खेती भी करते थे.
भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (बेंगलुरु) के अनुसार, कुंभकोणम पान अपनी मुलायम बनावट के लिए प्रसिद्ध ह. इसकी विशेषता कावेरी नदी के किनारे की मिट्टी से आती है, जो जैविक तत्वों से भरपूर होती है. ‘वेल्लैकोडी’ किस्म के पत्ते हल्के पीले-हरे रंग और लंबे आकार के होते हैं, जबकि ‘पचैकोडी’ किस्म के पत्ते हरे और दिल के आकार के होते हैं.
लेख और कहानियों में आता है जिक्र
कुंभकोणम पान का जिक्र साहित्य और कविताओं में भी मिलता है. स्वतंत्रता सेनानी सुबरमणिया भारती ने अपनी एक कविता में लिख. जिसकी पंक्तियां हैं ‘गंगा नदी की गेहूं की फसल के बदले, हम कावेरी के पान के पत्ते लेंगे’. इसके अलावा, कुंभकोणम के ही रहने वाले मशहूर लेखक करिचन कुंजू और टी. जनकीरमन ने अपने उपन्यासों में यहां की पान खाने की परंपरा का जिक्र किया है. उन्होंने कहा है कि लोग पान, सुपारी, चुना और गुलाबजल मिलाकर कुंभकोणम पान तैयार करते हैं, जो स्वाद और खुशबू दोनों में खास होता है.
क्या होता है जीआई टैग
GI मतलब जियोग्राफिकल इंडिकेशन होता है, जो एक एक खास पहचान वाला लेबल होता है. यह किसी चीज को उसके इलाके से जोड़ता है. आसान भाषा में कहें तो ये GI टैग बताता है कि कोई प्रोडक्ट खास तौर पर किसी एक तय जगह से आता है और वही उसकी असली पहचान है. भारत में साल 1999 में ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट’ लागू हुआ था. इसके तहत किसी राज्य या इलाके के खास प्रोडक्ट को कानूनी मान्यता दी जाती है. जब किसी प्रोडक्ट की पहचान और उसकी मांग देश-विदेश में बढ़ने लगती है, तो GI टैग के जरिए उसे आधिकारिक दर्जा मिल जाता है. इससे उसकी असली पहचान बनी रहती है और वह नकली प्रोडक्ट्स से सुरक्षित रहता है.
कुंभकोणम पान से जुड़े आंकड़े
- अप्रैल साल 2025 में मिला जीआई टैग
- तमिलनाडु के तंजावुर जिले में होती है खेती
- 25,000 एकड़ जमीन पर किसान करते हैं खेती
- 15 दिनों में होती है पत्तों की तुड़ाई
- कुंभकोणम पान में औषधीय गुण पाए जाते हैं
- सिर दर्द में लोग इसका इसका इस्तेमाल दवा के रूप में करते हैं