Jeera Phool Paddy: जब भी छत्तीसगढ़ की बात होती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले धान की तस्वीर उभरकर सामने आती है. क्योंकि इस राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है. यहां पर धान की ऐसी पारंपरिक किस्में उगाई जाती हैं, जो स्वाद और सुगंध में बासमती को टक्कर देती हैं. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में उगाए जाने वाले धान की मांग पूरे देश में होती है, क्योंकि इसका स्वाद और खुशबू बासमती जैसा ही होता है. खास बात यह है कि ये खाने में भी सुपाच्य होते हैं. तो आइए आज जानते हैं, छत्तीसगढ़ के मशहूर जीराफूल धान के बारे में. इसकी खासियत के चलते इसे जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई टैग) भी मिला हुआ है.
जीराफूल चावल की खेती सिर्फ उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में होती है. यह राज्य का सबसे महंगा और खास चावल माना जाता है. इसके दाने बहुत पतले और छोटे होते हैं, लेकिन इसकी खुशबू और मिठास इसे बेहद अलग बनाती है. जब किसी घर में जीराफूल चावल पकता है, तो उसकी खुशबू आसपास के घरों तक फैल जाती है. इसका स्वाद भी बेहद लाजवाब होता है. ऐसे जीराफूल चावल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है. यह बाकी चावलों की तुलना में जल्दी और आसानी से पच जाता है. इसी वजह से इसकी मांग सिर्फ भारत में नहीं, बल्कि विदेशों में भी लगातार बढ़ रही है.
इतने दिनों में तैयार हो जाती है फसल
जीराफूल धान की फसल तैयार होने में करीब 120 से 130 दिन लगते हैं. यानी यह सबसे ज्यादा समय लेने वाली किस्मों में से एक है. इसकी खेती के लिए खूब पानी चाहिए, इसलिए इसे गहरे खेतों में लगाया जाता है, ताकि पानी जमा रह सके. यह फसल पूरी तरह ऑर्गेनिक होती है और इसमें सिर्फ जैविक खाद का इस्तेमाल किया जाता है. जीराफूल धान की खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे इसकी असली खुशबू और स्वाद खो जाते हैं. अगर इसमें केमिकल खाद डाली जाए तो चावल की खास पहचान ही खत्म हो जाती है. इसलिए इसकी खेती पूरी तरह जैविक तरीके से की जाती है और सिर्फ ऑर्गेनिक खाद का उपयोग होता है.
जीराफूल चावल की खासियत
पारंपरिक सुगंधित धान की किस्म जीराफूल को बेहतर बनाने और उसकी बौनी (कम ऊंचाई वाली) प्रजाति तैयार करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर में अनुसंधान चल रहा है. दो बार बौनी किस्म तो विकसित की गई, लेकिन उनमें जीराफूल जैसी खुशबू नहीं थी, इसलिए उन्हें किसानों तक नहीं पहुंचाया गया. अब तीसरी बार शोध किया जा रहा है, ताकि ऐसी नई किस्म तैयार हो सके जो खुशबूदार भी हो और ज्यादा उत्पादन भी दे. विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा और उनकी टीम इस सुगंधित धान के संरक्षण पर काम कर रही है. फिलहाल जीराफूल की ऊंचाई ज्यादा होने के कारण इसकी बालियां झुक जाती हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है.
120 रुपये किलो है कीमत
खास बात यह है कि जीराफूल चावल बासमती से भी महंगा बिकता है. ऐसे बासमती चावल का रेट 60 रुपये किलो से चालू हो जाता है, जो 100 रुपये तक जाता है. लेकिन असली जीराफूल चावल बाजार में करीब 100 से 120 रुपये प्रति किलो की कीमत पर बिकता है. यानी इसका रेट बासमती से ज्यादा है. अगर किसान इसकी खेती करते हैं, तो अच्छी कमाई होगी.
क्या होता है जीआई टैग
जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग एक तरह का बौद्धिक संपदा अधिकार है, जो किसी उत्पाद की खास पहचान और गुणवत्ता को उसके विशेष भौगोलिक क्षेत्र से जोड़ता है. यानी किसी उत्पाद की खासियत उसके उत्पादन स्थल की जलवायु, मिट्टी और पारंपरिक तरीके से जुड़ी होती है. इसी पहचान को कानूनी मान्यता देने के लिए GI टैग दिया जाता है. साल 2019 में जीराफूल धान को जीआई टैग मिला है.
खबर से जुड़े कुछ आंकड़े
- साल 2019 में जीराफूल को मिला जीआई टैग
- मार्केट में 100 से 120 रुपये किलो है जीराफूल चावल का रेट
- करीब 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है फसल
- छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में होती है खेती
- इसकी बौनी किस्म पर वैज्ञानिक कर रहे हैं काम
- केवल जैविक तरीके से होती है खेती