Rice Export: भारत के बासमती चावल निर्यातकों के लिए हाल के फैसले ने बड़ी चिंता पैदा कर दी है. एपीडा (APEDA) द्वारा निर्यात अनुबंध पंजीकरण शुल्क को 30 रुपये प्रति टन से बढ़ाकर 70 रुपये प्रति टन करने का निर्णय उद्योग जगत में विवाद का कारण बन गया है. निर्यातक इस बढ़ोतरी के खिलाफ सरकार के सामने मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं.
बढ़ते शुल्क पर निर्यातकों की नाराजगी
पंजाब और हरियाणा के निर्यातक संगठनों का कहना है कि यह शुल्क न तो कर है और न ही उपकर, इसलिए इसके उपयोग और निगरानी का कोई स्पष्ट तरीका नहीं है. उनका तर्क है कि इस बढ़ोतरी से न केवल निर्यातकों पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा, बल्कि यह किसानों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है. उद्योग के अनुसार, अगर चालू वित्त वर्ष में निर्यात पिछले साल के स्तर पर रहा तो एपीडा इस मद से 31 करोड़ रुपये से अधिक वसूल सकता है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 73 फीसदी अधिक है.
निर्यातकों के तर्क और फंड का इस्तेमाल
निर्यातक यह भी मांग कर रहे हैं कि राज्य में बाढ़ और अन्य प्राकृतिक नुकसान के समय बासमती एक्सपोर्ट डेवलपमेंट फाउंडेशन (BEDF) के पास पड़े फंड का उपयोग होना चाहिए था. मार्च 2025 तक BEDF के पास लगभग 25 करोड़ रुपये का फंड पड़ा हुआ था. 2005 में तय नियमों के अनुसार जब तक फंड 10 करोड़ से कम न हो, तब तक कोई शुल्क नहीं लिया जाता. 2013 में शुल्क 50 रुपये प्रति टन और 2014 में घटाकर 30 रुपये प्रति टन किया गया.
प्रक्रिया पर उठे सवाल
हरियाणा राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (HREA) ने आरोप लगाया कि 24 जून 2025 को हुई BEDF बोर्ड की बैठक में इस बढ़ोतरी पर कोई चर्चा या मंजूरी नहीं हुई थी. बावजूद इसके अगस्त 2025 में एपीडा ने सर्कुलर जारी कर 70 रुपये प्रति टन शुल्क लागू कर दिया. एपीडा का कहना है कि वाणिज्य मंत्रालय ने इसे मंजूरी दी है और अब सभी पंजीकरण इसी दर पर होंगे.
निर्यात आंकड़े और संभावित असर
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने करीब 60.7 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया, जिसकी कीमत लगभग 5.94 अरब डॉलर रही. अप्रैल-अगस्त 2025 के बीच 27.3 लाख टन निर्यात हुआ, जिसमें पुरानी दर से एपीडा ने 8 करोड़ रुपये से अधिक वसूल किए. सितंबर से मार्च के बीच नए दर लागू होने पर लगभग 30 लाख टन का निर्यात हो सकता है, जिससे 23 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूली होने की संभावना है.
उद्योग में मतभेद और विरोध
पंजाब राइस मिलर्स एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन ने इसे “असामान्य वृद्धि” बताते हुए तुरंत वापस लेने की मांग की है. HREA भी 30 रुपये प्रति टन की पुरानी दर को बहाल करने की अपील कर रहा है. निर्यातकों का कहना है कि मौजूदा हालात में यह बढ़ोतरी किसानों और व्यापारियों दोनों के लिए अतिरिक्त बोझ है.
सरकार का रुख
मई 2025 में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने सुझाव दिया था कि शुल्क 100 रुपये प्रति टन तक किया जा सकता है, लेकिन उस बैठक में कई बड़े निर्यातकों ने इसका विरोध किया था. अब निर्यातक और उद्योग संगठन मिलकर सरकार के सामने अपनी नाराजगी दर्ज कराएंगे और शुल्क में संशोधन की मांग करेंगे.