भारत में भैंस पालन हमेशा से किसानों की आमदनी का मजबूत जरिया रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी देसी भैंस भी है, जिसके दूध से निकलने वाला घी पूरे गांव में खुशबू फैला देता है? जी हां, हम बात कर रहे हैं भदावरी भैंस (Bhadawari Buffalo) की-जिसे घी देने वाली भैंस कहा जाता है. यह न केवल अपने गाढ़े और ज्यादा वसा वाले दूध के लिए जानी जाती है, बल्कि अपनी सहनशक्ति और सादगी भरे पालन के कारण किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है.
भदावरी भैंस- भारत की गर्वित देसी नस्ल
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भदावरी भैंस भारत की पारंपरिक और दुर्लभ नस्लों में से एक है. इसका नाम भदावर नामक एक पुराने रियासती इलाके से पड़ा है, जो आज के उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हिस्सों में फैला हुआ था. यह नस्ल मुख्य रूप से भिंड, मुरैना, आगरा और एटावा जिलों में पाई जाती है. इस नस्ल को भदौरिया राजवंश ने वर्षों तक संरक्षित किया. इसकी खासियत यह है कि यह भैंस कठोर जलवायु, कम पोषण वाले चारे और मुश्किल हालातों में भी टिक जाती है. इसलिए इसे किसानों के लिए कम खर्च में ज्यादा फायदा देने वाली नस्ल कहा जाता है.
दिखने में खूबसूरत और पहचान में अलग
भदावरी भैंस की सबसे बड़ी पहचान उसका गहरा तांबे जैसा रंग है. इसकी टांगें हल्की सुनहरी या भूरे रंग की होती हैं और गले के नीचे दो सफेद पट्टियां होती हैं, जिन्हें स्थानीय भाषा में कंठी कहा जाता है. इसके सींग पीछे की ओर मुड़कर ऊपर उठते हैं, जिससे इसका सिर चौड़ा और आकर्षक लगता है. शरीर मध्यम आकार का होता है, लेकिन यह बेहद मजबूत और सधे हुए ढांचे की होती है. यही वजह है कि किसान इसे न सिर्फ दूध के लिए बल्कि हल्के कृषि कार्यों में भी इस्तेमाल करते हैं.
दूध में वसा की मात्रा सबसे अधिक
भदावरी भैंस की असली पहचान उसके दूध की गुणवत्ता में है. इसका दूध गाढ़ा, मलाईदार और अत्यधिक वसा वाला होता है. राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) के अनुसार, भदावरी भैंस के दूध में औसतन 7.9 फीसदी फैट पाया जाता है, जबकि कुछ मामलों में यह 12 फीसदी तक पहुंच जाता है- जो भारत की किसी भी अन्य भैंस नस्ल से अधिक है. यही कारण है कि इसका दूध घी और मक्खन बनाने के लिए सबसे आदर्श माना जाता है. ग्रामीण इलाकों में तो यह भैंस घी देने वाली भैंस के नाम से ही प्रसिद्ध है.
दूध उत्पादन-कम मात्रा, लेकिन अधिक गुणवत्ता
अगर मात्रा की बात करें तो भदावरी भैंस अन्य नस्लों की तुलना में थोड़ा कम दूध देती है, लेकिन उसकी गुणवत्ता उसे खास बनाती है. एनडीडीबी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक भदावरी भैंस एक ब्यांत में 1200 से 1400 लीटर तक दूध देती है. पहली बार यह भैंस लगभग 44 महीने की उम्र में ब्याती है और हर 16-18 महीनों के अंतराल पर फिर से दूध देना शुरू करती है. कम मात्रा के बावजूद इसके दूध से मिलने वाली मलाई और घी की कीमत इसे किसानों के लिए बेहद फायदेमंद बनाती है.
पालन-पोषण आसान और कम खर्च वाला
भदावरी भैंसों को अर्ध-व्यापक प्रणाली (Semi-Intensive System) में पाला जाता है. यानी किसान इन्हें अपने घर के पास बनाए गए बाड़ों में रखते हैं और चारा व दाना दोनों देते हैं. इन्हें जौ, चोकर, गेहूं, मक्का जैसी चीजें खिलाई जाती हैं, जिन्हें भिगोकर या उबालकर दिया जाता है. किसान इन्हें दिन में कुछ समय खुला छोड़ते हैं ताकि वे चल-फिर सकें. इस नस्ल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम गुणवत्ता वाले चारे पर भी टिक जाती है और बीमारियां भी बहुत कम पकड़ती है, जिससे पालन खर्च काफी घट जाता है.
किसानों के लिए कमाई का बढ़िया साधन
भदावरी भैंस का दूध और घी दोनों ही बाजार में ऊंचे दामों पर बिकते हैं. ग्रामीण इलाकों में किसान इसे स्थानीय डेयरी और मिठाई दुकानों को बेचकर अच्छी आमदनी कर लेते हैं. इसके अलावा, इस नस्ल का उपयोग हल्के कृषि कार्यों में भी किया जाता है, जिससे किसानों को दोहरा लाभ मिलता है. सरकार भी अब देशी नस्लों के संरक्षण और प्रोत्साहन के लिए कई योजनाएं चला रही है, जिनमें भदावरी भैंस को खास स्थान मिला है.