प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले की एक साहसी और मेहनती महिला सुमा उईके का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि कैसे एक साधारण गृहिणी ने आत्मविश्वास, आजीविका मिशन और थोड़ी सी मदद के सहारे खुद को आत्मनिर्भर बनाया और दर्जनों महिलाओं को आगे बढ़ने की प्ररेणा दी. प्रधानमंत्री के मुंह से नाम सुनने के बाद अब सुमा दीदी न सिर्फ बालाघाट बल्कि पूरे प्रदेश की महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गई है.
गृहिणी से बनीं ग्रामीण महिला उद्यमी
भजियापार गांव की रहने वाली सुमा उईके कभी सिर्फ घर के कामों तक सीमित थीं. लेकिन जब आजीविका मिशन से जुड़ीं तो उन्हें स्व-सहायता समूहों का महत्व समझ में आया. उन्होंने अपने गांव की महिलाओं को जोड़ा और ‘आदिवासी आजीविका विकास स्व-सहायता समूह’ बनाया. फिर आर-सेटी (RSETI) से मशरूम उत्पादन और CTC से पशुपालन का प्रशिक्षण लिया. 2021 में महज 2000 रुपये से मशरूम उत्पादन शुरू किया, हालांकि लॉकडाउन में कई दिक्कतें आईं. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी.
दीदी कैंटीन से मिली नई उड़ान
मध्य प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अनुसार, 2022 में कटंगी जनपद परिसर में उन्हें ‘दीदी कैंटीन’ चलाने का मौका मिला. इससे उनकी मासिक आमदनी करीब 8000 रुपये हो गई. फिर उन्होंने अपने समूह की एक महिला को भी वहां काम दिलाया. कैंटीन की सफलता ने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया.

दीदी कैंटीन में महिलाओं के साथ
अब थर्मल थैरेपी सेंटर की मालकिन
इसके बाद उन्होंने थर्मल थैरेपी का प्रशिक्षण लिया और नया बिजनेस शुरू किया. इसके अलावा, मुद्रा योजना के तहत उन्हें 6 लाख रुपये का ऋण लिया, जिससे उन्होंने थर्मल थैरेपी सेंटर शुरू किया. यहां से उन्हें हर महीने लगभग 11,000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी होने लगी. इसी समय उन्होंने एक और भी महिला को रोजगार दिया .
अब हर महिला को कर रही प्रेरित
सुमा दीदी आज मशरूम उत्पादन, दीदी कैंटीन और थर्मल थैरेपी जैसे तीन कामों से जुड़ी हैं और उनकी मासिक आय 19 हजार रुपये तक पहुंच चुकी है. परिवार की कुल आमदनी अब करीब 32 हजार रुपये रुपये हो गई है. यही वजह की वो अब गांव की बाकी महिलाओं को भी स्व-सहायता समूह से जुड़ने और खुद की पहचान बनाने के लिए प्रेरित कर रही हैं.
सुमा दीदी बनीं आत्मनिर्भर भारत की प्रतीक
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘मन की बात’ में उनके नाम का उल्लेख किया जाना पूरे बालाघाट के लिए गौरव की बात है. सीमित साधनों में भी उन्होंने जो कर दिखाया, वह लाखों महिलाओं को बताता है कि अगर जज्बा हो तो कोई भी महिला अपनी नई पहचान बना सकती है. वहीं, सुमा दीदी अब आत्मनिर्भर भारत की जमीनी तस्वीर बन गई हैं.