DAP की कमी से नहीं डरे किसान, चीन की रोक के बीच अपनाए ये देसी विकल्प

डीएपी की किल्लत के बीच किसानों ने पूरी तरह हार नहीं मानी. उन्होंने वैकल्पिक खादों की ओर रुख किया, जो कम फॉस्फोरस लेकिन ज्यादा संतुलित पोषण देते हैं.

नई दिल्ली | Updated On: 30 Jun, 2025 | 03:42 PM

भारत में जब कोई चीज खेती की रीढ़ कही जाती है, तो उसमें खाद का नाम सबसे ऊपर आता है. खासकर डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) की बात करें, तो यह यूरिया के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली खाद है. लेकिन हाल ही में चीन द्वारा इस खाद के निर्यात पर लगाई गई रोक ने भारतीय किसानों और कंपनियों दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. हालांकि, इस संकट ने एक नया रास्ता भी खोल दिया है, अब किसानों ने विकल्प तलाश लिए हैं और अब संतुलित पोषण की ओर रुख कर रहे हैं.

चीन ने क्यों रोक दिया डीएपी का निर्यात?

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चीन पहले भारत को डीएपी की बड़ी आपूर्ति करने वाला देश था. लेकिन अब उसने अपने घरेलू किसानों को प्राथमिकता देने और इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरी जैसे नए फॉस्फेट उपयोगों को ध्यान में रखते हुए डीएपी और उससे जुड़े रसायनों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है.

साल 2023-24 में चीन से भारत को 22.9 लाख टन डीएपी मिला था, जो 2024-25 में घटकर सिर्फ 8.4 लाख टन रह गया. साल 2025 की शुरुआत से अब तक तो चीन से एक किलो भी डीएपी भारत नहीं आया है. इसका असर जून में खरीफ सीजन की बुवाई के समय साफ नजर आया, जब देश में डीएपी का शुरुआती स्टॉक सिर्फ 12.4 लाख टन था, जो पिछले साल के मुकाबले काफी कम था.

कीमतों में उछाल और अंतरराष्ट्रीय बाजार का तनाव

चीन की अनुपस्थिति ने वैश्विक फॉस्फेट बाजार में हलचल मचा दी है. जो डीएपी पहले 2025 की शुरुआत में करीब 630 डॉलर प्रति टन में आ रहा था, उसकी कीमत अब 780 डॉलर से 810 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई है. कुछ जगहों पर यह 2022 के यूक्रेन युद्ध के समय वाली 950 डॉलर की ऊंचाई को छूने के करीब है.

डीएपी बनाने के लिए जरूरी फॉस्फोरिक एसिड की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं, जो अक्टूबर-दिसंबर 2024 में 950 डॉलर थी, वह अब जुलाई-सितंबर 2025 के लिए 1,258 डॉलर प्रति टन हो चुकी है.

किसानों ने कैसे ढूंढा समाधान?

डीएपी की किल्लत के बीच किसानों ने पूरी तरह हार नहीं मानी. उन्होंने वैकल्पिक खादों की ओर रुख किया, जो कम फॉस्फोरस लेकिन ज्यादा संतुलित पोषण देते हैं. उदाहरण के तौर पर:

एपीएस

इसमें डीएपी की तरह 46 फीसदी फॉस्फोरस तो नहीं, लेकिन 20 फीसदी नाइट्रोजन, 20 फीसदी फॉस्फोरस और 13 फीसदी सल्फर होता है. यह तिलहन, दलहन, मक्का, प्याज, मिर्च जैसी फसलें उगाने वाले किसानों के लिए शानदार विकल्प बन गया है. 2022-23 में एपीएस की बिक्री 50 लाख टन थी, जो 2024-25 में बढ़कर रिकॉर्ड 69.7 लाख टन हो गई.

एनपीकेएस कॉम्प्लेक्स खाद

इसका उपयोग भी तेजी से बढ़ा है. बीते एक साल में इन खादों की बिक्री में 28 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि देखी गई है.

सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP)

यह भी डीएपी की तुलना में कम फॉस्फोरस (16 फीसदी) और सल्फर (11 फीसदी) देता है, लेकिन किसानों ने इसे भी अपनाया है. 2023-24 में 45 लाख टन बिकने के बाद अब 2025 में बिक्री 49 लाख टन पार कर चुकी है.

सरकार और कंपनियों की भूमिका

भारत सरकार ने डीएपी की खुदरा कीमत 1,350 रुपये प्रति 50 किलो बैग तय की हुई है, लेकिन वास्तविक बाजार में किसान कई बार 1,700 रुपये तक चुका रहे हैं. इसके मुकाबले एपीएस और एनपीके खादें 1,350-1,800 रुपये के बीच मिल रही हैं, जो किसानों को बेहतर विकल्प दे रही हैं.

इस मौके को भुनाते हुए Coromandel International, IFFCO, FACT, GSFC जैसी कंपनियों ने एपीएस और एनपीके उत्पादों की मार्केटिंग तेज कर दी है.

हो सकता है अवसर

हालांकि डीएपी की कमी किसानों के लिए एक झटका जरूर रही, लेकिन यह एक अवसर भी है. भारत में फॉस्फेट चट्टानों का भंडार सीमित है और हम डीएपी या उसके कच्चे माल के लिए विदेशों पर निर्भर हैं. ऐसे में संतुलित उर्वरकों का उपयोग और कम खपत हमें दीर्घकालिक लाभ दे सकती है.

Published: 30 Jun, 2025 | 03:27 PM