आजादी के 76 साल बाद भी सड़क नहीं, पर हिम्मत से गांव वालों ने खुद बना डाला रास्ता

छत्तीसगढ़ के बडेरा गांव में सड़क न बनने से परेशान ग्रामीणों ने खुद श्रमदान कर रास्ता तैयार किया है. सरकार की अनदेखी के बीच गांव वालों की मेहनत और एकता ने मुश्किल हालात में भी रास्ता दिखाया.

नोएडा | Published: 13 Sep, 2025 | 05:22 PM

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के बडेरा गांव की कहानी एक ऐसी हकीकत है, जो हमें बताती है कि आज भी कई गांव बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. गांव वाले सालों से सड़क की मांग कर रहे हैं, लेकिन न सरकार ने ध्यान दिया, न कोई योजना जमीन पर आई. आखिर में गांव वालों ने खुद ही अपने दम पर सड़क बनाने की ठानी और श्रमदान करके सड़क तैयार करने में जुट गए.

76 साल आजादी के बाद भी नहीं मिली पक्की सड़क

छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले से करीब 190 किलोमीटर दूर बडेरा गांव की हालत ऐसी है कि आज भी वहां जाने के लिए पक्की सड़क नहीं है. आस-पास के कई गांव भी इसी हाल में हैं. बरसात के समय रास्ता इतना खराब हो जाता है कि पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है. कीचड़, गड्ढे और फिसलन से लोग हर साल परेशान होते हैं.

ग्रामीणों ने उठाया फावड़ा, खुद ही बनाई सड़क

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ग्रामीण पत्थर हटाकर और गड्ढे भरकर सड़क बना रहे.

सरकार से जब कोई मदद नहीं मिली, तो गांव के लोगों ने श्रमदान का रास्ता चुना. पिछले 15-20 दिनों से ग्रामीण खुद पत्थर हटाकर और गड्ढे भरकर सड़क बना रहे हैं. कोई फावड़ा चला रहा है, कोई मिट्टी ढो रहा है- सब मिलकर एक ही सपना देख रहे हैं, गांव में एक सही सड़क हो.

लखन, जो खुद इस काम में जुटे हैं, कहते हैं- हर साल यही समस्या होती है. कोई मदद नहीं करता, इसलिए हम खुद ही सड़क बना रहे हैं. अस्पताल जाने और आने-जाने में बहुत दिक्कत होती है.

एंबुलेंस नहीं आती, मरीजों को ढोकर ले जाना पड़ता है

कोई फावड़ा चला रहा तो कोई मिट्टी ढो रहा है.

यह सड़क सिर्फ चलने के लिए नहीं, बल्कि जान बचाने के लिए भी जरूरी है. अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए या डिलीवरी का मामला हो, तो एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाती. रामचंद्र, जो पीली शर्ट में मिट्टी भर रहे थे, कहते हैं- सरपंच से कोई उम्मीद नहीं है. कभी-कभी डिलीवरी हो जाती है तो अस्पताल पहुंचने में दिक्कत आती है. इसलिए हम सेवा भावना से खुद ही सड़क बना रहे हैं. हरिश्चंद्र, लाल टोपी में मेहनत करते हुए बताते हैं- यहां एंबुलेंस तक नहीं आ पाती. आए दिन एक्सीडेंट हो जाते हैं. इसलिए हम लोग खुद मिलकर धीरे-धीरे सड़क सुधार रहे हैं.

बरसात में और बिगड़ जाते हैं हालात

बरसात के दिनों में तो यह पहाड़ी रास्ता और भी खतरनाक हो जाता है. पानी से सड़क कट जाती है, रास्ता फिसलन भरा हो जाता है. कई बार लोग गिरकर चोटिल भी हो जाते हैं. इतना ही नहीं, नेटवर्क की समस्या, जंगली जानवरों का डर और दवाओं की कमी- ये सब मिलकर ग्रामीणों की जिंदगी को और मुश्किल बना देते हैं. एक तरफ सरकार डिजिटल इंडिया और विकास की बात करती है और दूसरी तरफ बडेरा जैसे गांव अब भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहे हैं.

चुनाव में वोट मांगने आते हैं, पर समस्या कोई नहीं सुनता

सबसे दुखद बात यह है कि चुनाव के वक्त नेता इन गांवों में वोट मांगने जरूर आते हैं, लेकिन चुनाव के बाद कोई मुड़कर देखने तक नहीं आता.

गांव वालों का सवाल है – कब तक हम खुद अपनी जरूरतें पूरी करते रहेंगे? क्या सरकार का कोई फर्ज नहीं है? लोगों का कहना है कि नेता अपनी जेब भरने में लगे हैं और आम जनता की परेशानियों पर सिर्फ वादे होते हैं, काम नहीं. गांव के कई बुज़ुर्गों ने बताया कि वे पिछले 40-50 सालों से एक पक्की सड़क का सपना देख रहे हैं, लेकिन अब उम्मीद छोड़ दी है.