Navratri Kanya Poojan: नवरात्रि के 9 दिन भक्त सच्ची आस्था और श्रद्धा से मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा करते हैं और नवरात्रि के अंतिम दिन कन्या पूजन के साथ अपने उपवास का समापन करते हैं. शारदीय नवरात्रि आश्विन प्रतिपदा से शुरू होकर दशहरा तक मनाया जाता है और पूरे 10 दिनों तक माता के जयकारों को गूंज बनी रहती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, जितना महत्व नवरात्रि के नौ दिनों में मां की पूजा-अर्चना का है उतना ही महत्व कन्या पूजन का भी है.आमतौर पर कन्या पूजन अष्टमी या नवमी तिथि को होता है और इसका विशेष महत्व होता है क्योंकि इस दौरान छोटी कन्याओं का देवी के रूप में पूजन किया जाता है.
कन्या पूजन का महत्व
नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को पूज कर व्रत-उपवास का समापन किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि कन्या पूजन के बिना नवरात्रि के 9 दिन की पूजा-अर्चना का फल नहीं मिलता है. इस दिन 2 साल से 10 साल की कन्याओं को मां के 9 रूपों के तौर पर पूजा जाता है. मान्यता है कि इन कन्याओं की पूजा कर भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा का फल एक साथ प्राप्त करते हैं. धार्मिक मान्यता है कि कन्याओं को पूरे सम्मान के साथ भोजन कराने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि देती हैं.
इस विधि से करें पूजन
आम तौर पर कन्या पूजन के लिए 2 साल से लेकर 10 साल तक की 1, 5, 7 या 9 कन्याओं को बुलाया जाता है, इन कन्याओं के साथ एक लड़के को भी पूजा जाता है जिसे भैरव का स्वरूप माना जाता है. पूजन के लिए जमीन या चौकी पर साफ आसन बिछाकर कन्याओं को बैठाएं और उनके पैरों में हल्का जल या दूध जालकर उनके चरणों को पूजें. इसके बाद कन्याओं के माथे पर रोली और अक्षत लगाएं, फिर पुष्प अर्पित करें और आरती उतारें. कन्याओं को परंपरागत रूप से मां के सभी स्वरूपों के प्रिय भोग जैसे से पूड़ी, काले चने और सूजी/आटे का हलवा खिलाया जाता है. कन्याओं को भोजन खिलाने के बाद उन्हें दक्षिणा स्वरूप रुपये, वस्त्र, फल आदि देकर प्रणाम करें और उनसे आशीर्वाद लें. अंत में कन्याओं के पैर छूकर देवी रूप में उन्हें विदा करें.
7 या 9 कितनी कन्याओं का आशीर्वाद है श्रेष्ठ
हिंदू शास्त्रों के अनुसार 9 कन्याएं मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का प्रतीक मानी जाती हैं. इसलिए 9 कन्याओं की पूजा करना शुभ माना जाता है. लेकिन अगर 9 कन्याएं नहीं हैं को 7 कन्याओं को भोजन कराना भी शुभ माना जाता है, क्योंकि ये संख्या सप्तऋषि, सप्तलोक, सप्तसागर, सप्तचक्र आदि से जुड़ी है. अगर कन्याएं कम हैं तो भक्त 5, 7 या यहां तक कि 2 कन्याएं भी पूज सकते हैं. कन्या पूजन के लिए कन्याओं की संख्या जरूरी नहीं है बल्कि जिन भावना से कन्याओं को पूजा जा रहा है, वो ज्यादा महत्वपूर्ण है.