तिजोरी भरनी है तो जरूर करें इस फल की खेती, विदेशों में है जबरदस्त डिमांड

कैक्टस नाशपाती की खेती की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे बहुत कम पानी की जरूरत होती है. यह बंजर जमीन पर भी आसानी से उग जाता है. यानी अगर आपके पास खेती के लिए ज्यादा सिंचाई सुविधा नहीं है, तब भी यह पौधा आपके लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है.

नई दिल्ली | Published: 13 Aug, 2025 | 10:07 AM

खेती की दुनिया में ऐसे कई पौधे हैं जो सुनने में मामूली लगते हैं, लेकिन सही तरीके से उगाने पर किसानों के लिए सोने की खान साबित हो सकते हैं. आज हम आपको ऐसे ही एक सुपरहिट फल के बारे में बताने जा रहे हैंकैक्टस नाशपाती. यह फलकेवल सेहत का खजाना है बल्कि कम लागत में जबरदस्त मुनाफा भी देता है. तो चलिए जानते हैं कैसे इसकी खेती आपकी तिजोरी भर देगी.

क्या है ये फल?

कैक्टस नाशपाती (Prickly Pear) दरअसल कैक्टस प्रजाति का पौधा है, जो सामान्य तौर पर रेगिस्तानी और सूखे इलाकों में पाया जाता है. इसका फल अंडाकार आकार का, मीठा और हल्के लाल, पीले या हरे रंग का होता है. इसमें बीज छोटे-छोटे होते हैं और इसका स्वाद तरबूज और नाशपाती के बीच का होता है.

शरीर के लिए फायदेमंद

खेती में क्यों है बंपर मुनाफा?

कैक्टस नाशपाती की खेती की सबसे बड़ी खासियत है कि इसे बहुत कम पानी की जरूरत होती है. यह बंजर जमीन पर भी आसानी से उग जाता है. यानी अगर आपके पास खेती के लिए ज्यादा सिंचाई सुविधा नहीं है, तब भी यह पौधा आपके लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकता है.

एक एकड़ जमीन में करीब 200 से 300 पौधे लगाए जा सकते हैं. इसकी लागत कम और देखभाल आसान है, लेकिन मुनाफा बड़ा है. किसान भाई एक एकड़ से महीने का 70-80 हजार रुपये तक कमा सकते हैं.

खेती कैसे करें?

जमीन का चुनाव: गर्म और शुष्क क्षेत्र इस पौधे के लिए आदर्श हैं.

रोपण: पौधों को 2-3 मीटर की दूरी पर लगाएं.

सिंचाई: शुरुआती दिनों में हल्की सिंचाई करें, बाद में बारिश या कम पानी में भी यह फलता-फूलता है.

कटाई: पौधारोपण के 10-12 महीने बाद फल तुड़ाई के लिए तैयार हो जाता है.

बाजार: इसकी मांग सालभर बनी रहती है, खासकर हेल्थ-कॉन्शियस लोगों और दवा कंपनियों में.

मार्केट में डिमांड

कैक्टस नाशपाती की मांग सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है. यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों में इसके जूस, जैम, चाय और पाउडर की खासी मांग है. इसके औषधीय गुणों की वजह से यह आयुर्वेदिक और फार्मा कंपनियों के लिए भी बेहद कीमती है.

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