अगले महीने से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार सहित लगभग पूरे देश में धान की रोपाई शुरू हो जाएगी. लेकिन बिहार सहित कई राज्यों में किसानों को मॉनसून के दौरान जहां बाढ़ से जूझना पड़ता है, तो वहीं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में सूखे जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है. इससे फसल को बहुत अधिक नुकसान पहुंचता है. क्योंकि बिहार में कई ऐसे जिले हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है और धान की फसल कई दिनों तक पानी में डूबे रहने के कारण खराब हो जाती है. वहीं, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका बारिश में भी सूखा रह जाता है. इससे भी किसानों को नुकसान होता है. लेकिन अब चिंता करने की जरूरत नहीं है.
दरअसल, आज हम धान की कुछ ऐसी किस्मों के बारे में बात करने जा रही हैं, जिसकी खेती बाढ़ग्रस्त इलाके और बंजर जमीन पर भी की जा सकती है. यानी बाढ़ प्रभावित इलाके के किसान अगर इस खास किस्म की खेती करते हैं, तो पानी में कई दिनों तक पानी ने डूबे रहने के बावजूद भी फसल को नुकसान नहीं होगा. वहीं, बुंदेलखंड के किसान भी धान की खेती आसानी कर सकते हैं, क्योंकि इन किस्मों का बहुत ही कम पानी की जरूरत पड़ती है.
प्रति हेक्टेयर इतनी है उपज
कृषि एक्सपर्ट की माने तो बाढ़ प्रभावित इलाकों के किसानों के लिए धान की किस्म स्वर्णा-सब 1 बहुत ही बहेतर रहेगी. यह किस्म 15 दिनों तक पानी में डूबे रहने के बाद भी खराब नहीं होती है. अगर बिहार जैसे बाढ़ प्राभित राज्य के किसान इसकी खेती करते हैं, तो उन्हें नुकसान की संभावना न के बराबर रहेगा. अगर स्वर्णा-सब 1 की खासियत के बारे में बात करें, तो इसके चावल के दाने मोटे और छोटे होते हैं. इसकी पैदावार करीब 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
20 फीसदी पानी की होगी बचत
जिन इलाकों में पानी की कमी है यानी मॉनसून के दौरान भी अच्छी बारिश नहीं होती है, वहां के किसान पुसा डीएसटी चावल 1 किस्म की खेती कर सकते हैं. इस किस्म की बहुत ही कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी लवणीय मिट्टी भी खेती की जा सकती है. यह कठिन परिस्थिति में 20 फीसदी तक पैदावार बढ़ाने में सक्षम है.
120 दिनों में तैयार हो जाएगी फसल
वहीं, जिन इलाको में बारिश समान रूप से नहीं होती है, वहां के किसानों के लिए सीआर धान 108 बेहतरीन विकल्प है. यह किस्म करीब 112 दिनों में तैयार हो जाती है. साथ ही इसकी पैदावार भी अच्छी होती है. साथ ही जो राज्य सिंचाई के लिए ट्यूवबेल पर निर्भर है, वहां के किसानों को पूसा बासमती 1509 की खेती करनी चाहिए. इस किस्म को बहुत ही कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है. इसकी खेती में 33 फीसदी तक पानी की बचत होती है. साथ ही 120 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.