भारत में कॉफी की खेती नए रिकॉर्ड की ओर बढ़ रही है. भारतीय कॉफी बोर्ड के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2025-26 के फसल वर्ष में देश का कॉफी उत्पादन लगभग 4.03 लाख टन तक पहुंच सकता है. यह पिछले साल की 3.63 लाख टन की फसल से लगभग 11 फीसदी ज्यादा है. इस वृद्धि से न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ सकती है, बल्कि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कीमतों पर असर पड़ सकता है.
अरबिका और रोबस्टा की स्थिति
इस साल अनुमान के मुताबिक, अरबिका कॉफी का उत्पादन 1.18 लाख टन और रोबस्टा 2.84 लाख टन रहने की संभावना है. अरबिका पिछले साल के 1.05 लाख टन से 12 फीसदी अधिक है, जबकि रोबस्टा 9.5 फीसदी बढ़ा है.
अरबिका: हल्की और खुशबूदार कॉफी, मुख्य रूप से कर्नाटक और केरल में उगाई जाती है.
रोबस्टा: मजबूत स्वाद वाली कॉफी, अधिक उत्पादन वाले क्षेत्रों में उगाई जाती है.
राज्यवार अनुमान
कर्नाटक: कुल उत्पादन 2.80 लाख टन (अरबिका 84,925 टन, रोबस्टा 1.95 लाख टन)
कोडागु: 1.30 लाख टन
चिक्कमंगलूर: 1.04 लाख टन
हासन: 45,175 टन
केरल: कुल 85,150 टन (अरबिका 2,150 टन, रोबस्टा 83,000 टन)
तमिलनाडु: कुल 20,315 टन (अरबिका 13,955 टन, रोबस्टा 6,360 टन)
गैर-परंपरागत क्षेत्र (आंध्र, ओडिशा): अरबिका 16,980 टन, रोबस्टा 70 टन
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र: कुल 210 टन
मौसम और रोगों का असर
हालांकि प्रारंभिक अनुमान उत्साहजनक हैं, लेकिन बीते महीनों की लगातार और भारी बारिश ने उत्पादन पर दबाव डाला है. अरबिका पर ब्लैक रॉट और रोबस्टा में फ्रूट रॉट जैसी समस्याएं देखी गई हैं. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पोस्ट-ब्लॉसम अनुमानों और वास्तविक फसल की स्थिति में अंतर हो सकता है.
किसानों और बाजार पर असर
यदि कॉफी का उत्पादन अनुमानित स्तर 4.03 लाख टन तक पहुंचता है, तो इसका सबसे बड़ा लाभ किसानों की आमदनी में दिखाई देगा. अधिक उत्पादन से किसानों को बिक्री के माध्यम से बेहतर आय मिलने की संभावना है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत होगी. साथ ही, उच्च उत्पादन से देश में कॉफी की उपलब्धता बढ़ेगी, जिससे घरेलू बाजार में कीमतें थोड़ी स्थिर हो सकती हैं.
हालांकि, बाजार में कीमतों की अस्थिरता भी देखने को मिल सकती है. यदि फसल का हिस्सा खराब होता है या गुणवत्ता कम रहती है, तो अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में कॉफी की कीमतों में उतार-चढ़ाव आ सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को रोग नियंत्रण और फसल प्रबंधन पर विशेष ध्यान देना होगा. ब्लैक रॉट और फ्रूट रॉट जैसी बीमारियों से निपटने के लिए समय पर दवा, छंटाई और सही सिंचाई तकनीक अपनाना आवश्यक है.
इसके अलावा, किसानों को उच्च गुणवत्ता बनाए रखने और बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन को समायोजित करने के लिए प्रशिक्षण और नई खेती तकनीक अपनानी चाहिए. इस तरह, उत्पादन रिकॉर्ड तक पहुंचने के बावजूद फसल की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और रोग नियंत्रण करना ही किसानों की सफलता और बाजार की स्थिरता की कुंजी होगी.