Global Rice Market: वैश्विक चावल बाजार में हाल के महीनों में लगातार बदलाव देखा जा रहा है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगले कुछ सालों में भी चावल की कीमतों में गिरावट बनी रह सकती है, भले ही भारत और पाकिस्तान में कुछ क्षेत्रों की धान की फसल को नुकसान पहुंचा हो. इसके साथ ही भारत में भले ही मौसमी बारिश ने फसल को प्रभावित किया हो, लेकिन कुल मिलाकर आपूर्ति अधिक होने के कारण कीमतें कम बनी रहेंगी.
कीमतों में गिरावट के पीछे का कारण
BMI रिसर्च एजेंसी के अनुसार, दुनिया भर में चावल की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में है, खासकर भारत में. इसी वजह से वैश्विक बाजार में चावल की कीमतें 8 साल के सबसे निचले स्तर पर हैं. अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) की रिपोर्ट के मुताबिक, ब्राजील और कोलम्बिया में उत्पादन बढ़ने से वैश्विक उत्पादन में भी इजाफा होगा. हालांकि, भारत और पाकिस्तान से निर्यात में कमी आने की संभावना है.
संयुक्त राष्ट्र की खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने भी अगस्त 2025 में बताया कि चावल और गेहूं की कीमतें कई वर्षों में सबसे कम स्तर पर पहुंच गई हैं. FAO के अनुसार, 2025-26 के दौरान वैश्विक चावल उत्पादन लगभग 555.4 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले साल 549.9 मिलियन टन था.
भारत में स्टॉक और कीमतें
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, भारत में चावल के स्टॉक भी रिकॉर्ड स्तर पर हैं. फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) के अनुसार, 1 सितंबर तक 37.97 मिलियन टन चावल और 21.35 मिलियन टन कच्चे धान का भंडारण किया गया था. भारतीय बाजार में सफेद चावल की कीमतें अफ्रीका की मांग के चलते स्थिर हैं, जबकि बासमती चावल की कीमतों में थोड़ी बढ़त देखी गई है.
मौसमी जोखिम और किसानों की तैयारी
BMI ने चेतावनी दी है कि भारत में असामान्य रूप से तेज मानसून की स्थिति धान की फसल को नुकसान पहुंचा सकती है. यदि बारिश बहुत अधिक हुई या किसी क्षेत्र में बाढ़ जैसी स्थिति बनी, तो फसल उत्पादन घट सकता है और कीमतों पर असर पड़ सकता है. 2026-27 में शुरुआती स्टॉक में कमी की संभावना है, खासकर भारत और अमेरिका में, जिससे कीमतों में अस्थिरता बढ़ सकती है.
किसानों के लिए यह समय सतर्क रहने का है. उन्हें अपनी फसल योजना, भंडारण और बाजार की जानकारी पर विशेष ध्यान देना होगा.
उत्पादन और खपत
विशेषज्ञों का कहना है कि 2025-26 का सीजन तीसरी लगातार सीजन होगा जिसमें उत्पादन खपत से अधिक रहेगा. वैश्विक उत्पादन लगभग 542 मिलियन टन, जबकि खपत 539.4 मिलियन टन होने का अनुमान है. हालांकि, भारत विश्व उत्पादन और निर्यात का बड़ा हिस्सा है, इसलिए यहां किसी भी बदलाव से कीमतों पर बड़ा असर पड़ सकता है. कुल मिलाकर, किसानों और व्यापारियों को बाजार की चाल पर नजर रखनी होगी और मौसम के अनुकूल रणनीति बनानी होगी.