गाय-भैंस का दूध नहीं बढ़ रहा? अपनाइए ये देसी तरीके और देखिए 7 दिन में फर्क!

गाय-भैंस का दूध बढ़ाने के लिए देसी नुस्खे कारगर हैं. सरसों तेल-गेहूं आटे का मिश्रण, लोबिया घास और घरेलू औषधि जैसे उपाय अपनाकर किसान कम खर्च में 7 दिन में फर्क देख सकते हैं.

नोएडा | Updated On: 12 Jun, 2025 | 11:28 AM

अगर आपकी गाय-भैंस पहले जितना दूध नहीं दे रही है तो परेशान होने की जरूरत नहीं है. महंगी दवाइयों और सप्लीमेंट पर पैसा खर्च करने के बजाय आप कुछ देसी नुस्खे आजमाकर भी दूध बढ़ा सकते हैं. सरसों तेल और गेहूं के आटे से लेकर लोबिया घास और घरेलू औषधि तक, ऐसे कई आसान और सस्ते उपाय हैं जो कुछ ही दिनों में असर दिखाने लगते हैं.

लोबिया घास से भी बढ़ेगा दूध

लोबिया घास में प्रोटीन और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है. ये दोनों ही तत्व दूध बढ़ाने के लिए बहुत जरूरी हैं. लोबिया घास आम घास के मुकाबले ज्यादा पाचक भी होती है. अगर रोजाना दुधारू पशुओं को लोबिया घास खिलाई जाए तो उनके दूध उत्पादन में अच्छी बढ़ोतरी होती है.

सरसों तेल और गेहूं आटे का मिश्रण

पशुओं का दूध बढ़ाने के लिए 200 से 250 ग्राम सरसों तेल में 300 से 350 ग्राम तक गेहूं का आटा मिलाकर गाढ़ा मिश्रण तैयार करें. इसे शाम के समय चारा और पानी देने के बाद खिलाएं. ध्यान रखें कि दवा खिलाते समय और खिलाने के बाद पशु को पानी बिल्कुल न दें. यह नुस्खा लगातार 7 से 8 दिन तक अपनाएं. कुछ ही दिनों में फर्क साफ नजर आने लगेगा और पशु का दूध उत्पादन बढ़ जाएगा. यह तरीका खासतौर पर गाय-भैंस पालकों के लिए बेहद फायदेमंद साबित होता है.

देसी औषधि से पाचन और दूध दोनों बेहतर

एक देसी मिश्रण भी दूध बढ़ाने में मदद करता है। इसे तैयार करने के लिए गेहूं का दलिया, गुड़ का शरबत, जीरा, मैथी और अजवाइन और लें. इन सभी को मिलाकर मिश्रण बनाएं और गाय के बयाने के 3 दिन बाद से कुछ दिनों तक रोज खिलाएं. इससे गाय-भैंस के पाचन, खून के संचार और दुग्ध ग्रंथियों पर अच्छा असर पड़ता है. इसका फायदा यह भी है कि पशु की सेहत बनी रहती है और दूध की मात्रा भी बढ़ती है.

खुले में चराना और नहलाना भी जरूरी

अगर आपके आसपास खुला चारागाह हो तो पशुओं को वहां चरने दें. इससे उनका मूड अच्छा रहता है और सेहत भी सुधरती है. गर्मी को दिनों में कम से कम दो बार ठंडे पानी से नहलाना भी फायदेमंद होता है. ठंडे पानी से नहाने से शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है और पशु तरोताजा रहता है. इसके साथ ही पशु की नस्ल, उम्र और सेहत का भी दूध उत्पादन पर असर पड़ता है. इसलिए पशुओं का समय-समय पर इलाज और देखभाल जरूरी है.

Published: 12 Jun, 2025 | 11:09 AM