Gaushala Model : एक गोशाला जहां गायें सिर्फ चरने के लिए नहीं, बल्कि गांव की कमाई बढ़ाने के लिए काम कर रही हों. जहां गोबर से गैस बनती है, उसी गैस पर सैकड़ों बच्चों का खाना पकता है. दूध बिकता है, गोकाष्ठ बनता है और पंचायत का खाता हर महीने मुनाफे में जाता है.मध्य प्रदेश के खंडवा जिले की एक पंचायत ने गोवंश पालन को बोझ नहीं, बल्कि कमाई का स्मार्ट मॉडल बना दिया है, जिसकी अब हर तरफ चर्चा हो रही है.
गोशाला से बदली पंचायत की तस्वीर
मध्य प्रदेश पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अनुसार, खालवा ब्लॉक की रोशनी पंचायत की गोशाला आज आत्मनिर्भरता की पहचान बन चुकी है. यहां गोवंश पालन सिर्फ संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे आय के मजबूत साधन के रूप में अपनाया गया है. गोशाला में देसी नस्ल की करीब 320 और गिर नस्ल की 10 गायें हैं. इन सभी गायों की देखभाल गांव की महिला स्व सहायता समूह द्वारा की जा रही है. सही प्रबंधन और मेहनत के चलते पंचायत को हर दिन फायदा हो रहा है.
दूध, गोबर और गैस से हो रही कमाई
गोशाला से प्रतिदिन करीब 60 लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है. इस दूध का उपयोग पास के छात्रावास में किया जा रहा है, जिससे पंचायत को नियमित आय मिल रही है. वहीं गायों के गोबर से बड़े पैमाने पर गोकाष्ठ तैयार किया जा रहा है. गोकाष्ठ का इस्तेमाल हवन, पूजन और अन्य धार्मिक कार्यों में किया जा सकता है. पंचायत अब इसे बाजार में बेचने की योजना भी बना रही है, जिससे आमदनी और बढ़ेगी.
गोबर गैस से बनता है 400 बच्चों का खाना
इस गोशाला की सबसे खास बात है यहां लगा गोबर गैस प्लांट. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसी बायोगैस प्लांट से पास स्थित छात्रावास के करीब 400 बच्चों का रोजाना भोजन तैयार किया जाता है. इससे एक तरफ ईंधन की बचत हो रही है, तो दूसरी तरफ पर्यावरण को भी फायदा मिल रहा है. गोशाला से निकलने वाला दूध भी छात्रावास के बच्चों को दिया जा रहा है, जिससे पोषण के साथ-साथ पंचायत को अतिरिक्त आय भी मिलती है.
जैविक खेती से बढ़ा पंचायत का राजस्व
गोशाला के पास करीब 4 एकड़ जमीन पर पंचायत ने जैविक खेती भी शुरू की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां पोषण वाटिका के रूप में जैविक सब्जियां उगाई जा रही हैं. इन सब्जियों को रोजाना बाजार और छात्रावासों में सप्लाई किया जाता है. इससे पंचायत के राजस्व में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. गोबर से खाद, गैस और गोकाष्ठ, फिर खेती और दूध-इस पूरे चक्र ने पंचायत को आर्थिक रूप से मजबूत बना दिया है. यह मॉडल दिखाता है कि अगर गोवंश पालन को सही सोच और योजना के साथ किया जाए, तो गांव खुद अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है. रोशनी पंचायत की गोशाला आज सिर्फ गायों का घर नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की एक छोटी लेकिन मजबूत तस्वीर बन चुकी है.