उत्तराखंड, जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, अपनी खूबसूरत वादियों, नदियों और धार्मिक स्थलों के लिए मशहूर है. लेकिन पिछले कुछ सालों में यह राज्य लगातार प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में रहा है, कभी बादल फटने की घटनाएं, कभी भूस्खलन, तो कभी बाढ़. हालांकि उत्तराखंड का इतिहास आपदाओं के जख्मों से भरा हुआ है. हर मानसून सीजन में यहां का कोई न कोई इलाका संकट का सामना करता है, जिससे जान-माल का भारी नुकसान होता है. हाल ही में उत्तरकाशी के धाराली गांव में आई तबाही ने एक बार फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है, क्या उत्तराखंड सुरक्षित है? चलिए जानते हैं उत्तराखंड कब कब हुआ त्रासदियों का शिकार.
बादल फटने से डूबी खीर गंगा घाटी
5 अगस्त 2025 की सुबह उत्तरकाशी के लोगों के लिए एक और काला दिन बनकर सामने आया. खीर गंगा नदीमें बादल फटने के बाद आई बाढ़ ने कई गांवों को प्रभावित किया, खासकर धाराली गांव में 70 से ज्यादा लोग लापता है. 150 से ज्यादा लोगों को बचा लिया गया है, लेकिन लगातार खराब मौसम की वजह से राहत कार्य में देरी हो रही है.
1978 में भागीरथी में बनी झील ने मचाई तबाही
साल 1978 में दबरानी के पास भागीरथी नदी में एक झील बन गई थी. जब यह झील टूटी, तो निचले इलाकों में भयंकर बाढ़ आ गई. कई गांव और सड़कें बह गईं. लोग अपने घरों को छोड़कर ऊंचाई की ओर भागे, इस आपदा में कई लोगों की जान चली गई. इस त्रासदी ने उत्तरकाशी को पहली बार बताया कि यहां की नदियों में कितना विनाशकारी रूप छिपा बैठा है.
1880 में नैनीताल भूस्खलन, जब पहाड़ गिर पड़ा
18 सितंबर 1880 को नैनीताल में मूसलधार बारिश के बाद मल्लीताल में भयानक भूस्खलन हुआ. पूरा इलाका मलबे में दब गया. इस हादसे में 151 लोगों की जान चली गई 108 भारतीय और 43 ब्रिटिश नागरिक. उस वक्त देशभर में यह घटना सुर्खियों में रही. इसी मलबे की समतल परत पर आज ‘फ्लैट्स’ मैदान बना हुआ है. प्रसिद्ध नैनादेवी मंदिर भी इस हादसे में बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ था.
1991 में भूकंप ने छीनीं सैकड़ों जानें
1991 का भूकंप उत्तरकाशी के इतिहास में सबसे बड़ा झटका था. रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 6.8 थी. इस भयानक भूकंप ने 700 से अधिक लोगों की जान ले ली. सैकड़ों मकान जमीनदोज हो गए, और दर्जनों गांव वीरान हो गए. उस रात की चीखें और तबाही का मंजर आज भी यहां के बुजुर्गों की आंखों में तैर जाता है.
1998 में मालपा आपदा ने लील लिया गांव
18 अगस्त 1998 को पिथौरागढ़ के मालपा गांव में चट्टानें अचानक टूटकर गिर पड़ीं. गांव पूरा मलबे में दब गया. 225 लोगों की मौत हुई, जिनमें 55 कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्री थे. इतना ही नहीं, मलबे ने शारदा नदी का बहाव भी रोक दिया, जिससे आसपास के गांवों में बाढ़ के हालात बन गए. यह घटना उत्तराखंड की सबसे दुखद और भयावह त्रासदियों में से एक मानी जाती है.
1999 में चमोली भूकंप
1999 में उत्तराखंड के चमोली जिले में फिर धरती कांपी. इस बार भी तीव्रता 6.8 रही. करीब 100 लोगों की जान चली गई और सैकड़ों इमारतें जमींदोज हो गईं. कई इलाकों में नदियों ने अपना रास्ता बदल दिया और बाढ़ जैसे हालात बन गए. इस भूकंप ने विकास की रफ्तार को कई साल पीछे धकेल दिया.
2003 में वरुणावत पर्वत खिसका, शहर कांपा
2003 में वरुणावत पर्वत से जमीन खिसकने की घटना ने उत्तरकाशी शहर को हिलाकर रख दिया. कई होटल और इमारतें जमींदोज हो गईं. कई लोगों ने इस हादसे में अपनी जान गंवा दी.
2012-13 में अस्सी गंगा और भागीरथी फिर बनीं आफत
लगातार दो सालों तक अस्सी गंगा घाटी और भटवाड़ी क्षेत्र में बाढ़ और बारिश ने जमकर कहर ढाया. कई घर और सड़कें बह गईं. दर्जनों जानें गईं और लोग महीनों तक बेघर रहे. यह घटना भी प्रशासन के लिए चेतावनी साबित हुई.
2013 केदारनाथ आपदा
16 और 17 जून 2013 को बादल फटने, भारी बारिश और चोराबारी ग्लेशियर टूटने से केदारनाथ घाटी में जलप्रलय आ गया. मंदाकिनी नदी उफान पर थी और अपने रास्ते में जो भी आया, उसे बहा ले गई. करीब 5,000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और हजारों आज तक लापता हैं. यह घटना सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं, भारत के इतिहास की सबसे भीषण और दिल दहला देने वाली आपदाओं में से एक है.
2019 में आराकोट-बंगाण में फटा बादल
आराकोट और बंगाण क्षेत्र में जब 2019 में बादल फटा, तो सैंकड़ों लोग बेघर हो गए. सड़कें बह गईं, गांवों का संपर्क टूट गया. यह हादसा दिखाता है कि आपदाएं अब केवल बड़े शहरों या प्रमुख मार्गों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि दूरदराज के गांव भी उनकी चपेट में आ रहे हैं.
2021 चमोली ग्लेशियर फटना
ऋषिगंगा प्रोजेक्ट तबाह हो गया, दर्जनों मजदूर मारे गए. इसका मुख्य कारण ग्लेशियर का अचानक पिघलना और तेज गति से मलबे का बहाव था.
2023 में जोशीमठ भू-धंसाव
इस आपदा में जोशीमठ शहर की जमीन ही खिसकने लगी, मकानों में दरारें पड़ गईं और लोगों को अपने घर खाली करने पड़े. यह भूगर्भीय असंतुलन का खतरनाक संकेत था. कभी लोगों की चहल पहल से आबाद ये शहर पूरी तरह से खत्म हो गया है.
2023 में सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 मजदूर
2023 में जब उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल में हादसा हुआ और 41 मजदूर उसमें फंस गए, तो पूरा देश सांसें थामे बैठा रहा. 17 दिन तक चले रेस्क्यू ऑपरेशन ने न केवल प्रशासन की दक्षता को परखा, बल्कि यह भी दिखा दिया कि कैसे एक छोटा-सा हादसा भी बड़ी त्रासदी में बदल सकता है.