आज जब सुबह दिल्ली और उसके आप पास के इलाकों की जमीन अचानक हिलने लगी और धरती कांपने लगी, तो उस वक्त हर किसी ने कहा- भूकंप आया है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये भूकंप आते क्यों हैं? और क्या हम इन्हें पहले से जान सकते हैं ताकि बचाव किया जा सके? चलिए, जानते हैं इससे जुड़ी हर जरूरी बात.
धरती के अंदर छिपा है भूकंप का रहस्य
हमारी धरती बाहर से भले ही ठोस और शांत दिखाई देती हो, लेकिन इसके अंदर लगातार हलचल चल रही होती है. धरती की ऊपरी परत को “क्रस्ट” कहते हैं, जो कई टुकड़ों यानी “टेक्टोनिक प्लेट्स” में बंटी होती है. ये प्लेट्स बहुत धीरे-धीरे हिलती रहती हैं.
कभी-कभी ये प्लेट्स आपस में टकरा जाती हैं या किनारों पर फंस जाती हैं. जब इनमें दबाव बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और वो दबाव एकदम से टूटता है, तो अचानक जोरदार कंपन पैदा होता है. यही कंपन जब धरती की सतह तक आता है, तो हम उसे भूकंप के रूप में महसूस करते हैं.
क्या भूकंप को पहले से बताया जा सकता है?
बहुत से लोगों का यह सवाल होता है कि अगर साइंस इतनी तरक्की कर चुकी है, तो क्या हम भूकंप आने से पहले उसे जान नहीं सकते? सच्चाई ये है कि वैज्ञानिक आज भी भूकंप को सटीक समय, स्थान और तीव्रता के साथ पूरी तरह भविष्यवाणी नहीं कर सकते. यानी हम नहीं कह सकते कि “कल दोपहर 2 बजे फलां जगह भूकंप आएगा और इसकी तीव्रता 6.5 होगी.”
तो फिर वैज्ञानिक क्या करते हैं?
वैज्ञानिक भले ही सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन वे अनुमान (Forecasting) जरूर लगा सकते हैं. यानी यह बताया जा सकता है कि आने वाले कुछ वर्षों में किसी इलाके में कितनी संभावना है कि एक बड़ा भूकंप आ सकता है.
ये अनुमान पुराने भूकंपों के रिकॉर्ड, जमीन की बनावट, और टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधियों पर आधारित होते हैं. इसे ही “प्रोबैबिलिस्टिक फोरकास्टिंग” कहा जाता है, जो आज के समय की सबसे उन्नत विधि मानी जाती है.
भविष्यवाणी और अनुमान में फर्क
भविष्यवाणी (Prediction): इसका मतलब होता है- ठीक-ठीक समय, जगह और तीव्रता जान लेना.
अनुमान (Forecasting): इसका मतलब होता है- किसी भूकंप के आने की संभावना बताना, ना कि पूरा विवरण.
आज की वैज्ञानिक तकनीक हमें अनुमान लगाने में मदद करती है, लेकिन सटीक भविष्यवाणी अभी भी संभव नहीं है.