गोभी की बायोफोर्टिफाइड किस्म ने किसानों को लुभाया, मिल रही कम लागत में ज्यादा उपज

आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित फूलगोभी की नई किस्म पूसा बीटा केशरी-1 बीटा-कैरोटीन से भरपूर है, जो विटामिन ए की कमी को पूरा करने में मदद करती है.

Kisan India
नोएडा | Published: 21 May, 2025 | 05:03 PM

फूलगोभी एक ऐसी सब्जी है जिसकी मांग हर मौसम और हर रसोई में होती है. लेकिन अब फूलगोभी सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि सेहत का भी मजबूत जरिया है. इसी कड़ी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने जैव-संवर्धित (बायोफोर्टिफाइड) फूलगोभी की किस्म पूसा बीटा केशरी-1 विकसित किया है, यह किस्म बीटा-कैरोटीन से भरपूर मानी जाती है.

अलग रंग, अलग पहचान

इस किस्म की सबसे खास बात है इसके फूल नारंगी रंग के होते है. यह रंग बाजार में इसे अलग पहचान देता है और ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करता है. इसकी सेमी-सेल्फ ब्लांचिंग प्रवृत्ति के कारण इसके फूल तेज धूप से खुद-ब-खुद सुरक्षित रहते हैं, जिससे अलग से मेहनत नहीं करनी पड़ती और फूलों की गुणवत्ता भी बनी रहती है.

प्रति हेक्टेयर उपज 42 से 46 टन

पूसा बीटा केशरी को 2016 में जारी किया गया और यह मुख्य रूप से दिल्ली और आस-पास के इलाकों के लिए उपयुक्त माना गया है. इसकी खेती सितंबर से जनवरी के बीच बेस्ट मानी जाती है. खास बात यह है कि यह किस्म बिना सिंचाई के यानी वर्षा आधारित खेती में भी अच्छा उत्पादन देती है. इसकी प्रति हेक्टेयर उपज 42 से 46 टन तक हो सकती है और एक फूल का औसत वजन करीब 1.25 किलो होता है. यदि अच्छी देखभाल हो तो उपज और भी बेहतर हो सकती है, जिससे किसान को सीधी आमदनी में फायदा होता है.

पोषण से भरपूर, बीमारी से दूर

इस किस्म में विटामिन ए की मात्र काफी अच्छी होती है जिसे कमजोरी और आंखों से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं. इसकी फूलों में 800 से 1000 माइक्रोग्राम प्रति 100 ग्राम बीटा-कैरोटीन होता है, जो रोजाना की पोषण जरूरतों को पूरा करने में मदद करता है.

कम मेहनत, कम सिंचाई और ज्यादा उत्पादन

यह किस्म पारंपरिक तरीकों से विकसित की गई प्योरलाइन किस्म है, जिससे फसल में एकरूपता बनी रहती है जिस कारण फसल की देखभाल आसान हो जाती है. यह जैविक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी में अच्छी होती है और संतुलित उर्वरकों से पोषण की गुणवत्ता बनी रहती है. इसकी खेती में कम मेहनत, कम सिंचाई और ज्यादा उत्पादन इसे किसानों के लिए फायदेमंद बनाता है.

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