किसान ने बेटी के नाम पर विकसित की धान की नई किस्म, 120 दिनों में हो जाएगी तैयार.. मिलेगी बंपर उपज

केरल के मलप्पुरम जिले के किसान शशिधरन ने अपनी बेटी के नाम पर एक नई धान की किस्म विकसित की है. यह किस्म केवल 120 दिनों में पक जाती है और साल में तीन बार बोई जा सकती है.

नोएडा | Published: 11 Jul, 2025 | 07:10 PM

केरल के मलप्पुरम जिले के पुलामंथोल गांव से एक प्रेरणादायक कहानी सामने आई है. यहां के 58 वर्षीय किसान शशिधरन ने अपनी बेटी के नाम पर एक नई धान की किस्म तैयार की है. जिसका नाम है गोपिका. यह कहानी सिर्फ खेती की नहीं, बल्कि एक किसान की मेहनत, लगन और पारिवारिक प्रेम की अनोखी मिसाल है. शशिधरन ने विज्ञान और परंपरा के मेल से इस खास किस्म को विकसित किया, जो न सिर्फ उपज में बेहतर है बल्कि पूरे राज्य में तेजी से लोकप्रिय हो रही है.

धान की नई किस्म और बेटी, दोनों बनीं उम्मीद की पहचान

गोपिका धान की किस्म शशिधरन की मेहनत और नई तकनीक का नतीजा है. यह किस्म ज्योति और ऐश्वर्या चावल की प्रजातियों का संयोजन है. यह एक मट्टा चावल है, जो गहरे रंग, अच्छे स्वाद और मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जाना जाता है. इसकी सबसे खास बात यह है कि यह केवल 120 दिनों में पक जाती है और साल में तीन बार बोई जा सकती है. इसकी एक डंठल में लगभग 210 दाने आते हैं, जबकि आमतौर पर यह संख्या 140 होती है. इससे किसानों को अधिक उपज  और बेहतर आमदनी का मौका मिलता है।

मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शशिधरन की बेटी गोपिका भी अब खेती से जुड़ रही है. वह पहले कृषि अधिकारी बनना चाहती थी, लेकिन अब वह कायमकुलम में कृषि में डिप्लोमा कर रही है. पिता ने बेटी के नाम पर जिस धान की किस्म को पहचान दी, आज वह किस्म भी उम्मीद की तरह खेतों में लहलहा रही है और बेटी भी खेती की राह पर आगे बढ़ रही है.

खेती है शशिधरन की जिंदगी की राह

शशिधरन पिछले कई सालों से धान की खेती  करते आ रहे हैं. खेती ही उनकी आजीविका का मुख्य जरिया है. खेती के साथ-साथ उन्हें नई पौध प्रजातियों को विकसित करने में गहरी रुचि है. यही वजह है कि उन्होंने सात एकड़ की अपनी जमीन को एक प्रयोगशाला जैसा बना दिया, जहां वे नए पौधों पर काम करते हैं. इसी मेहनत का नतीजा है गोपिका, जो आज एक रजिस्टर (पंजीकृत) धान की किस्म बन चुकी है. इस किस्म को पादप किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 के तहत प्रमाण मिला है.

किसानों की ट्रेनिंग से शुरू हुई खोज

शशिधरन ने पौध प्रजनन की बारीकियां सीखने के लिए पट्टाम्बि स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र की ट्रेनिंग में हिस्सा लिया. वहां मिली जानकारी को उन्होंने अपने पारंपरिक अनुभव के साथ मिलाया और प्रयोग शुरू किए. कई साथी किसानों ने जहां बीच में हार मान ली, वहीं शशिधरन लगातार प्रयास करते रहे. इसके बाद उन्होंने 2002 में पहली बार प्रयोग शुरू किया और आठ साल के भीतर गोपिका किस्म को अंतिम रूप दे दिया.

दसवीं के बाद खेती को बनाया जीवन का रास्ता

शशिधरन ने बचपन से ही खेती को अपना जीवन बना लिया. दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह खेतों में जुट गए. खेती के रास्ते पर चलते हुए उन्हें दोस्ती और रिश्तों में भी समझौते करने पड़े, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. उनका ऐसा मानना है कि जब आप भूख और गरीबी से लड़ चुके होते हैं, तब आप भोजन उगाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. आज उनकी मेहनत का नतीजा है कि केरल के लगभग हर जिले में गोपिका धान की खेती हो रही है, बस कासरगोड को छोड़कर.