मिलेट्स की इन 4 किस्मों से मिल रही ज्यादा उपज, किसानों का खर्च भी घटा

भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने मिलेट्स की चार नई उन्नत किस्में विकसित की हैं जो पोषक तत्वों से भरपूर हैं और अधिक उपज देने की क्षमता रखती हैं. ये किस्में कई बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक भी हैं और किसानों को बेहतर फसल, कम नुकसान और अधिक आमदनी प्रदान कर सकती हैं.

नोएडा | Updated On: 8 May, 2025 | 12:52 PM

मिलेट्स की खेती करने वाले किसानों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिकों ने 4 नई उन्नत किस्मों को पेश किया है.  इन किस्मों की खासियत है कि ये कम दिनों में ज्यादा उपज देने में सक्षम हैं. इसके साथ ही वैज्ञानिकों का दावा है कि इन किस्मों की बुवाई करने किसानों की लागत कम आएगी.  यह किस्में कई तरह की बीमारियों और कीटों से लड़ने सक्षम होने के चलते किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही हैं. आइये जान लेते हैं इन चार किस्मों के बारे में…

1. पर्ल मिलेट (MH 2417 – पूसा 1801):

पर्ल मिलेट (MH 2417 – पूसा 1801) को दिल्ली के पूसा इंस्टीट्यू के वैज्ञानिकों विकसित किया है. यह एक हाइब्रिड किस्म है जिसे किस्म दिल्ली-एनसीआर और उसके आसपास के क्षेत्रों में बुवाई के लिए उपयुक्त है. इसे खरीफ सीजन के दौरान सिंचाई की पर्याप्त सुविधाओं वाले स्थानों के साथ ही बारिश पर निर्भर स्थानों पर भी बोया जा सकता है. पर्ल मिलेट को सिर्फ खाद्यान के लिए ही नहीं बल्कि पशु चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. पर्ल मिलेट की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 33.34 क्विंटल तक की उपज हासिल की जा सकती है. जबकि,  चारे के रूप में इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 175 क्विंटल तक हो सकता है.

2. फिंगर मिलेट (VL मंडुआ-402):

इस ओपन-पॉलीनेटेड रागी की किस्म हैं. जिसे विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, उत्तराखंड ने विकसित किया है. यह मुख्य रूप से उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त मानी गई है. इसकी औसत उपज 2,261 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, और इसकी फसल 100 से 110 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैं. बात करें पोषण की तो इनमें के कैल्शियम की मात्र अन्य किस्मों से अधिक होती हैं.

3. प्रोसो मिलेट (CPRMV-1 – DHPM-60-4/PMV 466):

प्रोसो मिलेट, जिसे चेना (Cheena) या बरि (Bari) भी कहा जाता है, एक प्रकार का मोटा और ग्लूटेन फ्री अनाज है. यह खुले परागण वाली प्रोसो बाजरा किस्म ICAR – AICRP ऑन सोरघम एंड स्मॉल मिलेट्स, यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, धारवाड़, कर्नाटक के माध्यम से विकसित की गई है. ययह किस्म कर्नाटक और तमिलनाडु के वर्षा पर आधारित खरीफ सीजन के लिए उपयुक्त मानी गई है. इसकी औसत उपज 24-26 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, और फसल 70-74 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.

4. बार्नयार्ड मिलेट (VL मडिरा-254):

बार्नयार्ड मिलेट, जिसे सावां या झंगोरा भी कहा जाता है, यह एक छोटा और ग्लूटेन फ्री अनाज है. इस किस्म को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा ने विकसित किया है. यह किस्म की भी उत्तराखंड जैसे पहाड़ी इयालकों के लिए बेस्ट माने जाते हैं. इस किस्म की औसत उपज 1,719 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, और यह 101 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है.

Published: 8 May, 2025 | 12:47 PM