आज के समय में लोग कैमिकल वाले सामानों से दूरी बना रहे हैं और प्राकृतिक चीजों को ज्यादा पसंद कर रहे हैं फिर चाहे वो सिंदूर हो, रंग हो या फिर सजावट का कोई और उत्पाद. ऐसे में कैमिला ट्री, अपराजिता, पलाश, गेंदा, नीलम जैसे फूलों से बनी रंग प्राकृतिक होने के कारण इनकी मांग भी बाजारों में रहती हैं. वहीं अब खेती सिर्फ अनाज तक ही सीमित नहीं रही बल्कि फूलों की खेती भी किसानों के लिए एक नया विकल्प बनकर उभरा है. इन पेड़ों और फूलों से बने उत्पादों की मांग शहरी बाजारों, होली जैसे त्योहारों, धार्मिक आयोजनों और ऑर्गेनिक स्टोर्स में काफी तेजी से बढ़ रही है. ऐसे में यह किसान भाइयों के लिए कम लागत में ज्यादा आमदनी वाला सौदा साबित हो सकता है.
कैमिला ट्री क्या है और कहां पाया जाता है
कैमिला ट्री या कुमकुम ट्री सिंदूर के पौधे को कहा जाता है, जो खासतौर पर उदक्षिण अमेरिका और कुछ एशियाई देशों के साथ भारत में यह महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी पाया जाता है. इसकी ऊंचाई करीब 10-15 फीट तक होती है. इसके फल छोटे, गोल और लाल रंग के बीज होते हैं. यही बीज आगे चलकर प्राकृतिक सिंदूर बनते है. वही इस पौधे के कई औषधि महत्व भी है. जिससे सिंदूर के अलवा लिपस्टिक, हेयर डाई, और नेल पॉलिश बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है. इसके साथ ही पेंट बनाने में भी इसके प्राकृतिक रंग का इस्तेमाल होता है. जिस कारण इस पौधे की मांग बाजारों में काफी अधिक होती है.
कैमिला ट्री की खेती कैसे करें
यह पौधा गर्म और नम जलवायु में अच्छा उगता है. बात करें मिट्टी की तो यह दोमट और बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. पानी का निकास अच्छा होना चाहिए. इस पौधे को बारिश के मौसम यानी जुलाई या अगस्त में लगाना बेस्ट माना जाता है. इसे एक बार लगाने के बाद ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. केवल शुरुआती 1-2 सालों तक निराई-गुड़ाई और सिंचाई की जरूरत होती है. एक एकड़ में लगभग 300-400 पौधे लगाए जा सकते हैं. पौधे 3-4 साल में फल देने लगते हैं और लगभग 15-20 साल तक उत्पादन देते हैं.
कैमिला ट्री से सिंदूर कैसे बनता है
कैमिला ट्री जिसे कुमकुम ट्री भी कहां जाता हैं. इस पौधे को वैज्ञानिक भाषा में मैलोटस फिलिपेंसिस होता है, इस पौधे के फलों को तोड़ कर उनमें में से निकलने वाले बीजों को इकठ्ठा कर धूप में सूखा लिया जाता है और फिर बाद में इन सूखे बीजों को पीस कर प्राकृतिक सिंदूर तैयार किया जाता है. इसके अलावा किसान इन फूलों की खेती से मुनाफा कमा सकते हैं जैसे की अपराजिता के फूलों से नीला रंग तैयार किया जाता है, जिसे होली रंग के रंगों के साथ, कपड़ों के डाई ब्यूटी प्रोडक्ट्स और बेहतर स्वस्थ के लिए यह चाय के रूप में भी इस्तेमाल कि जाती है. पलाश के चमकीले नारंगी फूलों से गाढ़ा पीला या नारंगी रंग निकाला जाता है. यह फूल झारखंड और उत्तर प्रदेश राज्यों के राजकीय फूल मानी जाती है. इस पेड़ के फूल, छाल, पत्ती और बीज का उपयोग कई तरह की औषधीय दवाओं को बनाने के लिए भी किया जाता है.
वहीं बात करें गेंदा के फूल की तो इससे पीला और हल्का नारंगी रंग तैयार किया जाता है. किंतु इसके फूल को और भी कई तरीकों से उपयोग किया जा सकता है. जिनमें पूजा-पाठ, सजावट, और औषधीय गुण भी शामिल हैं. वहीं गंदे के फूल का इस्तेमाल मुर्गियों के दाने के रूप में भी किया जा सकता है, जिसे अंडे की जर्दी का रंग गहरा करने और अंडे की गुणवत्ता में सुधार करने के साथ मुर्गियों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है.