पशुपालन करने वाले सभी लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने पशुओं की सेहत को लेकर सतर्क और जागरूक रहें. खासकर दुधारू गायों और भैंसों में कई बार कुछ अजीब व्यवहार देखने को मिलते हैं जैसे सिर झटकना, बार-बार पेशाब करना या अचानक उत्तेजित हो जाना. ये लक्षण सामान्य नहीं होते और अक्सर यह संकेत देते हैं कि पशु किसी गंभीर बीमारी की चपेट में है. ऐसी ही एक बीमारी है हाइपोमैग्नीसिमिया, जो शरीर में मैग्निशियम की कमी के कारण होती है. यह रोग अगर समय पर न पहचाना जाए, तो जानलेवा भी हो सकता है. आइए इस खबर में जानते हैं इस बीमारी के लक्षण, कारण, बचाव और इलाज के बारे में आसान भाषा में.
क्या है हाइपोमैग्नीसिमिया और क्यों होता है?
हाइपोमैग्नीसिमिया एक खतरनाक चयापचयी बीमारी है, जो तब होती है जब पशु के शरीर में मैग्निशियम की मात्रा बेहद कम हो जाती है. यह खनिज तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों के सही संचालन के लिए बेहद जरूरी होता है. यह बीमारी खासकर वसंत और वर्षा ऋतु की शुरुआत में ज्यादा होती है, जब पशु हरा चारा अधिक खाते हैं. हरे चारे में मैग्निशियम की मात्रा अक्सर कम होती है, जिससे यह कमी शरीर में धीरे-धीरे बढ़ती जाती है.
कैसे पहचानें बीमारी के लक्षण?
हाइपोमैग्नीसिमिया के लक्षण शुरुआत में हल्के होते हैं लेकिन जल्द ही गंभीर रूप ले सकते हैं. कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं.
- पशु बार-बार सिर झटकता है.
- बिना कारण कराहता है या अजीब आवाजें निकालता है.
- बार-बार मूत्र करता है.
- हल्की आवाज या छूने से अचानक उत्तेजित हो जाता है.
- चलने में असामान्यता, बिना घुटनों को मोड़े चलना.
- गंभीर स्थिति में दौड़ना, जमीन पर पैरों को पटकना और नियंत्रण खो देना.
इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें क्योंकि समय पर इलाज न मिलने पर पशु की जान भी जा सकती है.
कैसे करें बचाव और इलाज?
बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग के अनुसार इस बीमारी से बचाव के लिए जोखिम वाले पशुओं को रोजाना 50 ग्राम मैग्निशियम ऑक्साइड देना चाहिए. यह एक प्रकार का खनिज पूरक (Mineral Supplement) है जो शरीर में मैग्निशियम की कमी को पूरा करता है.
अगर किसी पशु में ऊपर बताए गए लक्षण दिखें तो तुरंत नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें. कई बार पशु को 24 से 48 घंटे के भीतर दोबारा उपचार की आवश्यकता होती है. इलाज में देरी न करें, क्योंकि समय पर इलाज से पशु पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है.
सावधानी ही है सबसे अच्छा इलाज
- चारे में विविधता रखें: केवल हरे चारे पर निर्भर न रहें, सूखा चारा और खनिज मिश्रण भी दें.
- नियमित जांच कराएं: दूध देने वाले पशुओं की सेहत पर विशेष ध्यान दें.
- खनिज पूरक आहार को नियमित आहार का हिस्सा बनाएं.
- जानकारी रखें और जागरूक बनें: मौसम बदलते समय विशेष ध्यान रखें और पहले से तैयारी करें.