इथेनॉल का आगमन और इसके इस्तेमाल को लेकर तमाम तरह की बातें हो रही हैं. इससे शहरों को क्या फायदा है, इसे लेकर भी. लेकिन असली भारत गांवों में बसता है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि कैसे इथेनॉल पॉलिसी से गांवों को फायदा मिलेगा और किसान खुशहाल होंगे. बल्कि इसे यह भी कह सकते हैं कि इथेनॉल ब्लेंडिंग का असर दिखने लगा है. इस समय यह किसानों के सबसे बड़े साथी की तरह सामने आया है, जो उनके दुख-दर्द दूर करने का रास्ता दिखा रहा है. इथेनॉल का आना किसानों की आय बढ़ना सुनिश्चित करने वाला साबित हो रहा है. सुनिश्चित हो रहा है कि उनका पेमेंट सही समय पर हो. बकाया रकम के भुगतान की अवधि सिकुड़ रही है.
भारतीय किसानों के लिए अहम यह है कि उनके पास अब फसल के दामों के लिए विकल्प बढ़ रहे हैं. इन विकल्पों के बढ़ने से उनका जीवन स्तर में लगातार सुधार तय है. इस सुधार के साथ गांवों का सुधार तय है. गांवों के सुधार के साथ पलायन से जुड़ी समस्या का समाधान नजर आता है. इथेनॉल प्रोग्राम रिसर्च और डेवलपमेंट में निवेश में सहयोग दे रहा है, जिससे उच्च उत्पादकता वाली वेराइटी विकसित करने में मदद मिल रही है. यह भी अच्छी फसल सुनिश्चित करेगा, जो आखिर में गांवों और किसानों की जिंदगी में सुधार का ही काम करेगा, बल्कि यूं कहें कि कर रहा है.
किसानों को बेहतर बाजार मुहैया कराना हमेशा से उनका जीवन स्तर सुधारने के लिए जरूरी माना जाता है. बाजार मुहैया करा पाना बड़ी चुनौती रहा है. इथेनॉल प्रोग्राम इस चुनौती को पार पाने में मदद कर रहा है. गन्ना और उससे जुड़े उत्पादों के लिए बेहतर, स्थिर और संतुलित बाजार मुहैया कराने का मतलब है किसानों की स्थिति बेहतर करना. किसानों के लिए, किसानों के साथ का मंत्र इससे सही मायने में सार्थक होता दिखता है.
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इथेनॉल सम्मिश्रण यानी ब्लेंडिंग प्रोग्राम के तमाम फायदे हैं, जैसे
- -किसानों की आय में सीधे फायदा. करीब साढ़े पांच करोड़ किसानों को फायदा.
- -क्रूड ऑयल के आयात पर निर्भरता में कमी.
- -विदेशी मुद्रा में बचत.
- -भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करना और नेट जीरो लक्ष्य तक पहुंचना.
- -पर्यावरण के अनुकूल ईंधन मुहैया कराना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना और शहरों में वायु प्रदूषण कम करना.
जिन पॉइंट्स का जिक्र हमने ऊपर किया, उसमें कच्चे तेल का आयात एक बड़ा मुद्दा है. देश में तेल के आयात को लेकर जिस तरह का संकट हम पिछले कई दशकों से देखते रहे हैं, इथेनॉल प्रोग्राम ने उससे उबरने का भी रास्ता दिखाता है. लगभग एक दशक से कुछ ज्यादा समय में इथेनॉल क्षमता हमने करीब साढ़े चार गुना बढ़ा ली है, जो सरकारी नीतियों में स्पष्टता की वजह से भी है और उद्योग जगत की कर्मठता की वजह से भी. 2013 में सम्मिश्रण प्रतिशत महज 1.53 था, जो अब 20 फीसदी तक पहुंचने वाला है. इससे समझा जा सकता है कि क्षेत्र में हमारी प्रगति की रफ्तार क्या रही है.
इस्मा के महानिदेशक दीपक बल्लानी के अनुसार अब भी और बेहतर होने की अपार संभावनाएं हैं. वह कहते हैं, ‘भविष्य की संभावनाएं देखें, तो अभी विकास की पर्याप्त क्षमता है. खासतौर पर उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख राज्यों में चीनी मिलों के साथ एक ही स्थान पर स्थित इथेनॉल डिस्टिलरी के विस्तार के माध्यम से. यह इंटीग्रेशन यानी एकीकरण भारी मूल्यवर्धन के अवसर, बेहतर मूल्य स्थिरता और टिकाऊ ग्रामीण आर्थिक विकास के अवसर पैदा करता है.’
केंद्र सरकार ने हरित ईंधन मिशन के हिस्से के रूप में इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक मजबूत प्रयास किया है और उसके नतीजे दिख भी रहे हैं. हालांकि इसमें केंद्र और राज्यों का समन्वय भी बहुत जरूरी है, जो ज्यादातर जगह दिखता है. इसके बावजूद इसमें सुधार की गुंजाइश है. खासतौर पर जिन राज्यों ने इथेनॉल उत्पादन पर शुल्क लगाया है, उन्हें विचार करने की जरूरत है.
इसीलिए नीतियों के स्तर पर केंद्र की तरफ से हस्तक्षेप की जरूरत है. दीपक बल्लानी कहते हैं, ‘जैसे, इथेनॉल खरीद मूल्यों में संशोधन और गन्ने के एफआरपी के साथ इसका संबंध. इथेनॉल इकाइयों की स्थापना या अपग्रेडेशन के लिए वित्तीय इंसेंटिव. पर्यावरण और नियामक अप्रूवल्स जल्दी मिलना सुनिश्चित किया जाए. साथ में दक्षता और उत्पादन को बढ़ाने के लिए तकनीकी अपग्रेडेशन सुनिश्चित किया जाए.’
कुछ और कदम उठाए जाने की जरूरत है. जैसे गन्ने के रस और बी हैवी शीरे से बने इथेनॉल खरीद मूल्यों को 2022-23 ईएसवाई के बाद से संशोधित नहीं किया गया है. इस ओर ध्यान देना जरूरी है. डिस्टिलरीज में कैपेसिटी बिल्डिंग की जरूरत है. इथेनॉल भंडारण और परिवहन के लिए बुनियादी ढांचा होना चाहिए. दीपक बल्लानी कहते हैं, ‘इन सारी चीजों से उत्पादन को बढ़ाने, लॉन्ग टर्म वायबिलिटी लाने और इस क्षेत्र को भारत के व्यापक जैव ईंधन और कृषि स्थिरता लक्ष्यों के साथ अलाइन करने में मदद मिलेगी और हम लक्ष्य पूरा कर पाएंगे.’ – पार्टनर्ड आर्टिकल