शायद आपने मच्छरदानी में सोते हुए लोगों को देखा होगा, लेकिन क्या गाय, भैंस और बकरी को भी मच्छरदानी में बंद देखा है? नहीं ना? लेकिन राजस्थान के एक गांव मरुधारा की ये सच्चाई है. यहां लोग अपने मवेशियों को पूरे 12 महीने मच्छरदानी में रखते हैं, ताकि वो बीमार न हों और उनके शरीर से खून न बहे. यह कोई मजाक नहीं, बल्कि एक ऐसा दर्द है जिसे गांव वाले हर रात जीते हैं.
जानवरों का खून टपकने लगता है
एक मीडिया इंस्टीट्यूट की डॉक्यूमेंट्री के अनुसार, राजस्थान के मरुधारा गांव में मच्छरों की संख्या इतनी ज्यादा है कि अगर मवेशियों को खुला छोड़ दिया जाए, तो सुबह उनके शरीर से खून टपकता हुआ दिखता है. गांव के लोग बताते हैं, अगर रात भर मच्छरदानी में न रखें, तो सुबह जानवरों की आंखें सूज जाती हैं, शरीर पर घाव हो जाते हैं और खून बहता है. यह नजारा डरावना भी है और दुखद भी. कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक दिन ऐसा आएगा जब पशुओं को भी मच्छरदानी में बंद करना पड़ेगा.
इंसानों जैसी देखभाल, क्योंकि ये भी परिवार का हिस्सा हैं
यहां के लोग अपने मवेशियों को सिर्फ कमाई का जरिया नहीं मानते, बल्कि घर का सदस्य मानते हैं. ठीक वैसे ही जैसे हम अपने बच्चों को मच्छरों से बचाने के लिए नेट लगाते हैं, वैसे ही यहां के किसान अपने बैल, गाय और भैंसों को रात में मच्छरदानी में बांधते हैं.
12 महीने मच्छरदानी में रहना पड़ता है मवेशियों को
यहां हालात इतने खराब हैं कि सिर्फ बारिश में नहीं, पूरे साल भर मच्छरदानी में रखना पड़ता है. गांव वालों का कहना है कि- पानी ज्यादा गिरता है तो हालात थोड़े ठीक होते हैं, लेकिन जब पानी सूख जाता है, तो मच्छर और ज्यादा बढ़ जाते हैं. ऐसे में कई बार तो मवेशियों को घर के बिलकुल नजदीक या घर के अंदर बांधना पड़ता है. ताकि उनकी देखभाल ठीक से हो सके और हर पल नजर रखी जा सके.
बीमारी से बचाना है तो जुगाड़ ही सही
सरकार से कोई मदद नहीं मिली, तो गांव वालों ने जुगाड़ से रास्ता निकाला. किसी ने पुराने कपड़े से मच्छरदानी बनाई, तो किसी ने शहर से खरीदकर लाई. कुछ ने तो पुरानी चारपाई और तार का जाल जोड़कर नया तरीका निकाल लिया. उनका मानना है- बीमारी का इलाज महंगा है, लेकिन बचाव सस्ता और असरदार. इसलिए अब यहां की हर गाय, हर भैंस के पास अपनी मच्छरदानी है, ठीक वैसे ही जैसे घर के हर बच्चे के पास होता है.
सवाल सरकार से- क्या मवेशियों की कोई अहमियत नहीं?
यह कहानी जहां संवेदनशीलता और इंसानियत की मिसाल है, वहीं यह सरकार से एक बड़ा सवाल भी पूछती है. क्या ये मवेशी किसी की जिम्मेदारी नहीं हैं? क्या सिर्फ वोट मांगने के लिए गांवों की याद आती है? जब एक गांव खुद इतने कठिन हालात में जुगाड़ से अपने पशुओं को बचा सकता है, तो सरकार क्यों नहीं एक स्थायी समाधान देती? इन मवेशियों से ही दूध, खाद, खेत की जुताई और रोजगार जुड़ा है. फिर भी इनकी सुरक्षा की कोई नीति नहीं?