ओडिशा के बलांगीर जिले का नाम अब सिर्फ स्थानीय बाजार में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी गूंज रहा है. यहां के मेहनती किसानों की मेहनत रंग लाई है और लगातार दूसरे साल उनका ड्रैगन फ्रूट सीधा दुबई की दुकानों तक पहुंचा है. यह सिर्फ एक व्यापारिक सौदा नहीं, बल्कि गांवों से निकलकर वैश्विक बाजार में पहचान बनाने की कहानी है.
बीते शुक्रवार को बलांगीर के पटनागढ़ क्षेत्र से 330 किलो ताजा और चमकीले ड्रैगन फ्रूट की खेप पैक होकर दुबई रवाना हुई. वहां के बाजार में इसकी खास मांग है, क्योंकि ओडिशा का ड्रैगन फ्रूट अपने मीठे स्वाद, सुंदर रंग और उच्च गुणवत्ता के लिए जाना जाता है.
कीमत में भी मिठास
इस साल किसानों के चेहरे पर खुशी दोगुनी है, क्योंकि उन्हें 300 रुपये प्रति किलो का भाव मिला है. पिछले साल यह दाम 250 रुपये प्रति किलो था, यानी करीब 20 फीसदी की बढ़ोतरी. कृषि अधिकारियों के अनुसार, यह सिर्फ बाजार के उतार-चढ़ाव का नतीजा नहीं है, बल्कि विदेशी खरीदारों के भरोसे और ओडिशा के उत्पाद की बढ़ती प्रतिष्ठा का सबूत है.
दूसरे किसानों के लिए नई उम्मीद
बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, यह निर्यात सिर्फ पटनागढ़ या बलांगीर के किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे ओडिशा के लिए प्रेरणा है. अब यहां के कई किसान ड्रैगन फ्रूट के साथ कीवी, पिटाया और अन्य विदेशी फलों की खेती की दिशा में भी कदम बढ़ा रहे हैं. बागवानी निदेशक सुब्रत कुमार पंडा का कहना है-“लगातार दूसरे साल निर्यात होना साबित करता है कि ओडिशा के किसान वैश्विक स्तर पर मुकाबला करने के लिए तैयार हैं.”
सफलता के पीछे की योजना
इस उपलब्धि के पीछे ओडिशा सरकार के कृषि और किसान सशक्तिकरण विभाग की पीएसएफपीओ परियोजना का बड़ा हाथ है. यह प्रोजेक्ट गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से पैलेडियम संस्था चला रही है, जो किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को मजबूत बनाने पर काम करती है. निर्यात प्रक्रिया में एपीडा (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) ने भी मार्केटिंग और तकनीकी सहायता में अहम योगदान दिया.
क्यों है खास ड्रैगन फ्रूट की खेती
ड्रैगन फ्रूट की खेती कम पानी और कम लागत में हो जाती है, और इसका बाजार मूल्य सामान्य फलों की तुलना में काफी ज्यादा है. यही वजह है कि इसे “कैश क्रॉप” भी कहा जाता है. अगर सही देखभाल की जाए, तो एक बार लगाए गए पौधे से कई साल तक लगातार फल मिलते हैं.
ओडिशा का यह सफर साबित करता है कि जब मेहनत, योजना और सही बाजार मिल जाए, तो गांव के खेत भी दुनिया के नक्शे पर अपनी चमक बिखेर सकते हैं.