धान की बुवाई करने से पहले पढ़ लें ये खबर, इस किस्म की खेती से भूजल स्तर पर पड़ेगा असर!

केंद्रीय भूजल बोर्ड ने साल 2023 में चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि प्रदेश में 2039 तक 1,000 फीट की गहराई तक भूजल खत्म हो जाएगा. इससे फसल पैदावार भी प्रभावित होगी, जिससे देश के खाद्यान्न पर असर पर पड़ेगा.

नोएडा | Updated On: 7 May, 2025 | 02:07 PM

पंजाब में तीन चरणों में धान की बुवाई की जाएगी. 1 जून से पहला चरण शुरू होगा, जिसके तहत फाजिल्का, फिरोजपुर, फरीदकोट, बठिंडा और श्री मुक्तसर साहिब जिलों में किसान धान की रोपाई कर पाएंगे. जबकि, अमृतसर, गुरदासपुर, श्री फतेहगढ़ साहिब, पठानकोट, तरनतारन, रूपनगर, एसएएस नगर (मोहाली) और होशियारपुर जिले में किसान 5 जून से धान की बुवाई शुरू करेंगे. वहीं, इसके चार दिन बाद यानी 9 जून से जालंधर, मानसा, संगरूर, बरनाला, मोगा, लुधियाना, मलेरकोटला, पटियाला, कपूरथला और शहीद भगत सिंह नगर सहित बाकी के जिलों में धान की रोपाई शुरू होगी. लेकिन पंजाब में भूजल को लेकर भी संकट गहरा रहा है.

सरकार का मानना है कि धान की जल्द बुवाई और कटाई करने से किसानों को हाई ह्यूमिडिटी से होने वाले परेशानियों से बचने में मदद मिलेगी. क्योंकि पंजाब में 90 दिनों की अवधि वाली धान की किस्मों की जरूरत होती है. ताकि, सिंचाई पर खर्च होने वाले पानी की अधिक से अधिक बचत की जा सके. ऐसे भी पंजाब में तेजी से भूजल स्तर नीचे गिर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में औसतन हर साल 2 फीट भूजल स्तर कम हो रहा है. इससे आने वार्षों में भूजल का संकट गहरा सकता है.

भूजल स्तर में गिरावट

दरअसल, केंद्रीय भूजल बोर्ड ने साल 2023 में चेतावनी जारी करते हुए कहा था कि प्रदेश में 2039 तक 1,000 फीट की गहराई तक भूजल खत्म हो जाएगा. इससे फसल पैदावार भी प्रभावित होगी, जिससे देश के खाद्यान्न पर असर पड़ेगा. क्योंकि पंजाब का राष्ट्रीय खाद्य भंडार में 45 फीसदी योगदान है. लेकिन किसान फसलों की सिंचाई के लिए अभी भी ट्यूबवेल पर ही निर्भर हैं. खास कर धान की सिंचाई के लिए करीब तीन महीने तक बड़े स्तर पर भूजल का दोहन होता है. इससे अगली पीढ़ियों के लिए गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है.

विशेषज्ञों ने सरकार को चेताया

वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को जून के आखिरी हफ्ते में ही धान की बुवाई शुरू कर देनी चाहिए. इसके लिए विशेषज्ञों ने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की उस सिफारिश का जिक्र किया है, जिसमें 20 जून से चरणबद्ध तरीके से धान रोपाई की वकालत की गई थी. साथ ही विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि रोपाई की शुरुआती तारीख को देखते हुए किसान लंबी अवधि वाली धान की किस्मों की रोपाई कर सकते हैं. इससे अधिक पराली जलाने की समस्या बढ़ जाएगी और प्रदूषण में भी बढ़ावा होगा.

152 दिन में तैयार होती है यह किस्म

ऐसे भी पंजाब सरकार अब PUSA-44 किस्म की खेती पर बैन लगाने पर विचार कर रही है. इस किस्म की खेती में बहुत अधिक पानी का दोहन होता है. इस किस्म की खेत में प्रति एकड़ 64 लाख लीट पानी खर्च होता है. साथ ही PUSA-44 को पकने में 152 दिन लगते हैं. वहीं, राज्य सरकार को बिजली सब्सिडी पर प्रति एकड़ 7,500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं, जबकि किसानों को इसकी खेती में लगभग 19,000 रुपये प्रति एकड़ लगते हैं. यह किस्म से अन्य किस्मों की तुलना में 10 फीसदी ज्यादा पराली उत्पन्न होता है.

Published: 7 May, 2025 | 02:01 PM