पराली से बनाई जाएगी रिन्यूएबल गैस, 1600 करोड़ रुपये की होगी बचत

IBA के अध्यक्ष गौरव केडिया ने कहा कि इस नीति से 37,500 करोड़ रुपये के निवेश आने और देश में 2028-29 तक 750 CBG प्रोजेक्ट्स शुरू होने की संभावना है. इससे एलएनजी की इम्पोर्ट कम होगी, देश की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी.

नोएडा | Updated On: 24 Nov, 2025 | 12:43 AM

Stubble Management: भारतीय बायोगैस एसोसिएशन (IBA) का कहना है कि किसानों द्वारा जलाई जाने वाली 73 लाख टन धान की पराली को बायोगैस प्लांट में इस्तेमाल करने से सालाना लगभग 270 करोड़ रुपये की रिन्यूएबल गैस बनाई जा सकती है. नए एनेरोबिक डाइजेशन तकनीक के जरिए यह पुआल कंप्रेस्ड बायोगैस (CBG) में बदली जा सकती है, जो सीधे इम्पोर्टेड नेचुरल गैस की जगह ले सकती है. पुआल में 40 फीसदी सेल्युलोज होने के कारण यह बायोएथेनॉल बनाने के लिए भी बहुत अच्छी है, जिससे लगभग 1,600 करोड़ रुपये के इम्पोर्ट को बचाया जा सकता है. बाकी 20 फीसदी लिग्निन से भी पॉलिमर, एक्टिवेटेड कार्बन, ग्राफीन और रेजिन जैसे मूल्यवान उत्पाद बनाए जा सकते हैं.

न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, IBA के अध्यक्ष गौरव केडिया ने कहा कि इस नीति से 37,500 करोड़ रुपये के निवेश आने और देश में 2028-29 तक 750 CBG प्रोजेक्ट्स शुरू होने की संभावना है. इससे एलएनजी की इम्पोर्ट कम होगी, देश की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी. साथ ही, सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल के लक्ष्य के तहत 2027 तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में 1 फीसदी बायोफ्यूल  मिलाकर उड़ानों में इस्तेमाल करने की योजना है, जिससे बायोइकोनॉमी का विस्तार होगा. पारंपरिक तौर पर धान की पुआल को कचरे के रूप में देखा जाता है, जो सोच की कमी को दर्शाता है. जबकि, IBA के मुताबिक, हर टन पुआल जलाने से लगभग 1,460 किलो CO₂, 60 किलो CO और 3 किलो पार्टिकुलेट मैटर सीधे वातावरण में छोड़ता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है.

पराली जलाने के बजाएं ऐसे करें इस्तेमाल

धान की पुआल को जलाने के बजाय भारत नई तकनीकों का इस्तेमाल करके इसे उपयोगी संसाधनों में बदल सकता है. कुछ शहरों में यह कोशिशें पहले से हो रही हैं. खासकर उत्तर भारत के शहरों और हाइवे किनारे पौधारोपण  अभियान प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकते हैं. परिपक्व शहरी पेड़ सालाना लगभग 22 किलो COअवशोषित कर सकते हैं और हानिकारक पार्टिकुलेट फिल्टर कर सकते हैं.

25 लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए

इस प्राकृतिक हरित ढाल से शहरी तापमान  को संतुलित करने और पूरे साल गर्मी के प्रभाव को कम करने में भी मदद मिलती है. जैसे दिल्ली में 2023 में ही 25 लाख से ज्यादा पौधे लगाए गए. मियावाकी फॉरेस्ट, हाइवे ग्रीन कॉरिडोर और सामुदायिक ‘एक पेड़ अपनाएं’ पहल को मिलाकर शहरों के लिए कुल मिलाकर एक प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली बनाई जा सकती है.

Published: 23 Nov, 2025 | 11:30 PM

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