DAP आयात में भारी गिरावट: चीन से जुलाई में सिर्फ 97 हजार टन खाद पहुंची, किसानों की बढ़ी चिंता
DAP का इतना कम आयात सीधे तौर पर खेती की लागत और उत्पादकता पर असर डाल सकता है. खासकर उन इलाकों में जहां मृदा में फॉस्फोरस की कमी है. हालांकि सरकार ने विकल्प के रूप में APS (Ammonium Phosphate Sulphate) की बात कही है.
भारतीय खेती में उर्वरक की भूमिका किसी जीवनरेखा से कम नहीं. खासतौर पर DAP यानी डाइ-अमोनियम फॉस्फेट, जो यूरिया के बाद सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाला उर्वरक है. लेकिन अब इस जरूरी खाद की आपूर्ति पर असर पड़ता दिख रहा है. जुलाई 2025 में चीन से DAP का आयात घटकर सिर्फ 97 हजार टन रह गया है, जो किसानों के लिए चिंता की वजह बन सकती है. उर्वरक कंपनियों ने सरकार को बताया है कि 2023-24 में जहां चीन से करीब 22.28 लाख टन DAP मंगाया गया था, वहीं 2024-25 में यह गिरकर सिर्फ 8.47 लाख टन रह गया.
DAP आयात में गिरावट की बड़ी वजहें
DAP उर्वरक की चीन से आपूर्ति में आई इस भारी गिरावट की दो मुख्य वजहें सामने आई हैं. पहली, अक्टूबर 2021 में चीन ने अपने निर्यात नियमों में बदलाव करते हुए DAP जैसे उर्वरकों पर अतिरिक्त जांच अनिवार्य कर दी. दूसरी वजह है वैश्विक लागत में तेजी. अप्रैल 2024 में जहां DAP का सीएफआर (Cost and Freight) मूल्य 542 डॉलर प्रति टन था, वह जुलाई 2025 में बढ़कर 800 डॉलर प्रति टन हो गया.
किसानों के लिए चिंता और सरकार के विकल्प
DAP का इतना कम आयात सीधे तौर पर खेती की लागत और उत्पादकता पर असर डाल सकता है. खासकर उन इलाकों में जहां मृदा में फॉस्फोरस की कमी है. हालांकि सरकार ने विकल्प के रूप में APS (Ammonium Phosphate Sulphate) की बात कही है. यह खाद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और सल्फर तीनों तत्व देता है, लेकिन इसमें फॉस्फोरस की मात्रा DAP से कम होती है (DAP में 46 फीसदी जबकि APS में सिर्फ 20फीसदी ). ऐसे में APS एक सीमित उपयोग वाला विकल्प बन सकता है, विशेष रूप से उन खेतों में जहां सल्फर की कमी हो.
भारत के लिए एक चेतावनी
DAP जैसे आवश्यक उर्वरकों पर चीन की निर्भरता और उसके बदले नियम भारत के लिए एक चेतावनी की तरह हैं. देश को उर्वरकों के स्रोत विविध करने होंगे, साथ ही घरेलू उत्पादन बढ़ाने की दिशा में भी तेज कदम उठाने होंगे. किसानों को भी अब स्मार्ट पोषण रणनीति अपनानी होगी, जिसमें मृदा जांच और जरूरत के अनुसार उर्वरक का चयन अहम हो सकता है.