DAP की किल्लत पर लगेगा ब्रेक, सऊदी अरब से उर्वरक खरीदेंगी भारत की तीन बड़ी कंपनियां

खरीफ सीजन के बीच जब किसान खाद की हर बोरी के लिए परेशान हो रहे हैं, तब यह करार उर्वरक सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है. DAP (डायमोनियम फॉस्फेट) फसल की शुरुआती बढ़त के लिए बेहद जरूरी खाद है, और इसकी कमी से किसानों का पूरा उत्पादन प्रभावित हो सकता है.

नई दिल्ली | Published: 15 Jul, 2025 | 11:15 AM

जब देश के कई हिस्सों में किसान डीएपी खाद की कमी से जूझ रहे हैं, ऐसे समय में भारत सरकार की ओर से एक बड़ी राहतभरी खबर आई है. भारत की तीन बड़ी उर्वरक कंपनियों- इंडियन पॉटराश लिमिटेड (IPL), कृभको और कॉर्पोरेशन इंडिया लिमिटेड (CIL) ने सऊदी अरब की प्रमुख कंपनी मादेन के साथ पांच साल का आपूर्ति समझौता किया है. इसके तहत अब हर साल 3.1 मिलियन टन DAP भारत को मिलेगा. यह सौदा सिर्फ खाद नहीं, बल्कि किसान की उम्मीदों का करार भी है.

क्यों जरूरी है यह करार?

बिजनेस लाइन खबर के अनुसार, खरीफ सीजन के बीच जब किसान खाद की हर बोरी के लिए परेशान हो रहे हैं, तब यह करार उर्वरक सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है. DAP (डायमोनियम फॉस्फेट) फसल की शुरुआती बढ़त के लिए बेहद जरूरी खाद है, और इसकी कमी से किसानों का पूरा उत्पादन प्रभावित हो सकता है.

सरकार ने यह सौदा ऐसे समय किया है जब अप्रैल-मई 2025 में डीएपी का आयात 38 खीसदी घटकर केवल 0.53 मिलियन टन रह गया था, और 1 अप्रैल को स्टॉक केवल 0.9 मिलियन टन था, जो बीते सालों में सबसे कम था. ऐसे हालात में यह पांच साल का आपूर्ति समझौता किसानों के लिए लंबे समय के तक राहत बन सकता है.

क्या सिर्फ DAP ही मिलेगा?

नहीं, समझौते में भविष्य में यूरिया जैसे अन्य उर्वरकों को भी शामिल करने की बात है. यानी आने वाले समय में भारत की उर्वरक आपूर्ति और भी मजबूत हो सकती है. इसके अलावा, इस करार को पांच साल बाद आपसी सहमति से और आगे बढ़ाने का विकल्प भी रखा गया है.

कब और कैसे हुआ ये करार?

केंद्रीय उर्वरक मंत्री जे.पी. नड्डा हाल ही में सऊदी अरब के दौरे पर थे. उन्होंने मादेन की उर्वरक उत्पादन यूनिट्स का दौरा किया और उच्च स्तरीय बैठक की. इसी यात्रा के दौरान यह करार फाइनल हुआ. इसके बाद भारत और सऊदी अरब दोनों ने एक संयुक्त टीम बनाई है, जो इस क्षेत्र में और गहरे सहयोग की संभावनाओं की तलाश करेगी.

जमीनी हालात

हालांकि सरकार ने पर्याप्त डीएपी उपलब्ध होने का दावा किया है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और है. अप्रैल-जून तिमाही में डीएपी की बिक्री 18 फीसदी गिरकर केवल 1.6 मिलियन टन रही, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 1.93 मिलियन टन थी. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि इसी अवधि में:

  • यूरिया की बिक्री 10 फीसदी बढ़ी
  • कॉम्प्लेक्स खाद की बिक्री 31 फीसदी बढ़ी
  • एमओपी की बिक्री 120 फीसदी उछली

यानी मांग भी बनी हुई है, और उर्वरकों का उपयोग भी लगातार बढ़ रहा है.

किसानों को क्या फायदा मिलेगा?

अगर यह करार सही समय पर लागू होता है, तो देश में डीएपी की किल्लत को काफी हद तक रोका जा सकेगा. इससे खाद की काली बाजारी और अचानक बढ़ती कीमतों पर भी अंकुश लगेगा. इससे तमाम राज्यों में किसानों को राहत मिलेगी, बल्कि पूरे देश में खाद वितरण को लेकर भरोसा बढ़ेगा.