जम्मू-कश्मीर में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास रहने वाले किसान, पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़े तनाव के बीच तेजी से अपनी फसल की कटाई पूरी करने में लगे हैं. करीब 200 किलोमीटर लंबी इस सीमा के आसपास तीन जिलों जम्मू, सांबा और कठुआ में लगभग 1.25 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पाकिस्तान की गोलाबारी की रेंज में आती है. गांव ट्रेवा, चंदू चक, घराना, बुल्ला चक और कोरोताना कलां में किसान दिन-रात खेतों में काम कर रहे हैं. किसान अपने परिवारों के साथ मिलकर गेहूं और अन्य फसलों की कटाई कर रहे हैं. साथ ही अनाज भी सुखा रहे हैं और उसे मिलों में भेजने के लिए पैक कर रहे हैं.
न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक करीब 90 फीसदी गेहूं और अन्य फसलों की कटाई पूरी हो चुकी है, लेकिन बाकी की फसल काटने, पैकिंग और उसे मिल तक पहुंचाने का काम तेजी से जारी है. अरनिया सेक्टर के ट्रेवा गांव के 50 वर्षीय किसान संतोश सिंह ने कहा कि हम समय के खिलाफ दौड़ रहे हैं, ताकि जल्दी से जल्दी फसल की कटाई पूरी कर सकें. उन्होंने यह भी कहा कि अब बहुत कम समय बचा है. ट्रेवा बॉर्डर से सिर्फ 1.5 किलोमीटर दूर है, जो पाकिस्तान रेंजर्स के सीधे निशाने में है.
95 फीसदी फसल की कटाई पूरी
ट्रेवा के एक और किसान राकेश कुमार ने कहा कि तहसीलदार ने फसल कटाई की प्रक्रिया को तेज करने के लिए 20 हार्वेस्टर की व्यवस्था की है. इन बेल्टों में 95 फीसदी फसल की कटाई पहले ही पूरी हो चुकी है. उन्होंने कहा कि हम एक खतरे वाले क्षेत्र में रहते हैं. हर बार जब गोलाबारी शुरू होती है, तो हमें मौत और तबाही का सामना करना पड़ता है. सुचेतगढ़ गांव की किसान राधिका देवी ने कहा कि उनके परिवार ने कुछ ही दिनों में 300 बैग गेहूं पैक किए हैं. यह एक आपात स्थिति है. मिल मालिक अच्छे दाम दे रहे हैं और जल्दी से बैगों को सुरक्षित क्षेत्रों में भेज रहे हैं.
किसान स्टॉक कर रहे उपज
सुचेतगढ़ के किसान कुलदीप कुमार ने कहा कि हमें पहलगाम नरसंहार के बाद सतर्क किया गया था. अब जब हमारी बेल्ट में अधिकतर फसल की कटाई हो चुकी है, हम जल्दी से उत्पाद को स्टॉक कर रहे हैं. गोलाबारी कभी भी फिर से शुरू हो सकती है. बढ़ती तनाव के बीच, श्रमिकों की कमी भी एक बड़ी समस्या बन गई है. बिहार और उत्तर प्रदेश के श्रमिक, जो सामान्यत: फसल की कटाई में हमारी मदद करते थे, इन परिस्थितियों में काम करने से मना कर रहे हैं.
गोलीबारी से खेती प्रभावित
चंदू चक गांव के किसान सरदार तेग सिंह ने कहा कि डर हमेशा बना रहता है, लेकिन अब हम इसकी आदत डाल चुके हैं. इस बार, हम बेहतर तरीके से तैयार हैं. न केवल हम अपनी जान और मवेशियों को बचा सकते हैं, बल्कि अब हम अपनी फसलें भी बचाने में सफल हो पा रहे हैं, जो पहले हमेशा मुमकिन नहीं हो पाता था. आरएसपुरा के बासमती चावल उत्पादक संघ (BRGA) के अनुसार, लगभग 1 से 1.25 लाख हेक्टेयर जमीन, जो ज्यादातर विश्वस्तरीय बासमती चावल के लिए जानी जाती है, नियमित रूप से सीमा पार गोलाबारी से प्रभावित होती है.