केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूसा नई दिल्ली में किसानों से बातचीत की. उन्होंने कहा कि किसानों की उपज ज्यादा बढ़ानी है और लागत घटानी है. उन्होंने कहा कि हमें स्वदेशी अपनाना होगा. विदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल से बचना होगा. उन्होंने पुराने दिन याद करते हुए भावुक हुए और हल-बक्खर से जुताई-बुवाई के दिनों और लोहार, बढ़ई, कुम्हार के काम और रोजगार का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि फिर से कृषि मंत्रालय के वैज्ञानिक अधिकारी खेतों में उतरेंगे.
सरकार फाइलों में नहीं जनता की जिंदगी में दिखनी चाहिए
सरकार फाइलों में नहीं जनता की जिंदगी में दिखनी चाहिए. इसके लिए ग्रामीण विकास और कृषि विभाग के अधिकारियों से साथ बैठक कर रहा हूं. खाद आ रहा है, लेकिन किसान तक ठीक से पहुंच रहा है कि नहीं. उन्होंने कहा कि हमारे क्षेत्र के किसानों ने बताया कि खरपतवार जलाने के लिए दवाई डाली तो फसल ही जल गई. ऐसी कंपनी पर कठोर कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं.
अक्तूबर में फिर से कृषि विकसित संकल्प अभियान चलेगा
कृषि वैज्ञानिक फिर से 2 अक्तूबर को दशहरा के बाद 3 अक्तूबर से 18 अक्तूबर तक कृषि विकसित संकल्प अभियान का हिस्सा बनेंगे. कृषि विभाग के अधिकारी, कर्मचारी और वैज्ञानिक किसानों के बीच जाएंगे. किसानों को फिर से बताया जाएगा कि वह किस तरह से उन्नत प्रैक्टिस अपनाकर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और लागत को कम कैसे किया जाए. उन्होंने कहा कि रबी फसलों के लिए रबी कांफ्रेंस दो दिन की जाएगी. उन्होंने कहा कि किसानों की सेवा ही मेरे लिए भगवान की पूजा है.
दोस्त के घर में विदेशी सामान का किस्सा सुनाया
कृषि मंत्री ने कहा कि मैं उस वक्त अपने दोस्त के घर गया जब मैं सांसद-विधायक नहीं था. ग्रामीण आदमी था. तब दोस्त ने इंपोर्टेड सोफा, विदेशी घड़ी और कपड़े दिखाए. बाद में मैंने उससे मजाक करते हुए कहा कि कहीं तू भी तो इंपोर्टेड नहीं है. कृषि मंत्री ने इस किस्से के जरिए किसानों से कहा कि स्वदेशी अपनाना है. अपने यहां की वस्तुओं का इस्तेमाल करें.
हल-बक्खर और फाल-पाटे के दिन याद किए
उन्होंने कहा कि याद करो अपने पुराने दिन जुताई के लिए हल और बक्खर में फाल और पांसे लगता था तो कौन बनाता था, हमारे गांव का लोहार बनाता था. उन्होंने कंछेदी और मन्नू लोहार को याद किया. तब कंडे जलाकर आग में पीट पीटकर पाटे बनाए जाते थे. और अगर हल ठीक से नहीं चलता था तो हमारे गांव बढ़ई उसे ठीक करता था. उन्होंने गंगा बढ़ई का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने भी बक्खर हल से जुताई बुवाई की है.
भगवान हमारे पर मूर्तियां हम विदेश से क्यों मंगा रहे
उन दिनों चारपाई के लिए कोई निवार नहीं खरीदी जाती थी, इन दिनों में सूत काता जाता था और उससे निवार और रस्सियां बनती थीं. तब लोहार, कुम्हार और बढ़ई के पास खूब रोजगार होता था. दीवाली में कुम्हार दीये बनाता था और आज हम विदेशों से मूर्तियां मंगा रहे हैं, जबकि भगवान हमारे हैं. कृषि मंत्री ने भावुक होकर स्वदेशी अपनाने की अपील किसानों से की. उन्होंने कहा कि अपने जिले, प्रदेश और देश में बनी वस्तुओं की खरीदारी करें और इस्तेमाल करें. इससे हम अपने लोगों को ही रोजगार देंगे.
अमेरिका को खरी-खरी सुनाई
कृषि मंत्री ने कहा कि दुनिया में कई देश हमसे जलते हैं कि भारत कहीं आगे न बढ़ जाए. हम दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम मानते हैं, अपना परिवार मानते हैं. हमने बराबरी का समझौता यूके से किया है. अमेरिका का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि कोई देश ऐसा कहे कि समझौता ऐसा हो जाए जिससे उनके देश का सामान हमारे देश में आए जाए तो हमारे किसानों को नुकसान होगा. इसलिए ऐसा नहीं होगा. किसानों के हितों के खिलाफ जो समझौता जाएगा वो नहीं किया जाएगा.