झारखंड का साहिबगंज जिला, जहां कभी कृषि को केवल परंपरागत ढंग से देखा जाता था, आज वहां के किसान नकदी फसल-जूट (पटसन) की खेती के जरिए न केवल आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि समृद्धि की ओर भी बढ़ रहे हैं. बदलते समय के साथ अब किसान परंपरागत खेती के साथ-साथ नई संभावनाओं को अपनाकर अपने जीवन में आर्थिक स्थिरता ला रहे हैं. जूट की खेती ने यहां के ग्रामीण जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया है. राजमहल प्रखंड का जामनगर गांव इसका उत्कृष्ट उदाहरण बनकर उभरा है, जहां शायद ही कोई घर हो जिसमें जूट न दिखाई दे.
सरकार की रणनीति: नकदी फसलों को बढ़ावा
केन्द्र सरकार लगातार नकदी फसलों को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं लागू कर रही है. प्रधानमंत्री कुसुम योजना, प्रधानमंत्री कृषि संयंत्र योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहायता मिल रही है. खासकर सीमांत जिलों में इन योजनाओं का प्रभाव अधिक दिख रहा है, जहां किसान अब परंपरागत खेती से आगे बढ़कर नकदी फसलें उगाने लगे हैं. जूट की खेती को इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
जूट की खेती: साहिबगंज में समृद्धि का माध्यम
प्रसार भारती की रिपोर्ट के अनुसार, राजमहल प्रखंड के जामनगर सहित कई गांवों में जूट की खेती अब जीवनशैली का हिस्सा बन चुकी है. यहां के किसान इस फसल को पारंपरिक तरीकों से उगाते हैं, जिसमें बुआई से लेकर फसल काटने और फिर पानी में तीन सप्ताह तक उसे गलाने की प्रक्रिया शामिल है. इसके बाद रेशे को निकाला जाता है, जिसे पटसन या पटूवा कहा जाता है. यह रेशा स्थानीय बाजार में अत्यधिक मांग के कारण अच्छा मुनाफा दे रहा है. इस वर्ष जूट की कीमत सात से आठ हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई, जो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से कहीं अधिक है. यह दर किसानों के लिए एक बड़ा आर्थिक प्रोत्साहन बनकर सामने आई है.
सरकारी योजनाओं से मिल रही मदद
राजमहल के किसान केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हैं. प्रधानमंत्री कुसुम योजना के अंतर्गत किसानों को सोलर पंप्स मिल रहे हैं, जिससे सिंचाई की समस्या काफी हद तक सुलझ गई है. कृषि संयंत्र योजना के अंतर्गत खेती के लिए आवश्यक यंत्र उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिससे उत्पादन क्षमता में भी इजाफा हुआ है. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत मिलने वाली राशि किसानों के लिए एक स्थायी सहायता बन गई है. इन योजनाओं का सम्मिलित प्रभाव यह हुआ है कि अब किसानों को खेती के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत नहीं पड़ती और वे स्वतंत्र रूप से उत्पादन कर रहे हैं.
कृषि विभाग का सक्रिय सहयोग
साहिबगंज का कृषि विभाग भी जूट की खेती को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. जिला कृषि पदाधिकारी प्रमोद एक्का के अनुसार, इस वर्ष जिले में लगभग 1500 एकड़ से अधिक भूमि पर जूट की खेती की गई है. किसानों को सही समय पर बीज, खाद और प्रशिक्षण प्रदान किया गया, जिससे उत्पादन में बढ़ोतरी हुई. विभाग ने किसानों को यह भी बताया कि किस तरह जूट की गुणवत्ता को बनाए रखा जा सकता है ताकि बाजार में बेहतर दाम मिल सके.
आर्थिक उन्नति की नई राह
साहिबगंज के सीमांत किसानों के लिए जूट की खेती सिर्फ एक फसल नहीं, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत कदम है. जहां पहले ये किसान मौसम पर निर्भर होकर केवल धान या गेहूं की खेती करते थे, अब जूट के जरिए उन्हें अतिरिक्त आमदनी मिल रही है. इससे न केवल उनकी जीवनशैली में सुधार आया है, बल्कि वे अपने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक जरूरतों को भी बेहतर ढंग से पूरा कर पा रहे हैं.